उत्सव मनाएं, पर दूसरे की निजी जिंदगी न हो प्रभावित : हाईकोर्ट
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शारदीय नवरात्र के आयोजनों पर फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान ऐसे उत्सवों की मनाही नहीं करता लेकिन इनमें किसी उपद्रव या किसी के निजी अधिकारों के उल्लंघन की इजाजत भी नहीं देता।
लखनऊ। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शारदीय नवरात्र के आयोजनों पर फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान ऐसे उत्सवों की मनाही नहीं करता लेकिन इनमें किसी उपद्रव या किसी के निजी अधिकारों के उल्लंघन की इजाजत भी नहीं देता। कोर्ट के मुताबिक आम जनजीवन की हिफाजत करना भी प्रशासन की ड्यूटी है। धार्मिक आस्थाएं संविधान के तहत संरक्षित व सुरक्षित हैं, इन्हें जारी रखा जाना है। ऐसे में प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से किनारा नहीं कर सकता लेकिन साथ ही याचियों और आयोजनों से जुड़े अन्य लोगों को भी अपने मूल कर्तव्यों का पालन करते रहना होगा।
न्यायमूर्ति अमरेश्वर प्रताप साही और न्यायमूर्ति अताउर्रहमान मसूदी की खंडपीठ ने सोमवार को यह अहम फैसला प्रदेश भर की दुर्गा पूजा समितियों की ओर से दायर 11 याचिकाओं का एक साथ निपटारा करते हुए सुनाया। ये सभी मामले नवरात्र में दुर्गापूजा आयोजनों आदि से संबंधित थे।
अदालत ने फैसले में इस बात पर खास जोर दिया कि प्रशासन न सिर्फ दुर्गापूजा संबंधी शोभायात्राओं (जुलूसों) और मूर्तियां खास जगहों पर स्थापित करने में सावधानी बरते बल्कि आम जनता की भलाई भी दिमाग में रखे। किसी भी रिहायशी इलाके में शांति और लोक व्यवस्था पर भी गौर करना होगा ताकि ऐसे आयोजनों और कार्यक्रमों से लोगों के निजी अधिकारों में खलल न पड़े। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह सब शांतिपूर्ण कार्यक्रम व आयोजन संपन्न होने तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि नागरिकों के मूल अधिकार भी सुरक्षित रहने चाहिए।
इन आयोजनों के दौरान सार्वजनिक जगहों पर अतिक्रमण और पंडाल लगाने, सड़कें बाधित करने, प्रदूषण व सामान्य जीवन प्रभावित करने संबंधी मुद्दों की भी प्रशासन द्वारा उपेक्षा न करने की बात कोर्ट ने कही है। अदालत ने कहा कि कोई भी धार्मिक क्रिया-कलाप बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ बंदिश के रूप में नहीं माना जा सकता। अदालत ने इन अहम टिप्पणियों और विधि व्यवस्था केसाथ हाल ही में दो न्यायाधीशों की एक अन्य खंडपीठ के फैसले के प्रकाश में इन याचिकाओं का निपटारा कर दिया।