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जुबानी जंग में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद और नरेंद्रानंद सामने

मोह-माया से दूर रहकर त्याग-तपस्या की सीख देने वाले संत आपस में पद प्रतिष्ठा की जंग में जूझ रहे हैं। इस कारण तीर्थराज प्रयाग के माघ मेले में आए श्रद्धालुओं संग अन्य सनातन मतावलंबियों की भावनाएं आहत हो रही हैं।

By Nawal MishraEdited By: Published: Tue, 09 Feb 2016 07:23 PM (IST)Updated: Wed, 10 Feb 2016 09:16 AM (IST)

लखनऊ। आम लोगों को मोह-माया से दूर रहकर त्याग-तपस्या की सीख देने वाले संत आपस में पद प्रतिष्ठा की जंग में जूझ रहे हैं। इस कारण तीर्थराज प्रयाग के माघ मेले में आए श्रद्धालुओं संग अन्य सनातन मतावलंबियों की भावनाएं आहत हो रही हैं। ताजा विवाद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती व काशी सुमेरुपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती के बीच है। शास्त्रार्थ को लेकर दोनों पक्ष एक-दूसरे को न सिर्फ चुनौती दे रहे हैं वरन प्रतिद्वंद्वियों को पराजित भी घोषित कर दे रहे हैं।

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स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने कुछ दिन पहले शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती को शास्त्रार्थ की चुनौती दी थी। शंकराचार्य के शिष्य ब्रह्मचारी निर्विकल्प स्वरूप ने स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती को ही स्थान समय व तारीख का निर्धारण कर लेने का आग्रह किया। इस पर स्वामी नरेंद्रानंद ने निर्विकल्प से शास्त्रार्थ की बात को उनके पद व गरिमा के विपरीत बताया और कहा, उन्होंने शंकराचार्य स्वरूपानंद को शास्त्रार्थ की चुनौती दी है, उनके शिष्य को नहीं। निर्विकल्प स्वरूप ने मंगलवार को जारी बयान में कहा, सोमवार शाम शंकराचार्य स्वरूपानंद की मौजूदगी में स्वामी नरेंद्रानंद को जनसमुदाय के बीच कई बार शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया गया, परंतु वह नहीं आए। इसलिए आम सहमति से उन्हें (स्वामी नरेंद्रानंद को) पराजित घोषित करते हुए शंकराचार्य की उपाधि का प्रयोग न करने की सलाह दी गई साथ ही पुन: शास्त्रार्थ करने की चुनौती न देने योग्य बताया गया। अब स्वामी नरेंद्रानंद के शिष्य मूर्खानंद ब्रह्मचारी का दावा है कि उन्होंने सात फरवरी को स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शास्त्रार्थ के लिए लिखित चुनौती दी थी। इसका उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। स्वामी नरेंद्रानंद के इस शिष्य का दावा है कि इसके पहले भी उनके गुरु ने स्वामी स्वरूपानंद को 24 अप्रैल 2010 को हरिद्वार व नौ फरवरी 2013 को प्रयाग में शास्त्रार्थ की चुनौती दी थी, परंतु वह नहीं आए। अपनी सुविधा के अनुसार बिना सूचना शास्त्रार्थ आयोजित कर परिणाम घोषित करना धर्म व नियम विरुद्ध है, इसके लिए प्रतिद्वंद्वियों को क्षमा मांगनी चाहिए।

वासुदेवानंद व अधोक्षजानंद का इस्कॉन को समर्थन

माघ मेला क्षेत्र में इस्कॉन भी जुबानी जंग का सबब बन गया है। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने रविवार को कहा था कि इस्कॉन जैसे संगठन की वजह से सनातन धर्म कमजोर हो रहा है। उन्होंने दावा किया था कि इस्कॉन के जरिए भारत का पैसा अमेरिका भेजा जा रहा है क्योंकि संस्था वहीं पंजीकृत है। वहीं जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती व देवतीर्थ अधोक्षजानंद सरस्वती सोमवार को इस्कॉन के पक्ष में उतर गए। स्वामी वासुदेवानंद ने कहा कि प्रभुपाद ने इस्कॉन के जरिए पूरे विश्व के लोगों को हरे राम- हरे कृष्ण जपने को मजबूर किया है। उन्होंने भगवान कृष्ण व गीता को विदेश में स्थापित किया है, इसका विरोध धर्म के विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि धर्म के नाम पर व्यापार नहीं होना चाहिए। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा आरएसएस के स्वयंसेवकों के गोमांस खाने संबंधी बयान की भी उन्होंने निंदा की। कहा कि राष्ट्रसेवी स्वयंसेवकों पर गोमांस भक्षण का आरोप लगाना धार्मिक व सामाजिक पाप है। स्वामी वासुदेवानंद ने काशी सुमेरुपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती का भी समर्थन करते हुए कहा कि उनकी पीठ सर्वमान्य है। देवतीर्थ स्वामी अधोक्षजानंद सरस्वती ने भी स्वरूपानंद के इस्कॉन पर दिए गए बयान को गलत बताया। कहा कि शंकराचार्य को उनके शिष्य भ्रमित कर रहे हैं।


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