मुरझाने लगी है लोकतंत्र की 'नर्सरी'
मेरठ : लोकतंत्र की पहली नर्सरी अब मुरझाने लगी है। पहली नर्सरी यानी छात्रसंघ चुनाव से निकले पदाधिकारी
मेरठ : लोकतंत्र की पहली नर्सरी अब मुरझाने लगी है। पहली नर्सरी यानी छात्रसंघ चुनाव से निकले पदाधिकारी कभी राजनीति की मुख्य धारा में अपनी धमक से चकाचौंध पैदा कर देते थे, लेकिन आज इस नर्सरी की पौध एक दायरे में ही सिमटती जा रही है। छात्र राजनीति करने वाले छात्रों का मकसद अब सक्रिय सकारात्मक राजनीति नहीं रही।
विश्वविद्यालय और कालेजों में नवंबर के पहले पखवाड़े में छात्रसंघ चुनाव होने जा रहा है। छात्रों की सरकार भले छात्रों के नाम पर बनेगी, लेकिन छात्रों की सरकार अब छात्रों की आवाज को नहीं सुन पा रही है। कभी छात्रसंघ चुनाव लड़ने और जीतने वाले पदाधिकारियों की धमक पूरे शहर में होती थी, लेकिन अब लोकतंत्र की इस नर्सरी की पौध मुरझाने लगी है, इस नर्सरी से निकलने वाली पौध का मकसद भी बदल गया है, जबकि शहर के कालेजों के पहले की छात्र राजनीति को देखें तो यह बात साफ हो जाएगा कि पहले के छात्र नेता एक लक्ष्य के तहत राजनीति में उतरे और राजनीति की मुख्य धारा तक पहुंचे।
सबसे बड़े कालेज मेरठ कालेज से चौ. चरण सिंह, सत्यपाल मलिक, जगत सिंह, केके शर्मा, राजेंद्र शर्मा जैसे कई लोग छात्र राजनीति से निकले। एनएएस कालेज के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कृष्ण गोपाल पटेल वर्तमान में लखीमपुर खीरी से विधायक हैं। छात्रसंघ चुनाव से राजनीति को आगे बढ़ाने का यह सिलसिला अब अपने लक्ष्य से भटकने लगा है। पिछले कुछ साल के छात्रसंघ चुनाव और उससे निकले पदाधिकारियों को देखकर नहीं लगता है कि उनका लक्ष्य सक्रिय राजनीति में होगा, क्योकि अपनी जीत के बाद ज्यादातर पदाधिकारियों ने बस यूं ही चुनाव लड़ लिया।
कभी युवाओं के अगुआ होते थे
कालेजों से निकले छात्रसंघ अध्यक्ष कभी पूरे शहर के युवाओं के अगुआ होते थे। उनके आहवान पर पूरा शहर थम जाता था। पुलिस-प्रशासन से लेकर सरकार तक उनकी बात सुनती थी। लेकिन अब छात्र राजनीति का रूप क्या बदला, पहले वाली धमक भी गायब हो गई।
मुखिया को नहीं अधिकार
छात्रसंघ अध्यक्ष यानी छात्रों के मुखिया के हाथ में लिंगदोह के चलते कोई अधिकार भी नहीं रहा। चुनाव में छात्रसंघ पदाधिकारी भले से ही खूब दावे करें, लेकिन वह सब हवा हवाई है। कालेज व विश्वविद्यालय प्रशासन तो इसलिए छात्रसंघ चुनाव करा देता है कि जिससे छात्रों के अलग-अलग समूहों से जो दबाव उस पर पड़ता है, वह खत्म हो जाए और उन्हें एक विजेता छात्र संगठन से बात करनी पड़े।
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छात्रसंघ अध्यक्ष को यह हैं अधिकार
-यूनियन की वार्षिक रिपोर्ट तैयार करके डीन आफ स्टूडेंट वेलफेयर को देना
- यूनियन फंड से केवल 200 रुपये खर्च करने का अधिकार।
- जनरल बाडी की मीटिंग बुलाना।
लिंगदोह इसका कारण
पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष डा. ज्ञानेंद्र शर्मा की मानें तो इसका दोष लिंगदोह की रिपोर्ट का है। 25 साल की आयु में चुनाव लड़ने वाले छात्र की उतनी परिपक्वता नहीं रहती। उनका मकसद भी राजनीति नहीं रहा।
अवकाश के बाद पकड़ेगा जोर
चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय का छात्रसंघ चुनाव 13 नवंबर को है, आठ नवंबर को कनोहर लाल गर्ल्स डिग्री कालेज का चुनाव है। अन्य कालेजों में भी नवंबर के महीने में चुनाव होने वाले हैं। इस समय विवि और कालेजों में त्योहारी अवकाश चल रहा है। सोमवार को विश्वविद्यालय और कालेज खुल जाएंगे। उसके बाद परिसर व कालेजों में चुनावी प्रचार जोर पकड़ेगा।