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सियासी दखल में दब गया इंसाफ?

By Edited By: Published: Thu, 21 Aug 2014 01:28 AM (IST)Updated: Thu, 21 Aug 2014 01:28 AM (IST)
सियासी दखल में दब गया इंसाफ?

मेरठ : खरखौदा कांड में पूरे मामले में पुलिस की विवेचना इतनी हास्यास्पद है कि सियासी दबाव का आरोप प्रथम दृष्टया सही लगता है। हिंदू संगठन खुलकर एक मंत्री पर आरोप लगाते हुए पूरे मामले के पुलिसिया खुलासे को सियासी दबाव का नतीजा बता रहे हैं। ऐसे में सवाल है कि यह सियासी दबाव का चक्कर क्या है? इस पर जागरण ने पड़ताल की तो कई रोचक तथ्य सामने आए। सबसे पहले तो यह है कि पूरे मामले में पीड़िता के अपहरण और दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज होने से पहले ही मंत्री ने लड़की की बरामदगी और पूरे प्रकरण को निपटाने के निर्देश दिए थे। सत्ताधारी पार्टी से जुड़े लोगों और मंत्री समर्थक ग्रामीणों का कहना है कि ये सामान्य राजनीतिक सिफारिशी फोन था। वहीं हिंदू संगठनों का कहना है कि आरोपी मुकदमा दर्ज होने से पहले ही मंत्री की शरण में चले गए थे। मतलब कि पूरे कांड की जानकारी पहले से ही मंत्री महोदय के संज्ञान में थी।

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गुमशुदगी के बाद ही थी आरोपियों में खलबली

ग्रामीणों के मुताबिक पीड़िता के घर से गायब होने के बाद स्थानीय स्तर पर ही सही, मामला गरमाने लगा था। इस गरमाहट से पुलिस भी अवगत थी। मामले के आरोपियों को भी मामले के तूल पकड़ने का अंदेशा था। लिहाजा 31 अगस्त को गुमशुदगी का मामला दर्ज होते ही आरोपियों ने सियासी शरणदाता की तलाश शुरू कर दी। इसी क्रम में मंत्री से मदद की गुहार लगाई गई। नाम न छापने की शर्त पर एक सूत्र ने कहा कि दो अगस्त को ही मंत्री ने फोन कर पुलिस को पूरे मामले को मैनेज करने को कहा था। पुलिस सूत्र भी इसकी पुष्टि करते हैं कि रिपोर्ट दर्ज होने से पहले सियासी फोन आया था। इसमें लड़की को बरामद कर पूरे मामले को निपटाने का फरमान दिया गया था।

मतलब कि दो अगस्त तक सिर्फ गुमशुदगी दर्ज थी। विरोध-समर्थन की बात नहीं थी। हां, पुलिस के आला सूत्र भी मानते हैं कि मंत्री के फोन का इतना असर जरूर हुआ कि गुमशुदगी के दौरान ही पुलिस ने तेजी से विवेचना न कर मामले को लटकाने की कोशिश की। यहीं से मामला उलझता गया। तीन अगस्त को मामला दर्ज होने के बाद पूरा प्रकरण संसद से लेकर राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बन गया था। इसके बाद मंत्री जी ने मामले से हाथ खींच लिए। गांव में मीडिया के सामने आरोपी पक्ष के एक युवक ने कहा भी था कि मंत्री जी को फोन किया गया था, लेकिन उन्होंने कहा था कि अब मसला राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच चुका है और फिलहाल कुछ नहीं किया जा सकता।

हिंदू संगठनों के आरोप

बताया जाता है कि रिपोर्ट दर्ज होने से पहले मंत्री के फोन वाली बात हिंदू संगठनों के भी संज्ञान में है। उनका कहना है कि मुकदमा दर्ज होने से पहले मंत्री का फोन आने का आखिर क्या मतलब लगाया जाए? साफ है कि पूरा प्रकरण मंत्री के संज्ञान में पहले से ही था। उन्होंने पीड़िता को इंसाफ दिलाने या मामले में संवेदनशीलता बरतने के बजाय सिफारिशी फोन किया।

उधर, पुलिस का मानना है कि पूरे प्रकरण में हिंदू संगठनों की भूमिका लोगों की उकसाने वाली रही। नाम न छापने की शर्त पर पुलिस अधिकारी कहते हैं कि सियासी दबाव की बात अगर सही भी मान ली जाए तो पुलिस-प्रशासन पर हिंदू संगठनों के हंगामों को भी किसी तरह शांत करने का दबाव था। इस सवाल पर कि यदि भूमिका उकसाने वाली थी तो कार्रवाई क्यों नहीं की गई, अफसरों का कहना था कि इससे मामला और बिगड़ता।

मकड़जाल में दब गए आरोप

हिंदू संगठनों का आरोप है कि पुलिस ने सारे आरोपियों को ये भरोसा दिलाकर गिरफ्तार किया है कि उन्हें कुछ नहीं होने दिया जाएगा। दबी जुबान से पुलिस अफसर भी मानते हैं कि आरोपियों को विश्वास में लेकर ही गिरफ्तार किया गया है। हालांकि पुलिस इसकी वजह यह बताती है कि हिंदू संगठनों के आक्रोश के चलते जल्द गिरफ्तार करनी थी। साथ ही इस बात का ध्यान रखना था कि दूसरा पक्ष न भड़के।

बहरहाल, इन आरोपों-प्रत्यारोपों की सच्चाई चाहे जो हो, पुलिस मामले को मैनेज करने में इस कदर उलझ गई कि उसे पीड़िता के इंसाफ से ज्यादा चिंता प्रकरण को निपटाने की थी। यह बात पुलिस कप्तान के मामले के हास्यास्पद खुलासे से साफ भी हो गया।

इस पूरे मामले पर मंत्री जी का पक्ष जानने के लिए उनसे संपर्क करने की कोशिश की गई। उनका मोबाइल बंद था। पता चला कि वह मेरठ से बाहर हैं। उन्हें मोबाइल से मैसेज भी किया गया। बहरहाल, मंत्री के परिजनों का कहना है कि हमने कोई सिफारिश नहीं की। खरखौदा के उस गांव से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। न ही हमारे विधानसभा क्षेत्र में आता है।

सपा के जिलाध्यक्ष जयवीर सिंह से बात की गई तो उनका कहना है कि न तो मेरे सामने कोई फोन हुआ है, न मुझे कुछ पता है। लिहाजा वह इस मामले में कुछ नहीं बोल सकते।

एसपी देहात कैप्टन एमएम बेग से खरखौदा कांड में मंत्री की सिफारिश के बारे में बात की गई तो उनका कहना था कि खरखौदा कांड को छोड़कर दूसरे किसी भी मामले की जानकारी ले सकते हैं। उस मामले में मैं कुछ नहीं कह सकता।


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