इटौरा खुर्द मेले में उमड़े ग्रामीण
घोसी (मऊ) : कोई भी भूपति राजा जनक के दरबार में रखे शिव धनुष को उठा कर प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर खि
घोसी (मऊ) : कोई भी भूपति राजा जनक के दरबार में रखे शिव धनुष को उठा कर प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर खिसका भी न सका। राजा जनक दुखी मन से कह उठे-'बीर विहीन मही मैं जानी'। यह वचन सुनते ही लक्ष्मण जी तनिक क्रोधित होकर कह उठे-'कह न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान। नाइ राम पद कमल सिरू बोले गिरा प्रमान'।
क्षेत्र के इटौरा खुर्द में पुरातन काल से धनुष यज्ञ मेले की परंपरा इस वर्ष भी जीवंत रही। क्षेत्र के दर्जनों गांव के ग्रामीण यहां पहुंचे। यहां धनुष यज्ञ मेला में राजा जनक के दरबार में स्वयंवर की प्रस्तुति भी की गई।
हरेक राजा थक गया और शिवजी का धनुष नहीं उठा। इस चित्रण के पूर्व ही गुरु विश्वमित्र (विजय शंकर मौर्य) संग प्रभु श्रीराम (अश्वनी पांडेय) एवं लक्ष्मण जी (आदित्य पांडेय) राजा जनक (शिवशंकर मौर्य) के दरबार में उपस्थित हो चुके हैं। जनक जी की वेदना से क्रोधित लक्ष्मण जी के इतना कहते ही विश्वामित्र जी कह उठे-उठहु राम भंजहु भवचापा। गुरु से आशीष लेकर प्रभु ने देवताओं की वंदना किया। उधर सीता जी के मन में सुकुमार राजकुमार को देख संशय हुआ कि यह कैसे धनुष खंडित करेंगे। उधर लक्ष्मण जी ने दिग्गजों, कच्छपों, शेष एवं वाराह को पृथ्वी को थामे रहने की आज्ञा दी। परशुराम जी (दुर्गेश पांडेय) सभा में पहुंचते हैं। परशुराम जी एवं लक्ष्मण के बीच कठोर संवाद के बाद श्रीराम के हस्तक्षेप करते ही परशुराम ने उन्हें पहचान लिया। इसके साथ ही इस प्रसंग का समापन हुआ। दशरथ के रूप में ओमप्रकाश यादव, बाणासुर बने रामबचन मौर्य, रावण का अभिनय करते मनीष पांडेय सहित आनंद मोहन पांडेय, विजय शंकर मौर्य एवं उमेशचंद पांडेय ने सक्रिय सहयोग किया। संचालन राम¨सह मौर्य ने किया।