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सुरीर में खत्म नहीं हो रहा 'राम वनवास'

By Edited By: Published: Fri, 19 Sep 2014 06:36 PM (IST)Updated: Fri, 19 Sep 2014 06:36 PM (IST)
सुरीर में खत्म नहीं हो रहा 'राम वनवास'

मथुरा(सुरीर): कस्बा सुरीर में पिछले एक दशक से रामलीला का मंचन न होने से लोग राम-लक्ष्मण का प्यार, हनुमानजी की उछल-कूद देखने और रावण का अट्टाहास सुनने को तरस गए हैं। आपसी मनमुटाव व अपनी संस्कृति के प्रति युवाओं में बढ़ती उदासीनता के चलते राम का वनवास खत्म नहीं हो पा रहा है।

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कस्बा के थोक कला व थोक विजऊ में अलग-अलग करीब पाच दशक से रामलीला का मंचन स्थानीय कलाकार आपसी सहयोग से करते आ रहे थे। इसमें राम, लक्ष्मण का प्यार, भरत का भ्रात प्रेम, हनुमानजी की भक्ति, परशुराम का क्रोध, शबरी के बेर देखने व रावण का अट्टाहास सुनने को मिलता था। दोनों ओर से शिव बारात, राम बारात और काली की सवारी बैंडबाजों के साथ निकाली जाती थीं। रामलीला व आकर्षक झाकियों को देखने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ती थी, लेकिन आपसी मनमुटाव व सहयोग न मिलने से पिछले एक दशक से सुरीर में दोनों स्थानों पर रामलीला का मंचन नहीं हो रहा है।

कलाकारों का कहना..

-रामलीला में अंगद की भूमिका निभाने वाले लालबहादुर आर्य का कहना है कि अब रामलीला केप्रति लोगों का रवैया बदल गया है। आपसी मनमुटाव व सहयोग न मिलने से रामलीला का आयोजन नहीं हो पा रहा है। उनके दिल में आज भी रामलीला के प्रति एक हूक सी उठती है।

-दशरथ की भूमिका करने वाले निर्मल गौड़ का कहना है कि आपसी सहयोग और योगदान न मिलने से राम लीलाओं का मंचन नहीं हो पा रहा है। जबकि यह आयोजन हमारी धर्म और संस्कृति की पहचान हैं।

-रामलीला में रावण की भूमिका निभाने वाले मनीशकर वाष्र्णेय का कहना है कि रामलीला बंद होने से उन्हें काफी दुख हुआ है। यह रामलीला कोई मनोरंजन नहीं, बल्कि हमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शो को नजदीकी से देखने और समझने का दर्पण होता है।

-रामलीला से जुड़े सुनील वाष्र्णेय, मोहनश्याम शास्त्री, अजय बजाज, मनोज रावत, सुरेश सिंह, कलुआ चौहान, महेंद्र शर्मा, जितेंद्र वाष्र्णेय आदि का कहना है कि आधुनिकता के दौर में कम होती दिलचस्पी और आपसी सहयोग न मिलना बड़ी समस्या है। यदि लोग मनमुटाव छोड़ मिलजुलकर फिर से आयोजन शुरू करें, तो भगवान की लीलाओं के श्रवण से सबका उद्धार हो।

कहते हैं लोग..

रामलीला न होने के पीछे आपसी सहयोग एवं कलाकारों की कमी नजर आ रही है। सुरीर में रामलीला न होना अच्छा नहीं लग रहा है।

डॉ. रामबाबू शर्मा

अपने धर्म और संस्कृति को नजदीकी से देखने और समझने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की लीलाओं का मंचन पहले की तरह होना चाहिए। इसके लिए वह सहयोग को तैयार हैं।

वीरेंद्र बहादुर वाष्र्णेय।

सुरीर में रामलीला बंद होने के पीछे हमारा ही समाज जिम्मेदार है। हमें अपनी कमिया ढूंढ कर पहले की तरह धूमधाम से रामलीला महोत्सव शुरू करने को आगे आना चाहिए।

श्याम सिंह

आधुनिकता की दौड़ में युवा वर्ग को आज श्रीराम के आदर्शो की राह दिखाने के लिए रामलीला आयोजन में उन्हें आगे करने की आवश्यकता है।

रघुनाथ प्रसाद एड.।


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