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कैराना की राह पर कांधला, मुस्लिम वोटर 25000 और हिंदू वोटरों की संख्या 9000

शामली में कांधला की आबादी के अनुपात में घट रही हिंदुओं की संख्या इसे साबित कर रही है। लोगं कहते है कि कांधला और कैराना को बचाना है तो यहां पैरामिलेट्री कैंप स्थापित करना होगा।

By Nawal MishraEdited By: Published: Tue, 14 Jun 2016 09:14 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jun 2016 09:48 AM (IST)

लखनऊ [अवनीश त्यागी]। कैराना से हिंदुओं के पलायन की सूची को लेकर भले ही सियासी बवाल मचा हो परन्तु कांधला में हिंदुओं के घरों पर लटके ताले और लोगों में समायी दहशत तो कुछ और ही हकीकत बयां करती है। कांधला भी कमोवेश कैराना की डगर पर है। आबादी के अनुपात में लगातार घट रही हिंदुओं की संख्या इस तथ्य को साबित कर रही है। यहां के लोगं का कहना है कि कांधला और कैराना को बचाना है तो यहां पैरामिलेट्री फोर्स का बेस कैंप स्थापित करना होगा।

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सरावज्ञान, कानूनगोयान, शेखजादगान व शांतिनगर जैसे मुहल्लों से हिंदुओं का अपनी संपत्ति बेचने का सिलसिला जारी है। सुभाष जैन, राजू कंसल, दीपक चौहान, तरस चंद जैन, विकास सैनी, राजबीर मलिक और योगेंद्र सेठी जैसे लोग अपनी जन्म और कर्म भूमि को अलविदा कह चुके हैं। सतेंद्र जैन, रविंद्र कुमार और विजेंद्र मलिक जैसे अनेक लोग महफूज ठिकानों की तलाश में है। घरों व दुकानों पर लटकी बिकाऊ है जैसी सूचनाएं प्रशासन को मुंह चिढ़ा रही हैं। असंतुलित होती आबादी के आकड़े भी पलायन की टीस उजागर करते हैं। सूत्रों के अनुसार, वर्ष 1995 में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या जहां 16426 और हिंदुओं की 13726 थी, वह 2012 के स्थानीय निकाय चुनाव में पूरी तरह बदल गयी। मुस्लिम वोटर 22627 हो गए और हिंदू मतदाता 10126 तक आ गये। दो साल में यह असंतुलन और ज्यादा गंभीर हो गया। अब मुस्लिम वोटर 25 हजार से अधिक हैं, जबकि हिंदू मात्र नौ हजार के आसपास ही रह गए हैं।

कैराना से महज 12 किलोमीटर दूर बसे कांधला में कैराना की ही तरह असुरक्षा सबसे बड़ी समस्या है जो दिनों दिन बड़ा आकार लेती जा रही है। मेन बाजार में बीज विक्रेता तरुण सैनी यहां व्याप्त आतंक का शिकार हो चुके हैं। वर्ग विशेष की बढ़ती दबंगई के आगे पुलिस-प्रशासन के नतमस्तक होने का आरोप लगाते हुए तरुण के भाई आदेश का कहना है कि करीब दो साल पहले उनकी दुकान पर आए आधा दर्जन हथियारबंद बदमाशों ने उनसे पांच लाख रुपये रंगदारी मांगी और शहर छोड़कर चले जाने की धमकी दी। पुलिस को सीसी टीवी कैमरे की फुटेज उपलब्ध करा दी गयी परंतु कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। तब से हम सैनी समाज की सुरक्षा की चिंता में जी रहे हैं। प्रशासन से पिस्टल का लाइसेंस मांगा परंतु फाइल अटकी है, कोई सुनवाई नहीं होती।

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उजड़ी मंडियां, सूने बाजार

कभी देश भर को गुड़ की जरूरतें पूरा करने वाली मंडी में आज सन्नाटा है। कभी यहां गुड के लदान के लिए रेलवे ने विशेष ट्रैक तक की व्यवस्था की थी। व्यापारी विष्णु गोयल का कहना है कि अनाज मंडी भी उजड़ चुकी है। सब्जी मंडी को छोड़ दें तो बाकी बड़ा कारोबार अब ठप है। इस गन्ना बेल्ट की चार खांडसारी इकाइयां बंद हो चुकी हैं। अब तो हालात उलट हैं, आतंक और रंगदारी की वजह से यहां कोई कारोबार नहीं करना चाहता। पांच साल में सराफा कारोबार साठ प्रतिशत कम होने का दावा करते हुए सराफा एसोसिएशन के महामंत्री सतवीर वर्मा का कहना है कि हालात ऐसे ही बने रहें तो हम भी परिवार पालने के लिए मजबूरन कस्बा छोड़ जाएंगे।

दो वारदात से दहशत बढ़ी

वर्ष 2013 में जन्माष्टमी पर हजारों की भीड़ के हमले की जानकारी देते हुए डा. रश्मिकांत का कहना है कि लाचार पुलिस के कारण उस दिन मंदिरों में पूजन नहीं हो सका। एक वर्ग विशेष के लोगों द्वारा भेजे जाने वाली धमकी भरी चिट्ठियां कारोबारियों को चैन से नहीं रहने दे रहीं।

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शादी में भी मुश्किल

स्कूली बच्चों के लिए अच्छे स्कूलों का संकट भी कम नहीं है। करीब दो दर्जन बसें स्कूली बच्चों को लेकर सुरक्षाकर्मी के साथ 14 किलोमीटर दूर शामली आना-जाना करती हैं। लोगों का कहना है कि बच्चों को पढ़ाने की मजबूरी के चलते हम ये बड़ा जोखिम उठाने को मजबूर हैं। सैनी समाज के संयोजक नरेश सैनी का कहना है कि छेड़छाड़ की घटनाओं ने कई वर्षों में ऐसा माहौल बना दिया है कि बहन-बेटियों का देर शाम घरों से निकलना बंद है। दिव्यप्रकाश का कहना है कि कांधला के बिगड़े वातावरण से रोजगार के बचे-खुचे अवसर ही खत्म नहीं हो रहे वरन शादी में भी दिक्कतें आ रही हैं। कोई भी परिवार अपनी बेटी कांधला में ब्याहने के लिए आसानी से राजी नहीं होता।

पैरामिलेट्री बेस कैंप बने

लोगों में असुरक्षा की भावना इस कदर घर कर गई है कि वे यहां पैरामिलेट्री फोर्स का बेस कैंप स्थापित करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि पुलिस-प्रशासन से कस्बा ही नहीं बल्कि, आसपास के गांवों का भी भरोसा उठ गया है। ग्राम पिंजोखरा के निवासी सेवानिवृत्त फौजी नकली सिंह का कहना है कि पांच साल पहले कस्बे में आते समय लोगों को घबराहट नहीं होती थी, पर अब शाम ढलने से पहले गांव में पहुंचने की जल्दी रहती है। एलम, गढ़ी दौलतपुर, मलकपुर जैसे गांवों के लोग भी अब कांधला में खरीदारी करने नहीं आते, वरन 15-16 किलोमीटर दूर बागपत जिले के बड़ौत जाना पसंद करते हैं। दुकानदार संजीव मलिक का कहना है कि तीन वर्ष में कारोबार घटकर आधा रह गया।

दहशत बढ़ाने में भू-माफिया

आतंक के चलते औने-पौने दाम में अपनी संपत्ति बेचने की मजबूरी जता रहे सुभाष बंसल का कहना है कि कभी कस्बे की शान रही रहतू मल की हवेली मात्र 15 लाख रुपये में बिक गयी, जबकि उसकी कीमत लोग एक करोड़ रुपये आंकी गई थी। जाट कालोनी में मकान व दुकान तेजी से बिकने का दावा करते सतीश पंवार का कहना है कि भू-माफिया सक्रिय हो चुके हैं और आतंक फैलाने में उनका योगदान भी कम नहीं। पुलिस भी इनकी मदद में खड़ी दिखती है। पलायन करने वालों की सूची में अभी इजाफा होगा, क्योंकि बहुत से लोगों को अपनी संपत्ति बेचने के लिए सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं। एडवोकेट बीरसेन का कहना है कि कुछ व्यापारी अपना कारोबार समेटने से पहले उधार में गए धन को बटोरने में जुटे हैं। कई पीढ़ी से लोहे के व्यापारी 71 वर्षीय सतेंद्र जैन बुझे मन से कहते हैं कि अपने पौत्रों का एडमिशन इस बार देहरादून करा दिया है, उधारी सिमटते ही कांधला छोड़कर चले जाएंगे।


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