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यज्ञ से होता है वातावरण शुद्ध, मन को मिलती है शांति

दोहरीघाट (मऊ) : अंतर्राष्ट्रीय मातेश्वरी महाधाम में चल रहा अखंड मां आदिशक्ति महायज्ञ सातवें दिन भी ज

By Edited By: Published: Fri, 27 Mar 2015 06:27 PM (IST)Updated: Fri, 27 Mar 2015 06:27 PM (IST)
यज्ञ से होता है वातावरण शुद्ध, मन को मिलती है शांति

दोहरीघाट (मऊ) : अंतर्राष्ट्रीय मातेश्वरी महाधाम में चल रहा अखंड मां आदिशक्ति महायज्ञ सातवें दिन भी जारी रहा। मां कालरात्रि अवतरण के पावन पर्व पर श्री सद्गुरू जीे महराज ने कहा कि व्यक्ति को माता की शरण में जाने के बाद सारे कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। व्यक्ति अज्ञान रूपी अंधकार में जब तक भटकता है, उसे तमाम प्रकार के कष्ट होते रहते हैं। यज्ञ से वातावरण शुद्ध होता है व मन को शांति मिलती है। इसके भाग्य में दुर्गती लिखी होती है, उसे यज्ञ अच्छा नहीं लगता। वह सिर्फ लोभ, मोह, मद, क्रोध और वासना के चक्कर में लिप्त रहता हे। मानव संसार में जब से आया है अपने द्वारा संचित धन संपदाओं में ही दुख प्राप्त करता आया है।

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उन्होंने कहा कि मनुष्य भौतिक सुख की चाह छोड़ दे तो उसका जीवन आनंदमय हो जाएगा। व्यक्ति तब सच्चिदानंद का स्वरूप प्राप्त कर लेता है जब वह अपने अंदर निहित दुर्गुणों का त्याग कर देता है। सभी कष्टों से छुटकारा पाने के लिए मां आदिशक्ति लोक एवं अपने सद्गुरू का स्मरण एवं ध्यान करें। ध्यान मात्र से ही सभी दुर्गुणों से मुक्ति मिल जाएगी एवं सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी। आगे सद्गुरू कृपा एवं उनकी महिमा का गुणगान करते हुए दोहरीघाट निवासी गणेश ने कहा कि वे अनेक प्रकार के व्यसन में लीन थे। मांस-मदिरा का सेवन करते थे परंतु आज सद्गुरू की कृपा से पूर्ण रूपेण ाशा से मुक्ति पाकर शाकाहारी बन गया हूं। दूसरे भक्त मकंदपुर गोरखपुर निवासी सुरेश ¨सह ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व ब्रेन हैमरेज हो जाने के कारण नाक से अविरल रक्तस्त्राव हो रहा था। बड़हलगंज और मेडिकल कालेज के डाक्टर जवाब दे चुके थे मैं भी बदहोश हो चुका था लेकिन सद्गुरू की ऐसी कृपा बरसी कि बगैर चिकित्सा के रक्तस्त्राव बंद हो गया और दस वर्षों बाद आज भी मैं जीवित हूं। अंत में अटल, राजनारायण शर्मा जी, रमाकांत मिश्रा द्वारा गाए भजनों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। सभा में लक्ष्मीकांत श्रीवास्तव, श्रवण, डॉ. एसएन राय, डॉ. रमेश चंद्र, दिनेश वैद्य आदि हजारों की संख्या में मातृभक्त उपस्थित थे।


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