वोट बैंक बचाने को मायावती ने लगाया 'मास्टर स्ट्रोक'
रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति बने तो दलितों के बीच पकड़ बनाए रखना बसपा के लिए आसान नहीं होगा, भाजपा को दलित विरोधी बताकर वोट बटोरने में भी मुश्किलें आएगी।
लखनऊ (राज्य ब्यूरो)। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा यूं ही नहीं दिया। दरअसल, यह उनका मास्टर स्ट्रोक है, जो विधानसभा चुनाव के बाद बिखरते जा रहे दलित वोट बैंक को एकजुट करने में सफल साबित हो सकता है। दलितों में भारतीय जनता पार्टी के प्रति बढ़ता लगाव बसपा के लिए बड़ी चुनौती है और ऐसे में उन्हें यह संदेश देना ही था कि वह 'अपने लोगों' के हित में कोई भी कुर्बानी दे सकती हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बसपा की बेचैनी को राष्ट्रपति चुनाव ने बढ़ा दिया। जाहिर है कि रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति बने तो दलितों के बीच पकड़ बनाए रखना बसपा के लिए आसान नहीं होगा। भाजपा को दलित विरोधी बताकर वोट बटोरने में भी मुश्किलें आएगी।
एक और बड़ी चिंता दलितों के बीच भीम आर्मी सरीखे संगठनों की लोकप्रियता का बढ़ना भी है। सहारनपुर के शब्बीरपुर प्रकरण ने बसपा की जड़ों पर चोट किया है। उनके इस्तीफे को दलित वोटों को लेकर बाहरी व भीतरी हमलों का जवाब माना जा रहा है। दलित चिंतक डा. वीर सिंह का कहना है कि बसपा सुप्रीमो का राज्यसभा में कार्यकाल एक वर्ष से कम रह गया है और अपने बूते फिर सदस्यता हासिल करने की संभावना भी नहीं है।
मायावती इस्तीफा देकर दलित हित के लिए बलिदानी भूमिका को कैश करना चाहेगी। पिछले विधानसभा चुनाव में दलित मुस्लिम गठजोड़ भले ही कारगर नहीं हो सका परंतु बसपा रणनीतिकारों का मानना है कि भगवा बिग्रेड के बढ़ते प्रभाव को इसी समीकरण से रोका जा सकता है। मुस्लिमों में सपा का मोह भी बना रहा जिस कारण बसपा को नुकसान उठाना पड़ा।
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उपचुनाव लड़ेंगी मायावती: राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती के लोकसभा का उपचुनाव लड़ने की अटकलें तेज हो गई हैं। हालांकि बसपा उपचुनाव में जोरआजमाईश से बचती है लेकिन, बदले सियासी हालात में मायावती को विपक्ष के साझा उम्मीदवार के तौर पर उतारा जा सकता है। प्रदेश में लोकसभा की दो सीटों पर उपचुनाव होगा। सूत्रों का कहना है कि मायावती के फूलपुर संसदीय क्षेत्र से उपचुनाव लड़ने की चर्चा है।
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