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दीक्षांत समारोह : विध्वंसक नहीं सृजनात्मक रखें दृष्टिकोण

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और कुलाधिपति राम नाईक ने कहा कि दुनिया में महाशक्ति बनने विध्वंसक नहीं सृजनात्मक दृष्टिकोण रखना जरूरी है। वहीं भारत को पुन: विश्व गुरु बनाने सबको कठोर परिश्रम करना होगा।

By Nawal MishraEdited By: Published: Fri, 19 Dec 2014 09:04 PM (IST)Updated: Fri, 19 Dec 2014 09:08 PM (IST)
दीक्षांत समारोह : विध्वंसक नहीं सृजनात्मक रखें दृष्टिकोण

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और कुलाधिपति राम नाईक ने कहा कि दुनिया में महाशक्ति बनने के लिए विध्वंसक नहीं सृजनात्मक दृष्टिकोण रखना जरूरी है। वहीं भारत को पुन: विश्व गुरु बनाने सबको कठोर परिश्रम करना होगा।

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वह आज वाराणसी स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के 32वें दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। कहा कि विद्यार्थी जीवन कभी समाप्त नहीं होता। उपाधि लेने के बाद आप खुली दुनिया में जाएंगे जहां कड़ी प्रतिस्पर्धा है। ऐसे में अब आपको नई स्पर्धा की तैयारी करनी होगी। पूरे देश में करीब 700 विश्वविद्यालयों व 35 हजार महाविद्यालयों में करीब दो करोड़ विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। दिल में पीड़ा है कि हम दुनिया के 200 शिक्षण संस्थाओं में भी स्थान नहीं बना पा रहे हैं। इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध कंप्यूटर वैज्ञानिक पद्मश्री डा.विजय पांडुरंग भटकर थे। इस दौरान कुलाधिपति ने 28 मेधावियों को 51 स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक प्रदान किए जिसमें सर्वाधिक नौ पदक स्वामी राममुनि को नौ स्वर्ण पदक मिले। इसके अलावा 30623 विद्यार्थियों को शास्त्री, आचार्य, पीएचडी सहित अन्य उपाधि प्रदान की गई।

सेतु बनकर करूंगा कार्य

राज्यपाल राम नाईक ने कहा काशी दुनिया का सबसे पुराना शहर है। धार्मिक दृष्टि से काशी का विशेष महत्व है। बावजूद काशी में पानी व सीवर की व्यवस्था ठीक नहीं है। नागरिक सुविधाओं को प्राथमिक देने के लिए मुख्यमंत्री व महापौर के बीच गत दिनों लखनऊ में बैठक बुलाई थी। विकास के लिए केंद्र व राज्य के बीच सेतु बनकर कार्य करेंगे। वह शनिवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के 32वें दीक्षांत समारोह में शामिल होने आए हुए थे। उन्होंने कहा कि देश की कानून व्यवस्था और सुधारने की आवश्यकता है। अपराधियों के खिलाफ केंद्र, राज्य व स्थानीय पुलिस-प्रशासन को कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जनवरी के प्रथम सप्ताह में सूबे के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों व कुलसचिवों की बैठक बुलाई गई है।

एमजेएमसी को मंजूरी

संस्कृत विश्वविद्यालय में भी शीघ्र ही एमजेएमसी पढ़ाई शुरू होगी। राज्यपाल व कुलाधिपति ने इसकी मंजूरी दे दी है। दीक्षांत समारोह के दौरान कुलाधिपति ने पत्रकारों को बताया कि पत्रकारिता का कोर्स चलाने के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है।

कंप्यूटर जोड़ बनाएं नया पाठ्यक्रम

सुप्रसिद्ध कंप्यूटर वैज्ञानिक पद्मश्री डा.विजय पांडुरंग भटकर ने दीक्षांत भाषण में कहा कि संस्कृत विश्व की सभी भाषाओं की जननी है। इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त होना चाहिए। यदि हम संस्कृत को कंप्यूटर की भाषा बनाएं तो केवल भारतीय ही नहीं, अपितु एशिया की अनेक भाषाओं के उपयोग में भी सफलता मिल सकती है। ऐसे में संस्कृत व कंप्यूटर को जोड़कर नया पाठ्यक्रम बनाने की जरूरत है। इसे प्रारंभिक कक्षाओं से पढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा संस्कृत है। संस्कृत आधारित ध्वनि स्तरों के प्रयोग से ही भारतीय भाषाओं की लिपियों का प्रयोग किया गया। बाद में देवनागरी वर्णमाला को न केवल कंप्यूटर अपितु मोबाइल फोन के लघु की-बोर्ड में हुआ। अमेरिकन नासा वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स भी संस्कृत भाषा की महत्ता स्वीकार कर चुके हैं। वर्ष 1990 में पहली बार संस्कृत व कंप्यूटर पर शोध कार्य शुरू हुआ।


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