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मिसकीन और फकीर को ही जकात

घोसी (मऊ): ईदगाह की नमाज अदा करने को जाने के पूर्व ही जकात दे देना दीनी फर्ज है। इसके फर्ज से इंकार

By JagranEdited By: Published: Sun, 25 Jun 2017 09:55 PM (IST)Updated: Sun, 25 Jun 2017 09:55 PM (IST)
मिसकीन और फकीर को ही जकात

घोसी (मऊ): ईदगाह की नमाज अदा करने को जाने के पूर्व ही जकात दे देना दीनी फर्ज है। इसके फर्ज से इंकार करने वाला सच्चा मुसलमान नहीं हो सकता है। स्थानीय नगर के मौलाना अमीरुद्दीन कहते हैं कि कुरान में साफ लिखा है कि जकात मिसकीन और फकीर को ही दी जाए। कौन देगा और किसे देगा जकात के बाबत मौलाना तफसील में बताते हैं।

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बालिग मुसलमान जो आजाद हो और मालिके निसाब यानी जिसके पास साढ़े बावन तोला चांदी (653.181 ग्राम) या साढ़े सात तोला सोना (93.312 ग्राम) या इसकी मौजूदा कीमत के बराबर माल असबाब हो, जकात देगा। निसाब का कर्ज से मुक्त होना भी जरूरी है। कहा कि निसाब का हाजते असलिया यानी रहने-सहने, खाने-पीने, शादी और दवा-इलाज आदि के बाद बचत होना जरूरी है। माल-असबाब में बढ़ोत्तरी न हुई या एक साल तक इतना पैसा न रहा तो जकात नहीं देना होगा। जकात हरेक को नहीं दी जा सकती है। जकात उसे भी देना लाजिम है जो अल्लाह की राह में खर्च करता हो। जकात किसी ऐसे मुसाफिर को भी दी जा सकती है जिसके पास बीच सफर में पैसा न हो। आगे कहा कि मालिके निसाब सकल पूंजी का ढाई फीसदी हिस्सा जकात के रूप में देगा। ईद की नमाज पूर्व जकात देना जरूरी है।


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