राष्ट्रीय चुनौतियों के लिए तैयार रहे सेना : अरूप राहा
वर्ष 1965 के भारत और पाक युद्ध को पाकिस्तान ने हम पर थोपा था। यह सच है कि पाकिस्तान के पास भारत से अधिक आधुनिक लड़ाकू विमान और रडार थे, लेकिन हमारे पास उनसे बेहतर पायलट थे।
लखनऊ। वर्ष 1965 के भारत और पाक युद्ध को पाकिस्तान ने हम पर थोपा था। यह सच है कि पाकिस्तान के पास भारत से अधिक आधुनिक लड़ाकू विमान और रडार थे, लेकिन हमारे पास उनसे बेहतर पायलट थे। आधुनिकीकरण से ज्यादा यह बात मायने रखती है कि मशीनों को चलाने वाले मानव संसाधन का स्तर क्या है। भारत की सेना को राष्ट्रीय चुनौतियों के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। ये बातें भारतीय वायुसेनाध्यक्ष अरूप राहा ने कहीं।
एयर चीफ मार्शल वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध के 50 साल पूरा होने के अवसर पर गुरुवार को लामार्टीनियर कॉलेज में आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 1965 का भारत-पाक युद्ध भारतीय वायुसेना को केंद्र में रखकर लड़ा गया था। यह वह समय था जब भारतीय वायुसेना अपने को मजबूत करने की प्रक्रिया की ओर कदम बढ़ा रही थी। उसके सामने नई चुनौतियां बहुत थीं। पाकिस्तान सेंटों जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन में शामिल हो चुका था। उसे बगदाद पैक्ट का फायदा हुआ और पश्चिमी देशों से मदद मिली। अमेरिका ने पाकिस्तानी वायुसेना को बहुत बड़े पैमाने पर आधुनिक हथियार उपलब्ध कराए। बम बरसाने वाले एफ 104, सेवर एफ-86 जैसे लड़ाकू विमान के साथ कैनबरा और एयर डिफेंस रडार भी दिए। दूसरी ओर भारत के पास बहुत बड़ी संख्या में पुराने जहाज थे, लेकिन उन्होंने अपना काम अच्छा किया। पाकिस्तानी सेना ने जम्मू और कश्मीर के छम्म जौरिया सेक्टर को भारत से अलग कर दिया था और वहां हमारी सेना मजबूती से लड़ रही थी। उनकी मदद के लिए भारतीय वायुसेना ने अपना अहम योगदान दिया जिस पर सबको गर्व होना चाहिए। 1965 के युद्ध के बाद हमने बहुत कुछ सीखा। यही कारण है कि 1971 और फिर 1999 का कारगिल युद्ध की जीत में भी भारतीय वायुसेना ने अहम योगदान दिया। समारोह में इस अवसर पर लामार्टीनियर कॉलेज से पढ़कर 1965 के युद्ध में हिस्सा लेने वाले जांबाजों और उनके परिवारों को सम्मानित किया गया। इस मौके पर मध्य कमान के सेनाध्यक्ष ले.जनरल राजन बख्शी और मध्य वायुकमान के चीफ एयर मार्शल केएस गिल भी मौजूद थे।