वैज्ञानिकों ने कृषि शोध पर 80 करोड़ फूंके, रिजल्ट जीरो
अशोक चौहान, मोदीपुरम
कृषि विवि में भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) की नौ सदस्यीय टीम ने तीन माह तक 'परफोरमेंस आडिट' किया। आडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि वैज्ञानिकों ने कृषि शोध पर करीब 80 करोड़ फूंक दिए, लेकिन वेस्ट यूपी के किसानों को परियोजनाओं से कोई फायदा नहीं मिला। कारण रहा कि क्षेत्र की जरूरत एवं क्षेत्रीय किसानों के मशवरे से परियोजना का चयन नहीं किया गया।
कैग की टीम ने अप्रैल से जून 2014 तक विवि में आडिट किया, जिसकी रिपोर्ट सितंबर के पहले सप्ताह में कृषि विवि व शासन को मिल चुकी है। कृषि विवि प्रशासन को मिली रिपोर्ट में चौकाने वाले तथ्यों को उजागर किया है। विवि के कृषि शोध पर कहा गया है कि दस सालों में करीब 72 परियोजनाओं पर शोध कार्य हुए। उनमें से 45 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, 27 पर शोध चल रहा है, लेकिन वेस्ट यूपी के किसानों की फसल गन्ना, गेहूं व सरसों के लिए नई वैरायटी डेवलप नहीं हुई। कारण बताया गया कि वैज्ञानिकों ने क्षेत्र विशेष की आवश्यकता या किसानों से रूबरू होकर शोध परियोजनाओं का विषय नहीं चुना। अपनी मर्जी से शोध परियोजनाएं चुनी और दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) से मिले करीब 66 करोड़, यूपी सरकार से मिले 14 करोड़ खर्च कर दिए। इसके अलावा उत्तर-प्रदेश अनुसंधान परिषद (उपकार) व अन्य स्रोतों से 50 करोड़ रुपये ओर मिले है, जो शोध पर बहा दिए गए।
गेहूं बीज को खाद्यान्न के रूप में बेचा
कृषि विवि के शोध विभाग ने एक ओर घोर अनियमितता की। जिसने गेहूं को बीज के रूप में न बेचकर खाद्यान्न के रूप में बेच दिया गया। इससे कृषि विवि को एक करोड़ दस लाख की चपत लगी।
किसानों के प्रशिक्षण को मिले 1.23 करोड़ रुपये वेतन पर खर्च कर डाले
इसके साथ ही प्रसार निदेशालय को घेरे में ले लिया है। आडिट रिपोर्ट में कहा कि प्रसार निदेशालय के अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्रों(केवीके) को मौसम की सटीक जानकारी देने को करीब सात लाख रुपये आवंटित किए गए, लेकिन गतिविधि संचालित नहीं है, इसलिए किसानों को लाभ नहीं मिल रहा है। शासन ने विवि के प्रसार निदेशालय को 1.23 करोड़ किसानों को प्रशिक्षण पर खर्च करने को दिया गया, सब रुपये वेतन मद में खर्च कर दिए गए।
इन्होंने कहा..
आडिट की अभी फाइनल रिपोर्ट नहीं आई है, टीम ने मुझसे ऐसे सवाल किए है, जिनका जवाब मैं नहीं दे पाउंगा, उनको आडिट टीम पब्लिक आडिट कमीशन (पीएसी) को भेज देगी। जिन पर विधान सभा में विचार होता है। ये सभी आंकड़े दस सालों के हैं, उनका जवाब दे दिया जाएगा।
-डा.देवी सिंह, निदेशक शोध
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मैंने अभी आडिट रिपोर्ट नहीं देखी है, मुझे जानकारी नहीं कि लखनऊ से मेरे कार्यालय में कैग की आडिट रिपोर्ट पहुंच चुकी है। सोमवार को जाकर रिपोर्ट देखूंगा।
-सीएस प्रसाद, कार्यवाहक कुलपति/कुलसचिव