काश! यह बदहाली भी बनती चुनावी मुद्दा
महराजगंज:
भारत-नेपाल सीमा से महज तेरह किलोमीटर पर स्थित स्थानीय उपनगर में बना निचलौल डिपो काफी महत्व रखता है। इसके बावजूद विभाग के अधिकारी व कर्मचारियों की नजर नहीं पड़ती। क्योंकि मामूली कमियां दर्शाकर जुलाई-अगस्त 2007 में जिला मुख्यालय पर अस्थायी रूप से स्थानांतरित करा दिया गया। उस समय लोगों को यह कहकर आश्वस्त किया गया कि वर्कशाप की मरम्मत होने के बाद डिपो अपने पुराने घर में वापस आ जाएगा। मगर आज तक यह नहीं हो सका। इस बारे में क्षेत्रीय लोगों द्वारा कई बार किया गया धरना-प्रदर्शन भी बेमतलब साबित हो रहा है। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की उदासीनता भी डिपो वापसी में बहुत बड़ी बाधा है। वर्ष 2008 में शासन से अवमुक्त किये गये धन से डिपो की मरम्मत भी कराई गई। दीवारों पर रखरखाव के अभाव में घास फूस उग आयी है। झाड़-झंखाड़ इसकी बदहाल स्थिति का खुद बयान कर रहे हैं।
मालूम हो कि विकास को नया आयाम देने के लिए वर्ष 1989 में महराजगंज जिला घोषित होने के साथ निचलौल-ठूठीबारी मुख्य मार्ग पर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की निचलौल डिपो की स्थापना हुई। यह डिपो आज भी प्रशासनिक व विभागीय उपेक्षा का शिकार रहा है। इसी के परिणाम स्वरूप जुलाई 2007 में परिसर में हुए जलभराव, डीजल टैंक में पानी चले जाने के बाद क्षेत्रीय प्रबंधक गोरखपुर के निर्देश पर इसे इस आश्वासन पर जिला मुख्यालय स्थानांतरित कर दिया जाएगा। इस बारे में स्थानीय लोगों द्वारा किये गये धरना-प्रदर्शन के बाद परिवहन निगम ने कार्यशाला की मरम्मत के लिए वर्ष 2008 में लगभग 32 लाख रुपये अवमुक्त किया गया। कार्यशाला की मरम्मत हुए काफी वक्त गुजर गया। एआरएम द्वारा कार्य समाप्ति के बाद इसका निरीक्षण कर ओके भी कर दिया गया। जब निचलौल डिपो जिला मुख्यालय से वापस भेजने की बात आयी तो विभाग के उच्चाधिकारी अपने वादे से मुकर गये। हालांकि महराजगंज के लिए अलग से डिपो बनकर तैयार है फिर भी कुछ विभागीय अधिकारी व कर्मचारी इस कार्य में रोड़ा अटका रहे हैं। वीरानी की चादर ओढ़े निचलौल डिपो अपने को पुराने स्थान पर आबाद होने के लिए भागीरथ का इंतजार कर रहा है।