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इंटरनेशनल मानक पर खरे नहीं सरकारी अस्पताल

- जेसीआइ में प्राइवेट हॉस्पिटल शामिल, लेकिन सरकारी एक भी नहीं - बौद्धिक संपदा अधिकारी

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 Aug 2017 07:08 PM (IST)Updated: Fri, 18 Aug 2017 07:08 PM (IST)
इंटरनेशनल मानक पर खरे नहीं सरकारी अस्पताल
इंटरनेशनल मानक पर खरे नहीं सरकारी अस्पताल

- जेसीआइ में प्राइवेट हॉस्पिटल शामिल, लेकिन सरकारी एक भी नहीं

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- बौद्धिक संपदा अधिकारी पर केजीएमयू में कार्यशाला

जागरण संवाददाता, लखनऊ : सरकारी अस्पतालों में संसाधनों का अभाव अंतरराष्ट्रीय मानकों में बाधा बन रहा है। स्टैंडर्ड तय न होने से देश में मेडिकल टूरिज्म को झटका लग रहा, जबकि दुबई के अस्पताल रेस में आगे बने हुए हैं।

शुक्रवार को केजीएमयू में ट्रामा सर्जरी विभाग द्वारा बौद्धिक संपदा अधिकार पर व्याख्यान हुआ। इसमें प्रबंध निदेशक विकिरण सुरक्षा प्रशांत जायसवाल ने अस्पतालों के स्टैंडर्ड को तय करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि देश के सरकारी अस्पतालों को नेशनल एक्रीडेशन बोर्ड ऑफ हेल्थ (एनएबीएच) के साथ-साथ ज्वाइंट कमीशन ऑफ इंटरनेशनल एक्रीडेशन (जेसीआइ) के स्टैंडर्ड तय करने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने बताया कि वर्ष 2014 में देश में 275 अस्पतालों को एनएबीएच का प्रमाण पत्र दिया गया था, इसमें 100 सरकारी अस्पताल थे। वहीं जेसीआइ में देश के 27 अस्पताल सूचीबद्ध हुए, उसमें सरकारी एक भी नहीं है। प्रशांत जायसवाल के मुताबिक रिसर्च, टीचिंग लेवल, ट्रेनिंग, संसाधन बढ़ाकर व पेशेंट एरर कम कर जेसीआइ में सरकारी अस्पताल शामिल हो सकते हैं। इससे देश में मेडिकल टूरिज्म बढ़ेगा जो जीडीपी में मददगार बनेगा।

12 माह के अंदर कराएं पेटेंट अनिवार्य

कार्यक्रम संयोजक व ट्रॉमा सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. संदीप तिवारी ने कहा कि केजीएमयू में डॉक्टर तमाम नई तकनीक इजाद कर इलाज करते रहते हैं। वहीं तकनीक व शोध नेशनल-इंटरनेशनल जनरल में भी प्रकाशित हो जाते हैं। बावजूद इसके तकनीक का पेटेंट नहीं कराते हैं, जिसकी वजह से उसको इंटरनेशनल पहचान नहीं मिल पाती। वहीं अन्य देश के डॉक्टर उसी तकनीक का पेटेंट कराकर खुद की बौद्धिक संपदा बना लेते हैं। ऐसे में जनरल में प्रकाशित होने के बाद लोगों को 12 माह के अंदर पेटेंट करा लेना चाहिए।

अविष्कार के बाद करें व्यावसायिक उपयोग

गुरुग्राम की रंजना सिंह ने कहा कि टेक्नोलॉजी का अविष्कार के बाद लोग पेटेंट भी करा लेते हैं और फिर शांत होकर बैठ जाते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए, उन्हें संबंधित टेक्नोलॉजी का विस्तार करना चाहिए। खुद समर्थ न होने पर उसके मैन्युफैक्चर को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर कर देनी चाहिए, इसके बदले रॉयल्टी का करार करें। उन्होंने कहा कि सरकार की आइपीआर नीति से पेटेंट में बढ़ावा मिल रहा है। कार्यक्रम में डॉक्टर, लविवि, एकेटीयू, एनबीआरआइ, आइटीआरसी, सीडीआरआइ व निजी संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए।


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