CT-2017 : भारत की जीत की दुआ में व्यस्त पाकिस्तानी कप्तान सरफराज के खानदानी
फाइनल मैच में सभी भारत की जीत के लिए जोर लगा रहे हैं। भारत का समर्थन करने वालों में पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान सरफराज के खानदानी लोग भी हैं।
लखनऊ (जेएनएन)। भारत तथा पाकिस्तान के बीच आज लंदन के ओवल में खेले जाने वाले फाइनल मैच में सभी भारत की जीत के लिए जोर लगा रहे हैं। भारत का समर्थन करने वालों में पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान सरफराज के खानदानी लोग भी हैं। सरफराज का ननिहाल प्रदेश के प्रतापगढ़ के कुंडा में है। उनके दादा उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में रहते थे। फतेहपुर में भी उनके घर के लोग भारत की जीत की दुआ कर रहे हैं।
सरफराज अहमद के मामा महबूब हसन 1995 से इटावा के बाबा साहब भीमराव अंबेडकर कृषि इंजिनियरिंग कॉलेज में वरिष्ठ लिपिक के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि बेशक भांजा सरफराज अहमद पाकिस्तान का कप्तान है, लेकिन फाइनल तो हमारा भारत ही जीतेगा। उन्होंने कहा कि मैं तो हमेशा ही चाहता हूं कि मेरा भांजा सरफराज अच्छा खेले, लेकिन चैंपियंस ट्राफी में जीत हमारे देश भारत की ही होगी।
महबूब हसन का यह देश के प्रति प्रेम है। उन्होंने कहा कि भारतीय टीम के प्रदर्शन को देखते हुए भी जीत को लेकर आश्वस्त हुआ जा सकता है। भारतीय टीम का हर प्लेयर बैट्समैन है और इस समय दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम में से एक है। कप्तान सरफराज अहमद के सगे मामा महबूब हसन ने बताया कि हम लोग प्रतापगढ़ के कुंडा निवासी हैं। सरफराज के दादा हाजी वकील अहमद फतेहपुर के मूल निवासी थे। देश के पहले ग्राम पंचायत चुनाव में जीत हासिल कर प्रधान बने थे। वर्ष 1952-53 में वह पाकिस्तान के कराची में जाकर बस गए थे। 70 के दशक में उनके बेटे शकील अहमद के साथ महबूब हसन की बहन शकीला का विवाह था। वर्ष 2009 में शकील अहमद का देहांत हो गया था। महबूब हसन और शकीला इकलौते भाई-बहन हैं।
दो देशों के बीच की दूरी नहीं रखती मायने
बकौल महबूब हसन उनकी बहन शकीला खास मौकों पर यहां आती रहती हैं और वे भी बहन के पास जाते रहते हैं। सरफराज का मई 2015 में खुशबख्त से निकाह हुआ था। जिसमें वह भी शामिल होने गए थे। इससे एक वर्ष पहले 2014 में सरफराज के बड़े भाई के निकाह में भी वह शरीक हुए थे। जब भी वे वहां जाते हैं सरफराज उनको घुमाता-फिराता है।
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महबूब हसन बताते हैं कि वर्ष 1991 में उनकी शादी में सरफराज तीन साल का था। तब सरफराज मां शकीला के साथ घर आया था। उनकी सप्ताह में दो-तीन बार फोन पर बात होती रहती है। सरफराज के साथ ही उनकी पत्नी और सात माह का बेटा बुल्ला भी इन दिनों लंदन में हैं
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दरअसल सरफराज की मां शादी के बाद कराची चली गई थीं। वह अब भी भारत में रह रहे अपने भाई महबूब से स्काइप के सहारे जुड़ी हुई हैं। सरफराज भी अबतक अपने मामा से तीन बार मिल चुके हैं। महबूब आखिरी बार अपने भांजे से चंडीगढ़ में मिले थे, जब 2016 के टी-20 विश्व कप के दौरान पाकिस्तान का मुकाबला ऑस्ट्रेलिया से हुआ था।
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कड़ी मेहनत कर सरफराज ने बनाई जगह
महबूब ने चैंपियंस ट्रॉफी के सभी मैच देखे हैं और भांजे के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में भारत से जाकर बसे मुस्लिमों को मुजाहिर समझा जाता है और उनमें से कोई यदि अच्छा प्रदर्शन करता है या आगे बढ़ता है तो उसे गिराने का प्रयास किया जाता है।
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इसके बावजूद सरफराज ने कड़ी मेहनत के बल पर न सिर्फ पाकिस्तान की टीम में जगह बनाई बल्कि आज उसका कप्तान भी है। वह पूरी तरह से आश्वस्त तो नहीं हैं फिर भी उन्हें लगता है पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के चेयरमैन शहरयार खान ने सरफराज को ऐसा मौका शायद इसलिए दिया कि उनकी पत्नी भी भारत की हैं और इलाहाबाद से वास्ता रखती हैं।
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सरफराज अहमद के मामा महबूब हसन का कहना है कि फाइनल के दिन वह अपने भांजे की टीम को नहीं, बल्कि टीम इंडिया को जीतते हुए देखना चाहते हैं। उनको पूरा यकीन है कि चैंपियंस ट्राफी का खिलाफ विराट ब्रिगेड के ही नाम रहेगा। सरफराज के मामा के मुताबिक पाकिस्तानी टीम के मुकाबले भारतीय टीम ज्यादा मजबूत है और पाकिस्तान की टीम भारत के सामने कहीं नहीं टिकती है।
खास बातें
सरफाराज अहमद के दादा 1952-53 में कराची में जाकर बस गए थे।
सरफराज के दादा आजाद भारत में प्रधानी का चुनाव भी जीते थे।