परिषदीय स्कूलों के खेल मैदान बदहाल
मैनपुरी : शासन ने स्कूलों में खेल को अनिवार्य शिक्षा के तौर पर शामिल कर लिया है। विद्यालयों में प
मैनपुरी : शासन ने स्कूलों में खेल को अनिवार्य शिक्षा के तौर पर शामिल कर लिया है। विद्यालयों में प्रतिदिन अंतिम वादन में खेल प्रतियोगिताएं कराने की भी व्यवस्था की गई है। मगर, जिले के परिषदीय स्कूलों का हाल देखिए, कुछ को छोड़कर बाकी किसी भी विद्यालय के पास खेल मैदान नहीं हैं। हाल यह है कि सुविधाओं के अभाव में स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे खेल से कोसों दूर हैं। कहीं स्कूल में खेल के मैदान पर दबंग पशु बाध रहे हैं तो कहीं ट्रैक्टर-ट्रॉली खड़ी कर रहे हैं।
प्राथमिक विद्यालय नगला पजाबा
मैनपुरी-कुरावली मार्ग के मोड़ पर स्थित है यह प्राथमिक विद्यालय। विद्यालय में आधा सैकड़ा से ज्यादा बच्चे पंजीकृत हैं। खेल मैदान के नाम पर खाली जगह है। सुरक्षा की दृष्टि से विद्यालय को चहारदीवारी से लैस कराया गया था लेकिन क्षेत्र के दबंगों ने दीवार को ध्वस्त कर दिया है। अब बच्चों के खेल का मैदान ग्रामीणों की भैंसों को बांधने के काम आ रहा है। प्रधानाध्यापिका का कहना है कि उन्होंने कई बार शिक्षाधिकारियों से कहा लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। बच्चों के खेलने के लिए जगह ही नहीं है।
प्राथमिक विद्यालय पुलिस लाइन
कांशीराम कॉलोनी नगला कीरत में संचालित होने वाले प्राथमिक विद्यालय में एक सैकड़ा से ज्यादा बच्चे तो हैं लेकिन इन बच्चों के खेलने के लिए मैदान नहीं है। यहां भी शिक्षा विभाग द्वारा चहारदीवारी का निर्माण नहीं कराया गया है। ऐसे में विद्यालय परिसर स्थानीय लोगों की आवाजाही का आम रास्ता बन चुका है। दिनभर जुआरियों का डेरा विद्यालय के आसपास ही लगा रहता है। ऐसे में बच्चों की खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन कराना संभव ही नहीं होता।
दूसरे विद्यालयों में होता है आयोजन
कई परिषदीय स्कूलों के पास अपने खेल मैदान नहीं हैं। ऐसे में जब भी शासन के निर्देश पर प्रतियोगिताओं का आयोजन कराया जाता है तो विद्यालय के शिक्षकों को दूसरे सुविधा संपन्न विद्यालयों का मुंह ताकना पड़ता है। ज्यादातर प्रतियोगिताओं का आयोजन आगरा रोड स्थित राजकीय इंटर कॉलेज, राजकीय कन्या इंटर कॉलेज, गंगासहाय कन्या इंटर कॉलेज में कराया जाता है।
बोले लोग
'सरकार परिषदीय स्कूलों पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है लेकिन खेल सुविधाओं के लिए कोई ध्यान नहीं नहीं देती है। अगर, सुविधाएं मिलें तो इन स्कूलों से भी प्रतिभाएं निखर सकती हैं।
शरद यादव।
'ज्यादातर परिषदीय स्कूलों के पास अपने खेल मैदान नहीं हैं। शिक्षक बच्चों को खेल के बारे में जानकारी तो देते हैं लेकिन उन्हें अभ्यास कराने के लिए उनके पास भी कोई विकल्प नहीं होते हैं। खेल के मैदान को विकसित किया जाना चाहिए।
सुनील यादव।
'स्कूलों के पास खेल का सामान भी नहीं है। अधिकांश परिषदीय स्कूलों में बच्चों को खेलने के लिए कोई सामान नहीं दिया जाता है। प्रशिक्षकों द्वारा भी बच्चों को प्रशिक्षित बनाने के लिए गतिविधियां संचालित नहीं की जाती हैं।
शुभम पांडेय।
'शिक्षा अधिकारियों को चाहिए कि विद्यालयों की टूटी चहारदीवारी को दुरुस्त कराकर बच्चों के खेलने के इंतजाम कराएं। प्रतिदिन एक वादन सिर्फ खेल का ही आयोजित हो ताकि बच्चे खेल के बारे में समझ सकें।
सुधीर कुमार।
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'जिन विद्यालयों की चहारदीवारी टूटी हैं, उनके प्रधानाध्यापक लिखित शिकायत करें। समय-समय पर खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन भी कराया जाता है। हां, कुछ विद्यालयों के पास खेल मैदानों का अभाव है लेकिन जितनी भी जगह है, उतने में ही बच्चों को खेलों की जानकारियां देकर उन्हें प्रशिक्षित करने का प्रयास किया जाए।
रामकरन यादव, जिला बेसिक शिक्षाधिकारी, मैनपुरी।