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कत्ल की रात नहीं आई नींद

By Edited By: Published: Wed, 23 Apr 2014 11:47 PM (IST)Updated: Wed, 23 Apr 2014 11:47 PM (IST)

जागरण संवाददाता, मथुरा: गर्मी की तपिश में दौड़-धूप से तो निजात मिल गई है, लेकिन माथा-पच्ची जारी रही। स्थिति यह रही कि कत्ल की रात को उन्हें ठीक से नींद भी नहीं आई। आधी रात के बाद करवट बदल-बदल कर रात गुजारी, बीच में उठकर पानी भी पिया, टीवी देखा, फिर सो गए, लेकिन कमबख्त नींद नहीं आई। जैसे-जैसे अल सुबह आंखें लग भीं गई, लेकिन एक-दो घंटे बाद समर्थकों ने फिर दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया। आंखें मलते हुए खड़े हुए और जुट गए एक-एक वोट सहेजने के गणित में।

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बुधवार को भी दिनभर समर्थकों के साथ मीटिंग हॉल में पसीना बहाया। गांव-गांव के पोलिंग बूथों के लिए बने पोलिंग एजेंट और एएलओ को गुरुवार के लिए मतदान की जिम्मेदारियां सौंपी गई। बस्ते बांटे गए और मतदाता सूची की कॉपी व पर्ची उपलब्ध कराई गई। साथ ही उनसे अपने-अपने पक्ष में अधिक से अधिक मतदान कराने को कहा गया।

सभी सियासी दलों की चुनावी गतिविधियां मंगलवार शाम से ही बंद हो गई, लेकिन गोपीनीय तरीके से प्रत्याशी और उनके खासमखास चुनिंदा लोगों से संपर्क करते रहे। किसी के घर पर जाना पड़ा तो किसी को अपने घर ही बुला लिया और ज्यादातर से फोन के जरिये संपर्क साधा गया। सुबह से ही लगभग सभी प्रमुख प्रत्याशियों के आवासों पर उनके समर्थकों का मजमा लगा रहा। कोई बस्ता लेने आया था तो कोई सलाह-मशविरा देने। इनमें ज्यादातर पोलिंग एजेंट और एएलओ शामिल थे, जिन्हें मतदाताओं के लिए पर्ची बनाने और उनकी सहूलियत के लिए गांव-गांव तैनात किया गया है।

दोपहर तक यही गहमा-गहमी रही, लेकिन दोपहर बाद उम्मीदवारों के निवासों से भीड़ हल्की हुई और खास समर्थकों के साथ मीटिंग हॉल में रणनीति बनाई गई। बीच-बीच में चाय की चुस्की और कोल्ड ड्रिंक्स के घूंट भरकर तसल्ली लेते रहे, लेकिन फिर भी उनके माथे पर पसीना कम नजर नहीं आ रहा था। सभी को यही चिंता सता रही थी कि फलां गांव और फलां कस्बे में स्थिति मजबूत नहीं है, वहां ऐसा आदमी लगाओ जो उन्हें अपने फेवर में कर सके। इसी हिसाब-किताब में कब सुबह से दोपहर, दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई पता ही नहीं चला। रात भी खंबख्त ऐसी आई कि नींद बिछुड़ गई। ये रात कोई आम रातों की तरह नहीं थी, बल्कि कत्ल की रात थी।

जीत-हार के समीकरण जोड़ते राजनीति के गणितज्ञ

प्रत्याशी और उनके समर्थन करीब दो महीने के चुनाव प्रचार अभियान के बाद यह समीक्षा करते रहे किसी जाति में उनका क्या गणित है। वोटिंग प्रतिशत और मौसम पर चर्चा होती रहीं। किसी के लिए अधिक मतदान फायदा का सौदा बताया जा रहा था तो किसी के लिए नुकसानदायक। हर वर्ग, जाति, गांव और कस्बों में अपने-अपने और विरोधियों के जातिगत वोटों को लेकर दिनभर व देर रात तक गुणा-भाग होते रहे।

यहां भी रही गहमा-गहमी

सिर्फ सियासी लोग ही परेशान नहीं दिखे, बल्कि सरकारी अमला भी पसीना-पसीना होता रहा। जिला निर्वाचन कार्यालय और मंडी समिति में पोलिंग पार्टियों की रवानगी, बूथों पर व्यवस्थाओं और सुरक्षा आदि को लेकर अधिकारियों के माथे पर भी सिकन देखी गई। निर्वाचन कार्यालय के लोगों का दिनभर आपा-धापी में ही बीता।


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