ताकि जमीन से जुड़ें शोधार्थी
- एसीएसआइआर ने शोधार्थियों के लिए छह माह गांव में गुजारने की शर्त लगाई रूमा सिन्हा, लखनऊ श
- एसीएसआइआर ने शोधार्थियों के लिए छह माह गांव में गुजारने की शर्त लगाई
रूमा सिन्हा, लखनऊ
शोध ऐसा हो जिसका लाभ लोगों खासतौर पर ग्रामीणों के जीवन स्तर को उठाने के लिए किया जा सके। केवल ग्रामीणों के लिए ही नहीं, आम लोगों के लिए उपयोगी ऐसे शोध जिनका लाभ अधिक से अधिक लोग उठा सकें। तभी शोध का असल फायदा है। इस मूल मंत्र के साथ वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) अब शोधार्थियों को के लिए इनोवेटिव आइडिया इस्तेमाल कर रहा है। सीएसआइआर की एकेडेमिक वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (एसीएसआइआर) के अनुसार पीएचडी के छह माह गांव में गुजारने होंगे। दरअसल इसका उद्देश्य जहां शोधार्थियों को जमीन से जोड़ना है वहीं शोध के माध्यम से आमजन के जीवन स्तर को सुधारने के साथ जीवन सहज बनाना है।
केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) की सीनियर प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ.नीलम सांगवान बताते हैं कि ज्यादातर शोधार्थी शहरी परिवेश से आते हैं। उन्हें ग्लोबल समस्याओं की समझ तो होती है लेकिन ग्रामीण परिवेश से दूर होते हैं। वह सूखे मेन उगाई जाने वाली फसलों पर शोध तो करते हैं लेकिन उन्हें सूखा क्या होता है इसकी जानकारी नहीं होती। जाहिर है कि शोध के विषय भी वैश्विक समस्याओं पर आधारित रहते हैं ऐसे में आम लोगों की जरूरत के हिसाब से की जाने वाली रिसर्च से दूर रहते हैं। इस गैप को समाप्त करने के लिए इसकी शुरुआत की गई।
डॉ. सांगवान कहती हैं कि ग्रामीणों के संपर्क में आने से वह जमीन हकीकत से रूबरू होते हैं जिससे उन्हें शोध के लिए भी नई दिशा मिलती है। माना जा रहा है कि केवल ग्रामीणों के साथ ही नहीं उद्योगों व उद्यमियों के समक्ष आने वाली समस्याओं का निदान ढूंढने में भी उनका सहयोग प्राप्त हो सकेगा।
डॉ.सांगवान बताती हैं कि सीएसआइआर-800 कार्यक्रम के तहत देश भर में यह कोशिश जारी है कि सीएसआइआर प्रयोगशालाओं में विकसित प्रौद्योगिकियों का लाभ लोगों को स्वरोजगार से जोड़ कर उनका जीवन स्तर ऊंचा उठाने में किया जाए। इस नजरिए से भी एसीएसआइआर का यह कार्यक्रम काफी लाभकारी साबित होगा। देश की विभिन्न जलवायु, परिस्थितियों व सामाजिक समस्याओं का हल रिसर्च के माध्यम से तलाशा जा सकेगा।
एसीएसआइआर के कुलपति प्रो. आरएस सांगवान ने बताया कि यह बिल्कुल नया कॉन्सेप्ट है। दरअसल यह महूसू किया जा रहा है कि जो रिसर्च की जा रही है वह आम लोगों की जरूरत के अनुसार कम वैश्विक नजरिए से ज्यादा हो रही है। लेकिन अब जो रिसर्च होगी वह समाजोन्मुखी होगी जिसका सीधा लाभ आम लोगों को मिलेगा।