पावर कारपोरेशन ने बिजली दर बढ़ाना आयोग पर छोड़ा
मौजूदा बिजली दर से कंपनियों को 15118 करोड़ के घाटे के बावजूद एआरआर के साथ कारपोरेशन प्रबंधन ने टैरिफ प्रस्ताव न देकर बिजली दर बढ़ाने का निर्णय फिलहाल आयोग पर छोड़ दिया है।
लखनऊ (जेएनएन)। चालू वित्तीय वर्ष के खर्चे के लिए पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने बुधवार को बिजली कंपनियों (केस्को छोड़कर) के तकरीबन 68,674 करोड़ के एआरआर (वार्षिक राजस्व आवश्यकता) प्रस्ताव विद्युत नियामक आयोग में दाखिल कर दिया। मौजूदा बिजली दर से कंपनियों को 15118 करोड़ के घाटे के बावजूद एआरआर के साथ कारपोरेशन प्रबंधन ने टैरिफ प्रस्ताव न देकर बिजली दर बढ़ाने का निर्णय फिलहाल आयोग पर छोड़ दिया है। वित्तीय संकट से जूझ रही कंपनियों को घाटे से उबारने के लिए आयोग बिजली की दरों में अपने स्तर से इजाफा कर सकता है।
वैसे तो विद्युत वितरण कंपनियों (मध्यांचल, पूर्वांचल, पश्चिमांचल व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम) का वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए एआरआर और बिजली दर संबंधी टैरिफ प्रस्ताव पिछले वर्ष 30 नवंबर तक ही आयोग में पहुंचना चाहिए था लेकिन विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तब एआरआर व टैरिफ प्रस्ताव न देकर कारपोरेशन प्रबंधन ने अब केस्को को छोड़कर अन्य बिजली कंपनियों के मल्टी इयर टैरिफ के तहत चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 से 2019-20 तक की वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर), बिजनेस प्लान और 2014-15 का ट्रू-अप बुधवार देर शाम आयोग में दाखिल किया। चालू वित्तीय वर्ष के लिए 68,674 करोड़ रुपये का एआरआर प्रस्ताव है। एक-दो दिन में केस्को का प्रस्ताव दाखिल होने पर कुल एआरआर का प्रस्ताव 71269 करोड़ रुपये तक का हो सकता है।
योगी सरकार की मंशा के मुताबिक प्रदेशवासियों को 24 घंटे तक बिजली देने के लिए प्रबंधन ने एआरआर में रिकार्ड 128908 मिलियन यूनिट (एमयू) बिजली खरीदने के लिए 52919 करोड़ रुपये रखे हैं। ट्रांसमिशन चार्ज जोडऩे पर यह लागत करीब 54,787 करोड़ रुपये होगी। अगले वित्तीय वर्ष में 66033 करोड़ रुपये से 153577 एमयू तथा वित्तीय वर्ष 2019-20 में 77433 करोड़ से 172955 एमयू बिजली खरीदने का प्रस्ताव है।
गौर करने की बात यह है कि एआरआर में बिजली की मौजूदा दरों से 20618 करोड़ रुपये के घाटे का अनुमान तो लगाया गया है लेकिन इसकी भरपाई के लिए प्रबंधन ने बिजली दर बढ़ाने संबंधी टैरिफ प्रस्ताव आयोग को नहीं सौंपा है। अगर सरकार से मिलने वाली 5500 करोड़ रुपये की सब्सिडी को गैप से घटा भी दिया जाए तब भी 15118 करोड़ रुपये का गैप यानी घाटा रहने का अनुमान लगाया गया है।
जानकारों का कहना है कि निकट भविष्य में नगरीय निकाय चुनाव के मद्देनजर सीधे तौर पर जनता की नाराजगी से बचने के लिए राज्य सरकार के इशारे पर भले ही कारपोरेशन प्रबंधन ने घाटे की भरपाई के लिए आयोग को टैरिफ प्रस्ताव नहीं दिया है लेकिन आयोग कंपनियों के भारी-भरकम घाटे को देखते हुए इस संबंध में अपने स्तर से निर्णय करने को स्वतंत्र है। सूत्र बताते हैं कि कंपनियों को घाटे से उबारने के लिए आयोग खुद ही विभिन्न श्रेणियों के उपभोक्ताओं की बिजली की दर में औसतन पांच से 10 फीसद तक इजाफा कर सकता है। कारण है कि कंपनियों को घाटे से उबारने के लिए पूर्व की वित्तीय पुनर्गठन योजना (एफआरपी) और उदय में बिजली की दरों में सालाना औसतन आठ-दस फीसद का इजाफा प्रस्तावित है। इस संबंध में आयोग के अध्यक्ष देश दीपक वर्मा का कहना है कि दाखिल एआरआर प्रस्ताव का अध्ययन करने के बाद ही आयोग दर बढ़ाने के संबंध में कोई फैसला करेगा।
प्रति यूनिट 7.23 रुपये का औसत
बिजली कंपनियों ने वित्तीय वर्ष में 19 फीसद लाइन हानि प्रस्तावित की है। एआरआर के मुताबिक सभी स्रोतों से बिजली खरीद की औसत लागत करीब 4.11 रुपये प्रति यूनिट आ रही है, जो उपभोक्ता के छोर पर पहुंचने तक 7.23 रुपये प्रति यूनिट हो रही है।
नहीं तो 20 फीसद तक महंगी होगी बिजली
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि बिजली कंपनियों के घाटे की भरपाई के लिए यदि राज्य सरकार ने अनुदान न दिया तो गैप पूरा करने के लिए बिजली की दरों में औसतन 20 फीसद तक का इजाफा करना पड़ सकता है। वर्मा ने बिजली कंपनियों के पहले वर्ष 2017-18 के 68,674 करोड़ रुपये के एआरआर में बिना सब्सिडी के आ रहे 20,618 रुपये के अंतर पर सवाल उठाया है। वर्मा ने कहा कि कंपनियों द्वारा पहली बार रिटर्न ऑफ इक्विटी मांगने का खामियाजा अंतत: विद्युत उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा। परिषद ने सीएजी ऑडिट न होने का हवाला देते हुए एआरआर के आंकड़ों पर भी सवाल उठाए हैं और रिपोर्ट का अध्ययन कर लड़ाई शुरू करने की चेतावनी दी है।
चालाकी में कोई चाल तो नहीं!
उपभोक्ता परिषद ने बिजली कंपनियों द्वारा चालाकी से 16 फीसद रिटर्न ऑफ इक्विटी (आरओई) मांगे जाने के पीछे निजीकरण की चाल की आशंका जताई है। परिषद ने सवाल उठाया है कि आरओई के बिना बिजली कंपनियां अब तक अपना काम कैसे चला रही थीं। परिषद ने इसकी भी छानबीन करने की बात कही है कि बिजली कंपनियों ने किन निजी घरानों से महंगी बिजली की खरीद प्रस्तावित की है।