फेल खुफिया एजेंसियां खुद को बचाने में जुटीं
मेरठ : आसिफ अली ने आइएसआइ का एजेंट बनकर 15 सालों तक देश के साथ गद्दारी की। सेना की गोपनीय जानकारी और सेना के अफसरों के एकाउंट में रकम डाल रहा था। यह सब कुछ देहलीगेट थाने के पूर्वा फैय्याज अली में बैठकर हो रहा था। उसकी जानकारी न तो लोकल पुलिस और न ही खुफिया एजेंसियां लगा पाईं। जब एसटीएफ की टीम ने आसिफ को गिरफ्तार किया तो गर्दन बचाने के लिए खुफिया विभाग के अफसर कोई एक साल से तो कोई पांच माह से आसिफ को रडार पर रखने का दावा कर रहे हैं।
मेरठ के देहलीगेट के पूर्वा फैय्याज अली में घर के अंदर पूरे परिवार के बीच रहकर आसिफ अली आइएसआइ को भारतीय सेना की गुप्त जानकारी दे रहा था। बाकायदा उसका मूवमेंट भी सेना क्षेत्र में था। बावजूद इसके किसी खुफिया एजेंसी को कोई भनक नहीं लगी। वह आइएसआइ से एक-दो वर्ष नहीं बल्कि पूरे 15 साल से जुड़ा था। विशेष बात यह है कि, मेरठ के अतिसंवेदनशील होने के कारण यहां सेना की इंटेलीजेंस, एलआइयू और आइबी का भी आफिस है। इसके वाबजूद भी कोई आसिफ की जानकारी नहीं जुटा पाया। एसटीएफ भी उस समय हरकत में आई, जब कोलकता से सेना के रिटायर्ड अफसर मदन मोहन पाल की गिरफ्तारी की गई थी। अफसर के एकाउंट में रकम आसिफ अली ने ही डाली थी। तभी इस पर शक हुआ तो एसटीएफ उसके पीछे लग गई। आसिफ की गिरफ्तारी के बाद खुफिया विभाग के अफसरों की गर्दन फंस गई है, अब सभी खुद को बचाने की जुगत में मीडिया का सहारा ले रहे हैं। कोई एजेंसी एक साल से आसिफ के पीछे लगने की बात कर रही है, तो कोई पांच माह से उसे अपनी रडार पर बताने का दावा कर रहा है। एसटीएफ के एसएसपी उमेश कुमार का कहना है कि सेना की इंटेलीजेंस की मदद ली गई थी क्योंकि उसके पास सेना के ही नक्शे बरामद हुए हैं।