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खून के रिश्ते पर भारी पड़ी सियासी महत्वाकांक्षा

लगभग दो दशक का सियासी सफर पूरा कर चुका अपना दल परिवार सियासी वर्चस्व की लड़ाई में आखिरकार दो टुकड़ों में बंट ही गया। पार्टी के संस्थापक सोनेलाल पटेल की राजनीतिक विरासत पर काबिज होने को अपना दल कुनबे में शुरू उठापटक में सियासी महत्वाकांक्षा खून के रिश्ते पर भारी

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 08 May 2015 12:06 PM (IST)Updated: Fri, 08 May 2015 12:12 PM (IST)

लखनऊ (राज्य ब्यूरो)। लगभग दो दशक का सियासी सफर पूरा कर चुका अपना दल परिवार सियासी वर्चस्व की लड़ाई में आखिरकार दो टुकड़ों में बंट ही गया। पार्टी के संस्थापक सोनेलाल पटेल की राजनीतिक विरासत पर काबिज होने को अपना दल कुनबे में शुरू उठापटक में सियासी महत्वाकांक्षा खून के रिश्ते पर भारी पड़ी।

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चार नवंबर 1995 को अस्तित्व में आये अपना दल के संस्थापक सोने लाल पटेल की अक्टूबर 2009 में असामयिक मृत्यु से टूट चुकीं उनकी पत्नी कृष्णा पटेल ने जब घर की देहरी से बाहर निकल कर लडख़ड़ाते कदमों से सियासत में कदम रखा तो छोटी बेटी अनुप्रिया ही सहारा बनी थीं। अपना दल के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी संभालकर उन्होंने मां को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व निभाने में साये की तरह उनका साथ दिया। पार्टी के मंच पर मां-बेटी की सियासी जुगलबंदी लगभग साढ़े चार साल चली। अपना दल परिवार में मनमुटाव बीते वर्ष ïलोकसभा चुनाव से पहले शुरू हुआ जब अनुप्रिया पटेल पर आरोप लगे कि वह अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए पार्टी के हितों की तिलांजलि देते हुए भाजपा से अपना दल का गठजोड़ कर रही हैं। उन पर अपने पति के इशारों पर पार्टी हितों के विपरीत काम करने के आरोप भी लगे। अनुप्रिया के सांसद बनने के बाद यह मनमुटाव बढऩे लगा।

आखिरकार अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अब तक पर्दे के पीछे रहीं अपनी बड़ी बेटी पल्लवी पटेल को सियासत से रूबरू कराते हुए छह अक्टूबर 2014 को उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया।

बड़ी बहन को मां की यह सियासी तवज्जो अनुप्रिया को नहीं सुहाई और पल्लवी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने के फैसले पर सवाल खड़े करते हुए बगावत का बिगुल फूंक दिया। अनुप्रिया पर नकेल कसने के लिए कृष्णा पटेल ने दिसंबर 2014 में उन्हें राष्ट्रीय महासचिव पद से हटा दिया तो दोनों के बीच रार और गर्मा गई।

बेटी बनकर लौटें अनुप्रिया, दिल और दल खुले हैं

कहते हैं कि सियासत में कुछ भी स्थायी नहीं, न दोस्ती न दुश्मनी। अपना दल के मामले में फिलहाल भले ही यह बात लागू नहीं दिखती। सियासी विरासत की रार ने मां-बेटी को भले ही आज दुश्मन बना दिया है, लेकिन मां का दिल अभी भी नर्म है। कानपुर में मौजूद अनुप्रिया की मां और अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पटेल जागरण से बातचीत में भावनाओं के आवेग में बह उठीं। बोलीं, बेटी बनकर लौटें तो अनुप्रिया के लिए अब भी उनके दिल और दल, दोनों के रास्ते खुले हैं। डॉ. सोनेलाल पटेल की मौत के बाद पार्टी अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष भले ही कृष्णा पटेल थीं, मगर संगठन के संचालन की बागडोर अनुप्रिया के हाथों में ही थी। संगठन में बड़ी बहन पल्लवी का हस्तक्षेप बढ़ा तो पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव अनुप्रिया और अध्यक्ष कृष्णा पटेल की बीच तलवारें खिंचने लगीं। सगी बहनें भी एक दूसरे की दुश्मन बन गईं। अनुप्रिया को कल पार्टी से बाहर निकलाने का सख्त फैसला लेने के बावजूद कृष्णा की आवाज भारी थी और दिल की बातें जुबां पर तैर रहीं थीं।


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