गोवर्द्धन पूजा संग मना अन्नकूट महोत्सव
मऊ : प्रत्येक मुहल्ले में महिलाओं की गोष्ठिया लगी, गाय के गोबर से लिपे-पुते गोष्ठी स्थल पर पर्वत देव
मऊ : प्रत्येक मुहल्ले में महिलाओं की गोष्ठिया लगी, गाय के गोबर से लिपे-पुते गोष्ठी स्थल पर पर्वत देव गोवर्धन के साथ ही पर्वतीय परिवार से जुड़े जीव जंतुओं की आकृति बनाकर, जंगली वनस्पतियां व फल एकत्र कर उन्हें समर्पित किया गया। नारी शक्ति ने भगवान श्रीकृष्ण की परंपरा का पालन करते हुए पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। इसके साथ ही मनाया गया अन्नकूट महोत्सव और भैयादूज का पर्व। प्रकृति प्रेम, रिश्तों की माधुर्यता व आस्था का मिला-जुला संगम एक साथ देखने को मिला इन पर्वो में।
लोकरीतियों के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा व द्वितीया को मनाए गए उक्त पर्वो में आस्था के साथ-साथ लोक परंपराओं का भी अद्भुत समन्वय रहा। समन्वय भी ऐसा जिसने उक्त तीनों पर्वो को एकाकार करते हुए खिचड़ी सा रूप दे डाला है। वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित इन महान पर्वो की परंपरा के साथ आस्था पूर्वक जुड़ी आधी आबादी रिश्तों की संवेदना, पारिवारिक जिम्मेदारी व प्रकृति के प्रति उत्तरदायी भारतीय नारी की अद्भुत ममतामयी समन्वित झलक प्रस्तुत कर रही थी।
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गोवर्धन पूजन स्थल पर ही अन्नकूट
मान्यता है कि माता अन्नपूर्णा का पूजन करने से वर्ष पर्यत घर में अन्न-धन की कमी नहीं होती। भगवान आशुतोष भोले भंडारी शिव ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षादान लिया था। श्रद्धालु महिलाओं ने 'अन्नकूट महोत्सव' गोवर्धन पूजा स्थल पर ही मनाया। ईट पर नए धान का लावा, सुपारी, पान आदि को कूटकर माता अन्नपूर्णा देवी की स्तुति करते हुए वर्ष पर्यत धन-धान्य पूर्ण स्वस्थ पारिवारिक जीवन की कामना की। बच्चों ने दूसरे दिन भी पटाखे छोड़कर पर्व के उत्तरार्द्ध का आनंद उठाया।
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भाई की दीर्घायु के लिए भैयादूज
पर्वो की त्रिवेणी के अवसर पर भैया दूज व्रत का पालन करती हुई कुमारी कन्याओं एवं महिलाओं ने अपने भाइयों की दीर्घ जीवन की कामना किया। बहनों ने भाई को तिलक लगाए और उनकी लंबी आयु हेतु कपास व सरपत के झुरमुटों में गांठें बांधने की परम्परा का पालन किया। यथासंभव भाइयों ने भी अपनी विवाहिता बहनों के घर जाकर भोजन किए तथा उन्हें उपहार भेंट किए। मान्यता है कि यम द्वितीया के दिन यमुना में भाई-बहन के एक साथ स्नान करने से दोनों परिवारों का कल्याण होता है तथा रिश्तों की माधुर्यता एवं आयु में वृद्धि होती है। लोकरीतियों के अनुसार बहनों ने पहले अपने भाइयों को श्राप दिया, फिर इसके प्रायश्चित लिए अपनी जीभ को कांटों से छेदा और फिर दीर्घायु के लिए भगवान से प्रार्थना की। इसी दिन पिड़िया व्रत के लिए भी बहनों ने पिड़िया बनाकर रखा।