ठाकुरजी की सेवा में 'भाव' नहीं, मोलभाव
जागरण संवाददाता, मथुरा: ठा. बांकेबिहारी की कच्ची रसोई में खलल यूं ही नहीं पड़ा। धीरे-धीरे सेवायतों के
जागरण संवाददाता, मथुरा: ठा. बांकेबिहारी की कच्ची रसोई में खलल यूं ही नहीं पड़ा। धीरे-धीरे सेवायतों के भाव की परतें खुलती जा रही हैं। कच्चे भोग की बजाय पकवान पहले भी चढ़ाए जा चुके हैं। कष्टदायी बात ये सामने आई है कि ठाकुर जी की सेवा के बदले मिलने वाले पारितोषिक के रूप में सेवायतों को ज्यादा पैसा चाहिए। प्रबंध समिति ने हालांकि अभी इस पर रजामंदी नहीं दी है।
ठा. बांकेबिहारीजी के परम भक्त सेठ हरगुलाल बेरीवाला ने 1955 में ठा. बांकेबिहारीजी के राजभोग में कच्चे प्रसाद की जिम्मेदारी उठाना शुरू किया। आज भी उनके वंशज राधेश्याम बेरीवाला कच्ची रसोई की व्यवस्था कर रहे हैं, मगर कच्ची रसोई तैयार करने का जिम्मा मंदिर सेवायतों का ही होता है। जो सेवायत परिवार इस जिम्मेदारी को निभाते रहे, उन्हें बेरीवाला परिवार की ओर से पारितोषिक के रूप में आर्थिक मदद मिलती है, लेकिन पिछली 15 अप्रैल को अचानक ठाकुरजी की कच्ची रसोई तैयार कर रहे परिवार ने काम करने में असमर्थता जता दी।
सेवायत के अनुसार, व्यक्तिगत कारणों से वह अब अपनी सेवाएं देने में सक्षम नहीं हैं। मंदिर प्रबंध कमेटी ने अन्य सेवायतों से यह जिम्मेदारी निभाने की अपील की। मुनादी भी करवाई, मगर कोई तैयार न हुआ। उसके बाद तीन सेवायतों ने मंदिर की मर्यादा और परंपरा का ध्यान रखते हुए कच्ची रसोई बनाने का प्रस्ताव 24 अप्रैल को दिया, जिस पर प्रबंध कमेटी ने उन्हें मौका दिया। पारितोषिक के तौर पर कुछ धनराशि भी उन्हें हर महीने देने का एलान भी कर दिया, लेकिन कच्ची रसोई बनाने की जिम्मेदारी उठाने आगे आए सेवायतों ने पारितोषिक और बढ़ाने की मांग कर डाली। अब प्रबंध कमेटी ने इन सेवायतों की बात मानने से इन्कार कर दिया।
प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष नंदकिशोर उपमन्यु का कहना है कि कमेटी उन्हें वेतन तो दे नहीं सकती। जो भी पारितोषिक दे रही है, उसे लेकर ठाकुरजी की सच्चे मन से उन्हें सेवा करनी चाहिए।