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माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड अध्यक्ष व दो सदस्यों के काम करने पर रोक

योग्यता दरकिनार कर सत्ता में पैठ रखने वालों को ही वैधानिक पद पर बैठाने वाली सपा सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए सोमवार को बोर्ड की कार्यवाहक अध्यक्ष अनीता यादव व दो सदस्य आशालता सिंह व ललित कुमार श्रीवास्तव के

By Ashish MishraEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2015 12:57 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2015 08:17 PM (IST)
माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड अध्यक्ष व दो सदस्यों के काम करने पर रोक

लखनऊ। योग्यता दरकिनार कर सत्ता में पैठ रखने वालों को ही वैधानिक पद पर बैठाने वाली सपा सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए सोमवार को माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड की कार्यवाहक अध्यक्ष अनीता यादव व दो सदस्य आशालता सिंह व ललित कुमार श्रीवास्तव के कार्य करने पर रोक लगा दी है। अदालत के इस फैसले से चयन बोर्ड में चल रही विभिन्न पदों की नियुक्तियां प्रभावित होने के आसार हैं।

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यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण टंडन तथा न्यायमूर्ति एके मिश्र की खंडपीठ ने अभिलाषा मिश्रा की याचिका पर दिया है। याची का कहना है कि कुलपति, प्रशासनिक सेवा में सचिव स्तर के अधिकारी, शिक्षा निदेशक या शिक्षा के क्षेत्र में प्रमुख स्थान रखने वाले ही बोर्ड के अध्यक्ष हो सकते हैं। वर्तमान कार्यवाहक अध्यक्ष अनीता यादव अध्यक्ष पद की योग्यता नहीं रखती। ये एलटी अध्यापिका मात्र हैं। इसी तरह सदस्य आशालता सिंह 2007 तक विषय विशेषज्ञ थीं। ललित श्रीवास्तव 2003 तक क्लर्क थे बाद में एलटी अध्यापक हुए। इन दोनों को सदस्य नियुक्त किया गया है जो सदस्य बनने की योग्यता नहीं रखते। अयोग्य सदस्य व अध्यक्ष प्रधानाचार्यों एवं अध्यापकों की नियुक्ति कर रहे हैं। याचिका में अधिकार पृच्छा (कोवारंटो) जारी करते हुए इनके द्वारा चयन करने पर रोक लगाने की मांग की गयी है। इससे पूर्व कोर्ट ने राज्य सरकार से वस्तुस्थिति की जानकारी मांगी थी। संतोषजनक जवाब न मिलने पर पद के योग्य न मानते हुए कोर्ट ने इनके काम करने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को याचिका में उठाये गये मुद्दों पर तीन हफ्ते में व्यक्तिगत जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। याचिका की सुनवाई 8 अगस्त को होगी।

फंसेगी दस हजार से अधिक नियुक्तियां

हाईकोर्ट द्वारा माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष व दो सदस्यों के कामकाज पर रोक लगाने के बाद बोर्ड में दस हजार से अधिक नियुक्तियां सीधे तौर पर प्रभावित होंगी। इसमें टीजीटी-पीजीटी की आठ हजार से अधिक नियुक्तियां भी हैं। सपा सरकार ने इस पद पर सबसे पहले 5 फरवरी 2013 को देवकीनंदन को अध्यक्ष बनाकर भेजा था लेकिन दिसंबर, 2013 में ही उनका निधन हो गया। उसके बाद आशाराम को कार्यवाहक अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। उम्मीद थी कि स्थिति सुधरेगी लेकिन और बिगड़ गई। बोर्ड खुलकर खेमों में बंट गया और प्रधानाचार्य पदों के साक्षात्कार की अनियमितताएं शासन तक गूंजी। परिणाम हुआ कि राज्य सरकार ने आशाराम से कार्यवाहक अध्यक्ष का जिम्मेदारी ले ली और 2 अगस्त 2014 को डा. परशुराम पाल को माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। उनके समय में कार्यों ने गति पकड़ी और टीजीटी-पीजीटी की परीक्षाएं हुईं। इसमें पीजीटी के इतिहास विषय का प्रश्नपत्र रद करने की वजह से उन्हें आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा। डा. परशुराम पाल ने रद हुए प्रधानाचार्य पदों का साक्षात्कार भी शुरू करा दिया लेकिन वह आठ माह ही रह सके। अप्रत्याशित रूप से सरकार ने अप्रैल 2015 में उनसे इस्तीफा ले लिया।

प्रधानाचार्य भर्ती में एक मंडल बाकी

कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय में आया है जबकि प्रधानाचार्य पदों में सिर्फ कानपुर मंडल का साक्षात्कार बाकी है। बाकी मंडलों का साक्षात्कार पूरा किया जा चुका है। कानपुर मंडल का साक्षात्कार भी इसी पंद्रह जुलाई से शुरू किया जाना था।

टीजीटी-पीजीटी का आना था परिणाम

आठ हजार से अधिक भर्ती वाली इन परीक्षाओं के परिणामों की घोषणा बोर्ड ने पिछले हफ्ते से ही शुरू की थी। चार विषयों के 129 अभ्यर्थियों ही अब तक सफल घोषित किया गया है। कुछ और विषयों के परिणाम मंगलवार को घोषित किए जाने थे।


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