गठबंधन की अटकलों से सपा प्रत्याशी हलकान
जागरण संवाददाता, मथुरा: राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन की अटकलों से पूरे एक महीने मथुरा के भाजपाइयों की न
जागरण संवाददाता, मथुरा: राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन की अटकलों से पूरे एक महीने मथुरा के भाजपाइयों की नींद उड़ी रही। अब रविवार से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों का रक्तचाप भी बढ़ रहा है। मथुरा की पांच में से चार विधानसभा सीटों पर रालोद हमेशा से ही मजबूत रहा है। सपाइयों की दिक्कत यह है कि यदि गठबंधन हुआ, तो सपा को यह सीटें रालोद के लिए खाली करनी पड़ेंगी। मथुरा-वृंदावन सीट पर दोनों ही दल वजूद में नहीं हैं। गठबंधन में यह सीट किसी भी दल के खाते में जा सकती है।
मथुरा रालोद का हमेशा ही गढ़ रहा है, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की ऐसी आंधी चली कि भाजपा प्रत्याशी हेमा मालिनी ने पांचों विधानसभा क्षेत्रों में जबरदस्त बढ़त के साथ जीत हासिल की। रालोद बुरी तरह से पराजित हुई। आगामी विधानसभा चुनाव से पहले रालोद संजीवनी की तलाश में है। पहले जेडीयू से विलय की चर्चा के मध्य अप्रैल में मथुरा में ही पहली रैली होनी थी, लेकिन यकायक भाजपा से बात चलने पर यह रैली नहीं हो सकी। इसके बाद पूरे एक माह तक भाजपाइयों की नींद उड़ी रही। मई के दूसरे पखवाड़े में साफ हो सका कि रालोद-भाजपा गठबंधन नहीं हो रहा है।
अब वैसी ही स्थिति से सपा प्रत्याशी गुजर रहे हैं। सपा ने मांट, छाता और गोवर्धन में अपने प्रत्याशी घोषित किए हुए हैं। बलदेव और मथुरा-वृंदावन सीट पर प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की गई है। सपा नेताओं का मानना है कि यदि गठबंधन हुआ तो सपा मुखिया के निर्देश के अनुसार ही चुनाव लड़ना होगा। पिछले विधानसभा चुनाव में सपा ने मांट में जरूर दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी, लेकिन तब समीकरण एकदम जुदा थे। मथुरा-वृंदावन सीट पर सपा ने पचास हजार करीब वोट हासिल किए थे, लेकिन यहां भी तब राजनीतिक समीकरण बदले हुए थे। मथुरा-वृंदावन क्षेत्र में रालोद का करीब तीस हजार जाट वोट माना जाता है। ऐसे में यह सीट रालोद और सपा में से कोई भी हथिया सकता है। रालोद नेताओं की मानें तो गठबंधन की स्थिति में मथुरा की किसी भी सीट पर रालोद को सपा से खास लाभ मिलने की स्थिति नहीं है। गठबंधन से सपा को ही फायदा होगा। फिलहाल सपा मान रही है कि गठबंधन हुआ तो पार्टी को पश्चिमी उप्र में लाभ हो सकता है।