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देवभूमि को महकाएगी इत्र नगरी, तकनीकी सहयोग से बढ़ेगा सुगंध कारोबार

इत्र व इतिहास की नगरी अब देवभूमि उत्तराखंड को भी महकाएगी। देहरादून में इसके लिए पांच दिवसीय विशेष कार्यशाला शुरू की गई।

By Ashish MishraEdited By: Published: Thu, 15 Jun 2017 04:15 PM (IST)Updated: Thu, 15 Jun 2017 04:17 PM (IST)
देवभूमि को महकाएगी इत्र नगरी, तकनीकी सहयोग से बढ़ेगा सुगंध कारोबार
देवभूमि को महकाएगी इत्र नगरी, तकनीकी सहयोग से बढ़ेगा सुगंध कारोबार

कन्नौज [शिवा अवस्थी]। सात समंदर पार तक अपनी खुशबू के लिए प्रसिद्ध इत्र व इतिहास की नगरी अब देवभूमि उत्तराखंड को भी महकाएगी। देहरादून में इसके लिए पांच दिवसीय विशेष कार्यशाला शुरू की गई। सुगंध के औषधीय इस्तेमाल व बाजार में फायदे पर शोध शुरू किया गया है। इसमें देश के दिग्गज विशेषज्ञ जुटे हैं। कार्यशाला में प्राकृतिक डेग व भभके के साथ इसेंशियल ऑयल से सुगंधित वस्तुएं, परफ्यूम बनाने की सीख दी जाएगी। थोड़े दिन में ही देवभूमि भी इत्र नगरी की खुशबू से महक उठेगी। यह पहल सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र एफएफडीसी कन्नौज व वन अनुसंधान संस्थान देहरादून के साझा प्रयास से कारगर हुई है।

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देहरादून में यह कार्यशाला 12 जून से शुरू हुई है जो 16 जून तक चलेगी। उत्तराखंड में खुशबू फैलाने के लिए 34 लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। कार्यशाला में एफएफडीसी कन्नौज के प्रधान निदेशक शक्ति विनय शुक्ला, सहायक निदेशक डॉ. एपी सिंह गुर सिखा चुके हैं। इन लोगों ने इत्र निर्माण, विपणन व प्रबंधन के हर पहलू पर फोकस किया। एफएफडीसी कन्नौज के प्रधान निदेशक शक्ति विनय शुक्ला ने बताया कि देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान की साझा पहले से उत्तराखंड में सुगंध कारोबार के नए आयाम गढऩे की शुरुआत हुई है। प्रशिक्षण देकर विशेषज्ञ तैयार किए जा रहे हैं। इसके बाद धीरे-धीरे नए आयाम गढ़े जाएंगे।

इन पर हुआ मंथन
-छोटे-छोटे उद्यमियों को सुगंध कारोबार से जोडऩा।
-उत्तराखंड के औषधीय पौधों के तेल का सदुपयोग।
-पहाड़ों के बीच जड़ी बूटियों की पहचान करना।
-प्राकृतिक इत्र निर्माण क्षेत्र की संभावनाओं की तलाश।
-औषधीय पौधों से आय बढ़ाने पर फोकस।
-बाजारों की क्षमता व व्यापारिक अवसरों पर निगाह।
-युवाओं के कौशल को मजबूत कर रोजगार उपलब्धता।

यहां से निकलेगा कारोबार का रास्ता
उत्तराखंड में हल्द्वानी, चमोली, बागपत, अल्मोड़ा आदि पहाड़ी इलाकों वाले जिलों और सुदूर वन क्षेत्र में मिलने वाले औषधीय प्रजातियों के पौधों से सुगंध कारोबार का रास्ता निकलेगा। इन पौधों से प्राकृतिक इत्र निर्माण के पहलुओं पर काम किया जाएगा।


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