Move to Jagran APP

माता-पिता का सपना पूरा करने को भारती की जंग

जागरण संवाददाता, मथुरा: होश संभाला तो जिंदगी में खुद को अकेला पाया। अपने माता-पिता की धुंधली यादें ज

By Edited By: Published: Tue, 30 Sep 2014 11:25 PM (IST)Updated: Tue, 30 Sep 2014 11:25 PM (IST)
माता-पिता का सपना पूरा करने को भारती की जंग

जागरण संवाददाता, मथुरा: होश संभाला तो जिंदगी में खुद को अकेला पाया। अपने माता-पिता की धुंधली यादें जेहन में थीं। जो याद दिलाती थीं कि उनकी तमन्ना उसे एक पुलिस अधिकारी बनाने की थी। सड़क हादसे में माता-पिता की मौत हो गई थी। हालांकि तब उसकी उम्र बहुत छोटी थी। मगर जैसे-जैसे होश संभाला तो जीवन के पथ पर मजबूत इरादे के साथ जिंदगी में आगे बढ़ने का संकल्प लिया इस बेटी ने।

loksabha election banner

जिस उम्र में बच्चे अपने माता-पिताकी उंगली पकड़कर चलते हैं, उस अवस्था में भारती को काम करना पड़ा था। विषम परिस्थितियों में विचलित न होकर उसने दृढ़तापूर्वक जिंदगी की कड़वी सच्चाइयों का सामना किया। जयसिंह पुरा में किराए पर रहने वाली भारती पासवान अपने बारे में बताना शुरू करती हैं, तो माता-पिता की याद आते ही आंखें भर आती हैं। जैसे ही उसे उनका सपना याद आता है तो सभी दु:ख अपने अंदर समेट लेती हैं। पूरे आत्म विश्वास के साथ बताती हैं कि मम्मी-पापा बचपन में मुझे पुलिस अधिकारी बनाने का सपना देखते थे। बस इसी सपने को साकार करने के लिए वह पढ़ रही हैं। बीए फाइनल की छात्रा भारती बताती हैं कि जब वह पांच-छह वर्ष की थी, तभी मम्मी-पापा की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। यह भी नहीं पता कि वह कहां के रहने वाले थे। बस नाम से अंदाजा लगाती हैं कि शायद वह मूलरूप से बिहार के रहे होंगे। सिर से माता-पिता का साया हटते ही कुछ लोग उसे मां धाम आश्रम ले गए। वह वहीं रहकर काम करती रही। भारती बताती है कि जब वह काम करती हैं तो कॉलेज की फीस स्वयं भरती हैं। काम छूटने पर आश्रम वाले सहायता करते हैं। किसी हॉस्पिटल में काम मिलता है तो नाइट ड्यूटी करती हैं। दिन में कॉलेज जाकर पढ़ाई करनी होती है।

बहुत याद करते होंगे मम्मी-पापा

भारती कहती हैं कि मम्मी-पापा की शक्ल भी उसे ठीक से याद नहीं है। मगर जब भी वह परेशान होती है तो मम्मी-पापा सपने में आते हैं। इससे पता लगता है कि वह उसे बहुत प्यार करते होंगे। उन्हें याद करने से कई परेशानियां दूर हो जाती हैं और काम भी बन जाता है।

सरकारी सहायता को ढाई साल से लगा रही चक्कर

जिंदगी में दुखों का पहाड़ है। जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी सहायता के लिए कदम बढ़ाया तो कागजों का ऐसा अड़ंगा लगा कि कन्या विद्या धन योजना के लिए वह ढाई साल से चक्कर काट रही है।

मां-बाप थे मजदूर

भारती के अनुसार उसके माता-पिता ज्यादा पढ़े- लिखे नहीं होंगे। शायद वह मजदूर होंगे। मगर वह चाहते होंगे कि उनकी संतान अच्छा और बेहतर जीवन जी सके। समाज में अकेली लड़की को जीने के लिए चट्टान की तरह मजबूत होना पड़ता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.