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अपने-अपने कान्हा, अपना-अपना जन्मोत्सव

राहुल ¨सघई, मथुरा: कान्हा, लाला, गिरधर, गोपाला, गो¨वद, माखनचोर। हजारों नाम वाले कृष्ण की पावन भूमि

By Edited By: Published: Fri, 26 Aug 2016 01:27 AM (IST)Updated: Fri, 26 Aug 2016 01:27 AM (IST)

राहुल ¨सघई, मथुरा: कान्हा, लाला, गिरधर, गोपाला, गो¨वद, माखनचोर। हजारों नाम वाले कृष्ण की पावन भूमि ब्रज। यहां सबके कान्हा हैं तो जन्मोत्सव भी सबके यहां होता है। पूरा विश्व जहां अष्टमी की रात 12 बजे रोहिणी नक्षत्र में मनाता है, वहीं यहां कई जगह कान्हा अलग समय और अलग हिसाब से जन्म लेते हैं। मथुरा में जन्मभूमि पर अष्टमी की रात 12 बजे जन्म होता है, तो नंदगांव, गोकुल में अपनी गणना से उत्सव मनाया जाता है। जन्मोत्सव के पीछे अपनी-अपनी मान्यता है और अपनी-अपनी परंपरा।

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पूरे देश और कृष्ण जन्मभूमि में गुरुवार रात 12 बजे जन्मोत्सव बनाया गया। सचिव श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान कपिल शर्मा के अनुसार कृष्ण जन्म अष्टमी की रात 12 बजे रोहिणी नक्षत्र में हुआ। जन्मस्थान पर इसी तिथि और नक्षत्र के हिसाब से कार्यक्रम होता है। इस बार अष्टमी रात आठ बजकर पांच मिनट को समाप्त हो रही थी, लेकिन जन्म के समय रोहिणी नक्षत्र था। इसी हिसाब से जन्मोत्सव मनाया।

वहीं मथुरा के मल्लपुरा स्थित प्राचीन केशवदेव मंदिर में बुधवार रात 12 बजे लाला जन्मे और जय कन्हैया लाल की हुई। केशवदेव मंदिर के सेवायत मुन्नीलाल गोस्वामी कहते हैं कि भगवान का जन्म रोहिणी नक्षत्र के शुरू में हुआ। अबकी बुधवार को अष्टमी शुरू हुई थी और रोहिणी नक्षत्र भी था, इसलिए बुधवार की रात जन्मोत्सव मनाया गया।

गुरुवार को वृंदावन स्थित गौड़ीय संप्रदाय के राधारमण मंदिर में सुबह दस बजे कान्हा जन्मे। राधारमण मंदिर के सेवायत वैष्णवाचार्य शरदचंद गोस्वामी कहते हैं कि चैतन्य महाप्रभू के परम शिष्य गोपाल वत्स गोस्वामी नर¨सह चतुर्दशी पर यमुना स्नान से लौटे, तो राधारमण विग्रह के रूप में शालिगराम से अवतरित हुए। प्राकट्य सुबह था, इसलिए जन्मोत्सव सुबह दस बजे मनाया जाता है। श्रीकृष्ण के रूप राधरमन विग्रह में गो¨वद देव, गोपीनाथ और मदनमोहन का समावेश है। राधादामोदर मंदिर और शाहजी मंदिर में भी सुबह ही जन्मोत्सव मनाया जाता है।

नंदबाबा के गांव नंदगांव में शु्क्रवार की रात कान्हा का जन्म होगा। नंदबाबा मंदिर के सेवायत दीपक गोस्वामी कहते हैं कि भगवान कृष्ण का जन्म रक्षाबंधन के आठ दिन बाद हुआ था। पंचाग तिथि घट-बढ़ जाती है। इस विवाद को खत्म करने के लिए बुजुर्गों ने यहां खुरगिनती शुरू की। यानि अंगुलियों पर गिनती कर आठवें दिन रात 12 बजे जन्म होता है। इसी उत्सव मनाया जाता है। कभी-कभी जन्मस्थान और नंदगांव में एक समय ही जन्मोत्सव हो जाता है।


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