उत्तर प्रदेश में खाद्यान्न के हकदार परिवारों को गेहूं-चावल की जगह बोरे!
उत्तर प्रदेश में खाद्य सुरक्षा योजना के तहत पहुंचाए जा रहे खाद्यान्न की जगह लोगों को बोरे मिल रहे हैं। पहुंचाया जा रहे खाद्यान्न में बोरों का वजन भी शामिल है।
लखनऊ (अमित मिश्र)। उत्तर प्रदेश में खाद्य सुरक्षा योजना के तहत पहुंचाए जा रहे खाद्यान्न की जगह लोगों को खाली बोरे मिल रहे हैं। पात्र परिवारों के लिए जितने वजन का खाद्यान्न राशन दुकानों पर पहुंचाया जा रहा है, उसमें बोरों का वजन भी शामिल है, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू खासा स्याह है। प्रदेश के 15 जिलों में काम संभाल रहे उप्र राज्य खाद्य एवं आवश्यक वस्तु निगम (एसएफसी) की इस अनियमितता को यदि सिर्फ लखनऊ में ही कसौटी पर रखा जाए तो पात्र परिवारों के करीब 30 हजार सदस्यों के लिए गेहूं-चावल की जगह बोरे पहुंच रहे हैं। पात्र परिवारों के यह सदस्य योजना में शामिल होने के बाद भी खाद्यान्न से वंचित हैं। बाजार भाव के मुताबिक लगभग 37 लाख रुपये का यह खाद्यान्न हर महीने राजधानी में गायब हो रहा है। आइए देखते हैं कैसे हो रहा है यह काम। एसएफसी का काम भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) से खाद्यान्न की उठान कर राशन दुकानों तक पहुंचाना है। एफसीआइ अपने गोदाम से खाद्यान्न जारी करते समय अनाज और जूट के बोरे का वजन अलग-अलग दर्ज करता है और निर्धारित मात्रा में पूरा खाद्यान्न मुहैया कराता है, लेकिन एसएफसी जब राशन दुकानों को खाद्यान्न देता है तो 50 किलो के बोरे को इतना ही खाद्यान्न मान कर दिया जाता है। बोरे का वजन घटाया नहीं जाता।
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बहुत बड़ा फर्क
लखनऊ में हर महीने औसतन 1.31 क्विंटल खाद्यान्न आवंटित होता है। इसमें गेहूं के लिए करीब 1.57 लाख और चावल के लिए 1.04 हजार बोरे इस्तेमाल होते हैं। जूट के प्रत्येक बोरे का वजन 665 ग्राम होता है और खाद्यान्न के इस्तेमाल में इसकी संख्या औसतन 85 फीसद रहती है। यानी करीब 88 मीट्रिक टन गेहूं और 59 मीट्रिक टन चावल की जगह इतने ही वजन के जूट के बोरे पहुंच रहे हैं। खाद्यान्न के नुकसान पर खाद्य एवं रसद विभाग ने विभागीय कर्मचारियों या कोटेदारों से बाजार भाव पर वसूली के लिए गेहूं का 21.86 रुपये और चावल का 29.96 रुपये प्रतिकिलो का भाव तय कर रखा है। इस अनुसार देखा जाए तो करीब 19.42 लाख रुपये का गेहूं और 17.74 रुपये का चावल लखनऊ में हर महीने एफसीआइ से उठाया तो जा रहा है, लेकिन पात्र परिवारों के लिए पहुंचाया नहीं जा रहा है। यही स्थिति प्रदेश के अन्य जिलों में है।
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अब करेंगे समीक्षा
जागरण के पूछने पर एसएफसी के प्रबंध निदेशक राममनोहर मिश्र ने मामले की जानकारी के लिए कर्मचारियों को बुलाया तो उन्होंने स्वीकार किया हां वास्तव में ऐसा हो रहा है। इस पर मिश्र ने भी माना कि एफसीआइ से जब बोरों का वजन अलग से मिल रहा है तो राशन दुकानों को भी इसी अनुसार दिया जाना चाहिए। उधर, सस्ता गल्ला विक्रेता परिषद के अध्यक्ष अशोक मेहरोत्रा के अनुसार कोटेदार भी अरसे से इसकी मांग कर रहे हैं। एसएफसी के प्रबंधक निदेशक ने अब इस मामले की समीक्षा करने की बात कही है।