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सपा संग्राम : इमोशन-एक्शन, ड्रामा-सस्पेंस और एंटी क्लाइमेक्स

यादव कुनबे में घमासान को थामने की पुरजोर कोशिश में पहले इमोशन, एक्शन, ड्रामा, संस्पेंस और आखिर में 'एंटी क्लाइमेक्स' न सिर्फ सपा दफ्तर के अंदर बल्कि बाहर सड़क पर भी देखने को मिला।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 25 Oct 2016 01:01 PM (IST)Updated: Tue, 25 Oct 2016 06:41 PM (IST)

लखनऊ (राजीव दीक्षित)। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में समाजवादी पार्टी के मंच पर कल जिस नाटकीय अंदाज में घटनाक्रम सामने आता गया, उसमें सियासत पर आधारित बॉलीवुड की किसी ब्लॉकबस्टर के लिए भरपूर मसाला था। मुलायम सिंह यादव की सरपरस्ती में हुई बैठक का कथानक तो पहले ही तैयार हो चुका था।

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यादव कुनबे में मचे घमासान को थामने की इस पुरजोर कोशिश में पहले इमोशन, फिर एक्शन, ड्रामा, संस्पेंस और आखिर में 'एंटी क्लाइमेक्स' का अभूतपूर्व संयोजन न सिर्फ सपा दफ्तर के अंदर बल्कि बाहर सड़क पर भी देखने को मिला और जब यह इमोशनल, एक्शन पैक्ड और संस्पेंस भरा घटनाक्रम खत्म हुआ तो पार्टी टूटने से बचने की उम्मीद लेकर दूरदराज से आये सपा कार्यकर्ता और कन्फ्यूज हो गए।

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मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बेहद जज्बाती अंदाज में कल की बैठक का आगाज किया। अपनी छवि के विपरीत साढ़े चार साल के मुख्यमंत्रित्व काल में पहली बार पिता मुलायम के सामने सार्वजनिक मंच पर तनकर बोलते अखिलेश का भाषण जज्बाती सैलाब में डूबता-उतराता रहा। शायद उन्हें अपनी हिमाकत का भान था और इसी वजह से जब वह अपनी बात पर जोर देते तो उनका गला भर आता।

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जब ऐसा होता तो सामने बैठे सपाई रुमाल के कोने से गीली आंखों के कोने पोंछते। इस कलह के तीसरे कोण शिवपाल ने भी सलीके से बात रखी। वहीं सपा के अभिभावक व संरक्षक की भूमिका में मुलायम अपने संबोधन में अखिलेश को कठघरे में खड़ा करते हुए राजनीतिशास्त्र के व्यवहारिक पक्ष से रूबरू कराते रहे। बैठक को बेहद इमोशनल टच देते हुए आखिर में अखिलेश को जब शिवपाल को गले लगाने के लिए तो संस्कारवान होने का परिचय देते हुए अखिलेश ने पिता और चाचा के पैर छुए।

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उस वक्त सभी की आंखें छलछला आयीं लेकिन पटरी पर आती दिख रही सपा की गाड़ी को अमर सिंह के चिट्ठी प्रकरण ने डी रेल कर दिया। 'हैप्पी एंडिंग' का बेसब्री से इंतजार कर रहे सपाइयों के सामने जिस एंटी क्लाइमेक्स के साथ बैठक खत्म हुई उससे खुद मुलायम समेत सभी अवाक रह गए। अंदर अखिलेश व शिवपाल मुलायम के सामने अपना पक्ष रख रहे थे, बाहर चाचा-भतीजे के समर्थकों के बीच कई बार टकराव और मारपीट की नौबत आयी जिससे निपटने में सुरक्षाकर्मियों को खासी मशक्कत करनी पड़ी।

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सारे जतन फिर भी कन्फ्यूजन

बैठक की परिणति जिस हंगामे के साथ हुई, उससे एकजुटता की उम्मीद के सपने संजोये लखनऊ आये सपाई हतप्रभ रह गए। कार्यकर्ता पार्टी के एकजुट होने की दुहाई तो दे रहे हैं लेकिन यह कैसे होगा, इसका उनके पास कोई जवाब नहीं है।

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बैठक के बाद चार, विक्रमादित्य मार्ग स्थित मुख्यमंत्री के नये आवास की ओर जाने के लिए सुरक्षाकर्मियों से हुज्जत करते कन्नौज से आये समाजवादी युवजन सभा के प्रदेश सचिव यादवेंद्र प्रताप सिंह से जब पूछा गया कि अब क्या होगा? तो एक पल को उन्हें जवाब नहीं सूझा। फिर कुछ व्यावहारिक होते हुए कहा कि अभी भी कुछ लोग पार्टी के अंदर रहकर सपा को तोडऩे की साजिश कर रहे हैं लेकिन पार्टी एकजुट रहेगी। और पार्टी टूट ही गई तो? इस सवाल के जवाब में उन्होंने बेखटके कहा कि यदि ऐसा हुआ तो हम अखिलेश भैया के साथ रहेंगे।

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अलबत्ता विक्रमादित्य मार्ग पर सड़क की पेवमेंट पर बैठकर साथियों से चर्चा करते लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष राम सिंह राणा पार्टी के ताजा हालात को लेकर व्यथित और आशंकित दिखे। भले ही वह दोहराते रहे कि सब ठीक हो जाएगा लेकिन कुछ ही अरसे बाद स्नातक क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लडऩे का मंसूबा पाले राणा की बातों से महसूस हुआ कि यह उठापटक पार्टी के साथ उनकी चुनावी संभावनाओं पर ग्रहण लगा सकती है। कन्नौज से आयीं सपा महिला मोर्चा विधासभा क्षेत्र की सचिव सुमनलता के मन में भी आशंका के बादल घुमड़ रहे हैं कि यह सब क्या हो रहा है और कैसे खत्म होगा।

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वाराणसी से आये सपा यूथ विंग के पूर्व पदाधिकारी को मुलायम के इस सवाल पर एतराज था कि जिसमें उन्होंने अखिलेश यादव से कहा कि अकेले दम पर चुनाव जीतने की उनकी हैसियत नहीं है। मुलायम के इस सवाल के बारे में पूछने पर उन्होंने छूटते कहा कि नेताजी तो और लोगों को जोड़कर भी कभी पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बना पाए। बैठक में हिस्सा लेने के लिए आये सहारनपुर के बुजुर्ग जिला पंचायत सदस्य नवाब सिंह भी पार्टी व यादव परिवार में चल रही उठापटक के सुलटने की उम्मीद लेकर आए थे। मायूसी भरे लहजे में कहा कि 'समाधान निकल ही गया था लेकिन फिर कुछ नाइत्तेफाकी हो गई है।' उम्मीद की किरण जगाते हुए यह भी जोड़ा कि यह मसला जितना उलझ कर सुलझेगा, उतना टिकाऊ होगा।'


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