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कलेजे को मुखाग्नि देते ही बैठ गया मां का दिल

मेरठ : जिसे नौ महीने तक कोख में रखा, जिसे अपनी आंचल में छिपाया, नाजों से पाला, उसकी एक छींक पर भी अ

By Edited By: Published: Tue, 28 Jul 2015 02:02 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jul 2015 02:02 AM (IST)
कलेजे को मुखाग्नि देते ही बैठ गया मां का दिल

मेरठ : जिसे नौ महीने तक कोख में रखा, जिसे अपनी आंचल में छिपाया, नाजों से पाला, उसकी एक छींक पर भी असहज हो जाते थे, आज वही आंखों के सामने सदा के लिए चिता पर चिरनिद्रा में सोया था। ममता की मूरत मां के लिए ऐसा दिन भी आ सकता है, शायद ही किसी ने सोचा हो। एक मां, जो इकलौते बेटे के लिए ही जी रही थी, आज उसी बेटे को मुखाग्नि देने खड़ी थी।

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डिफेंस कालोनी निवासी रितु सिंह के लिए यह कठोर दिन था। पति को 10 वर्ष पहले ही खो चुकी रितु आज अपने जवान बेटे सम्यक सिंह की चिता को अग्नि के हवाले करते समय नि:शब्द थीं। आंखों में आंसू सूख चुके थे। पिछले 16 घंटों से लब चुप थे। इस मार्मिक दृश्य को देख सूरजकुंड श्मशान घाट पर मौजूद शायद ही कोई शख्स हो, जिसकी आंखें नम न हुई हों। सम्यक सिंह की रविवार शाम को ही आरवीसी सेंटर के स्वीमिंग पूल में डूबने से मृत्यु हो गई थी।

सोमवार सुबह डिफेंस कालोनी से सम्यक की शवयात्रा निकली तो तमाम लोगों की आंखें नम थीं। परिवार में किसी पुरुष सदस्य का न होना, हर किसी को साल रहा था। सबकी जुबां पर बरबस एक सवाल बार-बार आ रहा था कि आखिर सम्यक को मुखाग्नि कौन देगा? पड़ोसियों के साथ ही कुछ रिश्तेदारों ने मन: स्थिति को भांपते हुए खुद ही यह निष्कर्ष निकाला कि जरूरत पड़ेगी तो हम आगे आएंगे। हालांकि जीवन में एक और त्रासदी के सामने रितु खड़ी थीं, लेकिन लाचारी को पीछे छोड़ वह आगे बढ़ीं और कोख में पले अपने लाल को अग्नि के हवाले कर दिया। संभवत: मेरठ में यह पहला मौका था, जब किसी बेबस मां को अपने ही बेटे को मुखाग्नि देनी पड़ रही थी। चूंकि अपनी कोख से जन्मा सम्यक अब सदा के लिए जा रहा था। त्रासद दुखांत की इस घड़ी को रितु झेल नहीं सकीं और वहीं गश खाकर गिरने लगीं। वहां मौजूद अन्य महिलाओं ने उन्हें संभाला। यह वक्त वहां मौजूद लोगों के लिए भी पहाड़ समान था। जो भी इस मौके का गवाह बना, सुबकता ही दिखा।

पहुंचे थे नाते-रिश्तेदार

सम्यक की अंतिम यात्रा के दौरान दिल्ली से आए उसके मौसा ब्रिगेडियर संकेत सूदन, बिहार के गया से आए ताऊ ब्रिगेडियर शिवेंद्र सिंह, दिल्ली से आए रिश्तेदार सीआइएसएफ के डीआइजी विक्रम सिंह के अलावा बड़ी संख्या में डिफेंस कालोनी निवासी रिटायर्ड सैन्य अधिकारी, रश्तेदार, सेंट मेरीज एकेडमी के छात्र, सम्यक के दोस्त व शहर के गण्यमान्य व्यक्ति मौजूद थे।

पहले मांग सूनी हुई, अब गोद

रविवार की उस मनहूस शाम से ही सम्यक की मां रितु सिंह बिल्कुल गुमसुम हैं। न आंसू ही निकले और न ही अपने बेटे के गम का वह इजहार ही कर सकीं। गहरे सदमे में जा चुकीं रितु की आंखें नियति से सैकड़ों सवाल तो करना चाहती हैं, जिसने उनके जीवन दुखों का पहाड़ खड़ा कर दिया। लगभग 10 वर्ष पूर्व जब पति राघवेंद्र सिंह की मृत्यु हुई तो गोद में बेटे को जीने का सहारा चुना। 32-33 वर्ष की अवस्था में ही सूनी मांग लेकर आंचल की ओट में बेटे को पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया और इस काबिल बनाया कि एक ही बार में उसका सलेक्शन मर्चेट नेवी और एनडीए में हो गया। अब बेटे की इस सफलता के जश्न का मौका था कि नियति ने एक बार फिर आंखें टेढ़ीं की और जिंदगी की खुशियां ताश के पत्तों की मानिंद बिखर गई। अब भी रितु गुमशुम ही हैं। पूरा शरीर मानो पत्थर बन चुका है। परिजन तमाम कोशिशों में जुटे हैं कि रितु की आंखों से गम के आंसू निकल जाएं, लेकिन मां का जिगर मानो बेजान हो गया है।

आंखों के सामने चली गई तीन पीढि़यां

घर के बड़े-बुजुर्ग अपनी आंखों के सामने पीढि़यों को बढ़ते देखना चाहते हैं, लेकिन मोहिनी देवी के लिए भी यह जीवन दुखों के पहाड़ समान ही है। उन्होंने एक-एक कर परिवार की तीन पीढि़यों की अपने सामने अर्थी उठते देखी। 1971 के युद्ध में पति कर्नल ओंकार सिंह को पहले खोया, फिर लगभग 10 वर्ष पूर्व बेटे राघवेंद्र की अर्थी उठते देखी और अब पोते की धधकती चिता की गवाह बनीं। गम तो इस बूढ़ी काया में भी है, लेकिन चूंकि बहू रितु बेसुध पड़ी हैं, ऐसे में परिवार का मुखिया बनकर वही आने-जाने वालों से बात कर रही हैं। दु:ख-दर्द बांट रही हैं। सम्यक की नानू चंचल शर्मा का भी बुरा हाल है।

सहारा दे रहे हैं सम्यक के दोस्त

सम्यक की मृत्यु के बाद से सम्यक के दोस्त ही उसके परिजनों का सहारा बने हुए हैं। रविवार शाम से ही सम्यक के दोस्त उनके परिवार का ढांढस बढ़ाने में जुटे हैं। अपने दोस्त को खाने का गम उनमें भी हैं, लेकिन सम्यक की दादी, नानी और मां का दुख-दर्द बांटने में जुटे हैं। सोमवार को सम्यक के अंतिम संस्कार के बाद भी उसके दोस्त घर पर भी बने रहे और परिवार का दुख बांटते रहे।


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