तलब किए गए सरकारी वकीलों की नियुक्तियों से जुड़े रिकॉर्ड
याची की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील बुलबुल गोदियाल का तर्क था कि सरकार ने नई नियुक्तियां करते समय सारे नियम कानून को ताख पर रख दिया।
लखनऊ (विधि संवाददाता)। हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सरकारी वकीलों की नियुक्तियों पर सवाल खड़ा करते हुए इससे जुड़े दस्तावेज तलब किए हैं। कोर्ट ने कहा कि ये सारी नियुक्तियां अब उसके अग्रिम आदेशों के अधीन रहेंगी। हालांकि कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी कहा है कि यदि उसे स्वयं लगता है कि गड़बड़ियां हुई हैं तो वह सूची को खारिज करने के लिए स्वतंत्र है।
यह आदेश जस्टिस एपी साही व जस्टिस डीएस त्रिपाठी की बेंच ने स्थानीय वकील महेंद्र सिंह पवार की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर पारित किया। याचिका में सात जुलाई को जारी सूची को चुनौती दी गई है। सूची में मुख्य स्थायी अधिवक्ता के चार पदों, अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता के 21 पदों समेत 200 से अधिक शासकीय अधिवक्ता के कई पदों पर नियुक्तियां हुई थीं।
याची की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील बुलबुल गोदियाल का तर्क था कि सरकार ने नई नियुक्तियां करते समय सारे नियम कानून को ताख पर रख दिया। उनका आरोप था कि जब कानून मंत्री व महाधिवक्ता द्वारा सूची को अप्रूव न करने की बात सामने आ रही है तो ऐसे में सूची अपने आप अवैध हो जाती है। वहीं मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश पांडेय का कहना था कि सूची जारी करते समय सारे नियमों को ध्यान में रखा गया है।
कोर्ट ने एलआर मैनुअल व तमाम नजीरों को देखने के बाद पाया कि ऐसी सूची को महाधिवक्ता को अप्रूव करना जरूरी होता है। साथ ही इन नियुक्तियों में पारदर्शिता व स्वच्छता होनी चाहिए। ऐसे में नियुक्तियों से जुड़े रिकार्ड देखना आवश्यक है।
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मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश पांडेय ने महाधिवक्ता की अनुपस्थिति को कारण बताकर तारीख बढ़वाने की कोशिश की तो कोर्ट ने कहा कि क्या आप चाहते हैं कि अंतरिम आदेश पारित कर सूची को स्टे कर दिया जाये। इस पर पांडेय ने शुक्रवार को सारे रिकार्ड पेश करने की बात मान ली।