श्रीकृष्ण प्रेम में दीवानी विदेशी बालाएं
मथुरा-वृंदावन के इस्कॉन मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर चल रहा है। हरिनाम संकीर्तन के दौरान विदेशी कृष्ण भक्त महिलाएं भगवान के ध्यान में लगीं हैं। प्रेम का संदेश, कर्म का संदेश और योग को सहज समझाने वाले भगवान कृष्ण के दीवानों की कहीं कमी नही है। मथुरा में तिल रखने
लखनऊ। मथुरा-वृंदावन के इस्कॉन मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर चल रहा है। हरिनाम संकीर्तन के दौरान विदेशी कृष्ण भक्त महिलाएं भगवान के ध्यान में लगीं हैं। प्रेम का संदेश, कर्म का संदेश और योग को सहज समझाने वाले भगवान कृष्ण के दीवानों की कहीं कमी नही है। मथुरा में तिल रखने को जगह नहीं सूझ रही है। उजबेकिस्तान की दो बालाएं भक्ति की राह पर चल पड़ी हैं। खुद राधा बन यह दोनों अल्पसंख्यक समुदाय की बालाएं कृष्ण के प्रेम की चाह लिए घूम रहीं हैं। इनके लिए सरहदें कोई मायने नहीं रखतीं। चाह है तो बस कान्हा को पा लेने की। उनके भक्ति भाव में डूब जाने की। कान्हा के प्रति उनके प्रेम की इतनी गाढ़ी चादर ओढऩे की कि सोते-जागते केवल कान्हा ही नजर आएं। श्रीकृष्ण जन्मभूमि के दर्शन पाकर कितने ही लोग अपने को धन्य समझ रहे हैं।
जन्माष्टमी पर भक्ति रस---मथुरा ही नहीं पूरा देश श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भक्ति रस में डूबा है। पर्व पर कुशीनगर आईं उजबेकिस्तान की अल्पसंख्यक समुदाय की शाख नोज को राधा-कृष्ण के प्रेम (भक्ति भाव) ने ऐसा प्रभावित किया कि वे कृष्ण प्रेम में बावली हो उठीं। उनका कहना है कि अपने देश में एक आयोजन में इस भक्ति भाव ने उन्हें प्रभावित किया। 1999 में गोपालकृष्ण महाराज से दीक्षा लेने के बाद शाख नोज ने अपना नाम बदलकर सुंदरी देवी दास रख लिया और तबसे वह कृष्ण प्रेम में गीत गा रही हैं। उनके साथ मास्को की रहने वाली याना (वर्तमान में इंद्राणी देवी दास) जो अब जर्मनी में रहती हैं भी इसी राह पर सुंदरी के साथ हैं। दोनों विदेशी बालाओं ने कहा कि वे राधा बनकर कृष्ण को पाना नहीं चाहती, बल्कि उनका होना चाहती हैं। प्रेम ही भक्ति का वह मार्ग है, जो कृष्ण के करीब हमें ले जाता है। विश्व के विभिन्न देशों में होने वाले कृष्ण से जुड़े आयोजनों में शरीक होती हैं।