'सूखी होली-सांझी होली' के पक्षधर वृंदावन के संत
जागरण संवाददाता, मथुरा (वृंदावन): होली परस्पर प्रेम और सौहार्द्र से मनाया जाने वाला त्योहार है। वही
जागरण संवाददाता, मथुरा (वृंदावन): होली परस्पर प्रेम और सौहार्द्र से मनाया जाने वाला त्योहार है। वहीं वृंदावन के संत 'सूखी होली सांझी होली' के पक्षधर हैं। कहते हैं कि रसायनयुक्त रंगों से परहेज हो। इससे पानी की बर्बादी रुकेगी और टेसू के फूलों से बने गुलाल का प्रयोग कर यह त्योहार मनाया जाए।
श्रीधाम के संतों का कहना है आज पानी पूरे देश में बड़ी समस्या बन गया है। खेतों में सिंचाई को पानी नहीं मिल रहा तो अनेक लोग पेयजल को तरस रहे। ऐसे में यदि रंगों के साथ होली खेली जाएगी तो निश्चित रूप से पानी की बर्बादी होगी। रसायनयुक्त रंग शरीर पर बुरा प्रभाव डालेंगे। चिकित्सक कहते हैं कि इससे एलर्जी भी हो जाती है। आंख में यदि रसायनयुक्त रंग चला जाए तो आंखें लाल पड़ जाती हैं। अत: ऐसे रंगों से परहेज होना ही चाहिए।
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- होली खेलें पर पानी बचाएं
सुदामाकुटी के संत सुतीक्ष्ण दास कहते हैं कि होली राष्ट्रीय पर्व के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। सभी लोगों को चाहिए कि वे रसयानयुक्त रंगों से बचकर होली खेलें और जो पानी बच रहा उसका प्रयोग पेड़ों और पौधों को सींचने में करें।
- रंगों की बौछार गुलाल से हो
उमापीठ के संत रामदेवानंदाचार्य कहते हैं कि रसायनयुक्त रंगों को पानी में घोलकर प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। रंगों की बौछार करो, लेकिन सूखे टेसू के फूलों से बने गुलाल से हो। रसायनयुक्त रंग शरीर को नुकसान करेगा।
- पेड़ लगाकर मनाएं होली
बैरागी बाबा आश्रम के संत हरिबोल बाबा का कहना है कि होली पर कुछ नया करने से पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी। सभी को इस दिन कम से कम एक पौधा लगाना चाहिए। रसायनयुक्त रंगों से बचना चाहिए।
-रंगों से परहेज कर मनाएं होली
इमलीतला मंदिर के संत तमालकृष्ण दास ने कहा कि होली त्योहार प्रेम और सौहार्द्र का प्रतीक माना जाता है। केवल गुलाल लगाकर एक-दूसरे के प्रति प्रेम प्रदर्शित करने से आने आनंद की अनुभूति होगी।