सत्य के पथ पर चलना ही ईश्वर भक्ति
मैनपुरी : नगर के कचहरी रोड स्थित कबीर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग के दौरान प्रवचन करते हुए आश्रम के महंत अमर साहिब ने कहा कि मानव जीवन एक कर्मभूमि है। इसमें कर्म करने से पहले सभी स्वतंत्र हैं लेकिन कर्म के बाद संस्कार स्वयं बन जाता है। अगर दुर्गध देने वाली वस्तु का सेवन किया जाएगा तो मुंह से दुर्गध ही आयेगी। सुगंधित वस्तु के सेवन से सुगंध आयेगी। क्रिया की प्रतिक्रिया स्वयं होती है।
उन्होंने कहा कि सुर नर मुनि अरु देवता सात दीप नौ खंड, कहें कबीर सब भोगिया देह धरे को दंड। उन्होंने कहा कि एक गुरु ने अपने तीन शिष्यों की परीक्षा लेने के लिए तीनों को एक-एक फल देकर कहा कि इसे ऐसे स्थान पर खाकर आओ जहां कोई देखता न हो। इस पर दो शिष्य तो फल खाकर आ गये। तीसरा शिष्य फल लेकर एक निर्जन स्थान पर पहुंचा मगर वह सोचने लगा कि यहां हमारी आत्मा देख रही है और लौटकर अपने गुरू से कहा कि मुझे कोई ऐसा स्थान नहीं मिला जहां कोई देख न रहा हो। हमारी आत्मा हर समय पीछा करते हुए हमारे कर्म को देख रही थी। गुरू ने उसकी बात सुनकर तीनों शिष्यों से अधिक ज्ञानी माना और अपना उत्तराधिकारी चुना। उन्होंने कहा कि जब हमारे अंदर इतनी जागरुकता आ जाएगी कि आत्मा के सामने सारे कार्य होते हैं तो हम गलत कार्य नहीं कर पायेंगे। हमें हर जगह परमात्मा दिख जाए यही दिव्य दृष्टि है। उन्होंने कहा कि एक ही चाबी से ताला लगता है और एक ही चाबी से खुलता है। इसी प्रकार मन रूपी चाबी को सत्य की तरफ घुमाने से मुक्ति का द्वार खुलता है और असत्य की तरफ घुमाने से मुक्ति का द्वार बंद होता है। प्रेम की निर्मलता से कार्य करना पूजा बन जाती है। सत्य पथ पर चलकर जिस दिन मानवता आयेगी तब न मजहब व्याप्त होगा और न जाति आयेगी। सत्य के पथ पर चलना ही पूजा और तीर्थ है। ज्ञान की अग्नि में दुर्व्यसन और दुष्कर्मो की आहुति लगा देना ही सच्चा ग्रंथ है। आत्मा की आवाज के अनुरूप किये गये कार्य ही सच्ची पूजा हैं। इस पर चलकर व्यक्ति मुक्ति पा सकता है। सत्संग में साधु, संतों के अतिरिक्त श्रद्धालु भक्तजन बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
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