विवेचना के लिए अलग हो पुलिस : हाईकोर्ट
हाईकोर्ट ने प्रदेश में कानून व्यवस्था संभालने वाली एवं अपराध की विवेचना करने वाली पुलिस को अलग-अलग करने का निर्देश दिया है। प्रमुख सचिव गृह व डीजीपी को दस दिन में ऐसा करने को कहा।
इलाहाबाद ( जेएनएन)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में कानून व्यवस्था संभालने वाली एवं अपराध की विवेचना करने वाली पुलिस को अलग-अलग करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह व डीजीपी को दस दिन के भीतर ऐसा कदम उठाने का आदेश दिया है और कहा है कि विवेचना पुलिस विंग का मुखिया न्यायिक अधिकारी रखा जाय।
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दोनों अधिकारियों से कोर्ट ने 16 सितंबर को रिपोर्ट के साथ हलफनामा मांगा है। कहा है कि यदि कार्यवाही पेश नहीं की जाती तो दोनों अधिकारी 19 सितंबर को कोर्ट में हाजिर होंगे। यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति पीसी त्रिपाठी की खंडपीठ ने सुभाष चंद्र जायसवाल की याचिका पर दिया है। कोर्ट के निर्देश पर इलाहाबाद के जिलाधिकारी व एसएसपी हाजिर थे। कोर्ट ने उनकी आगे हाजिरी माफ कर दी है।
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कोर्ट ने दोनों शीर्ष अधिकारियों से हलफनामा मांगते हुए पूछा है कि प्रदेश में ऐसे कितने आपराधिक मामले हैं जिनकी विवेचना छह माह से अधिक समय से विचाराधीन है और विवेचनाधिकारी कौन है। कोर्ट ने पूछा है कि प्रदेश में पुलिस के कितने पद स्वीकृत हैं, कितनी पुलिस तैनात है तथा कितने पद खाली हैं। खाली पद कितने समय में भरे जा सकेंगे। कोर्ट ने पोस्टमार्टम के बाद रखे गये बिसरे की भी रिपोर्ट मांगी है।
कोर्ट का कहना है कि प्रदेश पुलिस सही विवेचना नहीं करती। दुराचार की शिकायत दर्ज करने में देर लगती है तथा पीडि़ता व आरोपियों की मेडिकल जांच कराने में देरी कर साक्ष्य समाप्त करने में सहयोग करती है। कोर्ट ने अपराधों की विवेचना करने वाली प्रशिक्षित पुलिस पर बल देते हुए यह आदेश दिया है।