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स्टेशन ओवरलोड और वेटिंग में ट्रेनें

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By JagranEdited By: Published: Thu, 06 Apr 2017 04:11 PM (IST)Updated: Thu, 06 Apr 2017 04:11 PM (IST)
स्टेशन ओवरलोड और वेटिंग में ट्रेनें

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लखनऊ : बीती मंगलवार को ही जम्मूतवी से आ रही बेगमपुरा एक्सप्रेस को आलमनगर स्टेशन पर पहले 15 मिनट तक रोके रखा गया। यहां से ट्रेन चली तो चारबाग स्टेशन के होम सिग्नल पर ट्रेन को 25 मिनट खड़ा कर दिया गया। केवल पांच किलोमीटर की दूरी तय करने में इस सुपरफास्ट ट्रेन को 40 मिनट का समय लग गया। ट्रेनों के बढ़ते बोझ और पटरियों पर ट्रेनों की लंबी वेटिंग यात्रियों के लिए मुसीबत बन रही है।

बीते 49 साल के दौरान चारबाग स्टेशन पर आने वाली ट्रेनों की संख्या करीब पांच गुना हो गई है। लेकिन यहां प्लेटफार्म एक भी नहीं बढ़ सके हैं। हर एक प्लेटफार्म पर औसतन प्रतिदिन 40 ट्रेनों का भार इस समय हो गया है। सन 1972 में रेलवे ने आखिरी बार दो प्लेटफार्मो का विस्तार किया था। तब प्लेटफार्मो की संख्या बढ़कर सात हो गई थी, जबकि ट्रेनें उस समय केवल 60 थीं। आज ट्रेनों की संख्या 292 के करीब हो चुकी हैं लेकिन प्लेटफार्मो की संख्या उतनी ही है। चारबाग स्टेशन तक आने के लिए दिलकुशा से केवल एक अप और एक ही डाउन लाइन है। जबकि दिलकुशा से एक लाइन गोरखपुर की ओर रवाना होती है, जो कि बाराबंकी के बाद फैजाबाद की ओर निकल जाती है। इसी तरह दिलकुशा से ही लखनऊ-सुलतानपुर, लखनऊ-प्रतापगढ़ और लखनऊ-इलाहाबाद रूट की ट्रेनें रवाना होती हैं। इस तरह पांच दिशाओं से आने वाली ट्रेनों के चारबाग स्टेशन तक पहुंचने के लिए केवल एक ही लाइन है। जबकि चारबाग स्टेशन से भी रवाना होने के लिए उनको एक ही लाइन से गुजरना पड़ता है।

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शाम से बनती है मुसीबत

दरअसल रात नौ बजे से 11:30 बजे तक चारबाग स्टेशन का प्लेटफार्म नंबर एक पूरी तरह ब्लॉक हो जाता है। यहां पहले 10:15 बजे लखनऊ मेल रवाना होती है तो इसके ठीक बाद एसी एक्सप्रेस को लगाकर उसे रात 11:30 बजे रवाना किया जाता है। वहीं प्लेटफार्म नंबर दो पर 10:30 बजे चंडीगढ़ एक्सप्रेस रवाना होती है। इसे रात 10 बजे प्लेटफार्म पर लगाया जाता है। जबकि गोमती एक्सप्रेस प्लेटफार्म तीन पर आने के बाद 30 से 45 मिनट तक खड़ी रहती है। प्लेटफार्म सात से सहारनपुर पैसेंजर रवाना होती है, जिसके लिए यह ट्रेन 2 घंटा तक प्लेटफार्म को ब्लॉक रखती है। ऐसे में केवल प्लेटफार्म चार, पांच और छह से ही ट्रेनों का नियमित रूप से संचालन हो पाता है। शाम छह से रात 12 बजे तक 90 ट्रेनें चारबाग पहुंचती हैं। इन 90 ट्रेनों में से 40 ट्रेनों को प्लेटफार्म और लाइन के इंतजार में आउटर पर रुकना पड़ता है।

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इन ट्रेनों के जाम होते हैं पहिए

पटना से आने वाली श्रमजीवी एक्सप्रेस सप्ताह में दो से तीन दिन उतरेटिया से लखनऊ के बीच एक घंटा तक रोकी जाती है। इसके अलावा दून एक्सप्रेस, आम्रपाली एक्सप्रेस, सदभावना एक्सप्रेस, काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस, फैजाबाद दिल्ली एक्सप्रेस, गोरखधाम एक्सप्रेस, वैशाली एक्सप्रेस, बिहार संपर्कक्रांति एक्सप्रेस, सप्तक्रांति एक्सप्रेस, पटना कोटा एक्सप्रेस, नौचंदी एक्सप्रेस, मरुधर एक्सप्रेस और कुशीनगर एक्सप्रेस को सदर बाजार में रोका जाता है। इसी तरह बरेली-वाराणसी एक्सप्रेस, डबलडेकर, चंडीगढ़ एक्सप्रेस, जनता एक्सप्रेस, एसी एक्सप्रेस, अवध आसाम एक्सप्रेस को आलमनगर में जबकि फरक्का एक्सप्रेस, चित्रकूट एक्सप्रेस, पुष्पक एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस, राप्ती सागर एक्सप्रेस सहित कई ट्रेनें अमौसी से मानकनगर के बीच रोकी जाती हैं।

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समाधान : ऐसे मिलेगी राहत

चारबाग स्टेशन की क्षमता बढ़ाने के लिए यहां करीब 110 करोड़ रुपये से तीन चरणों का काम पूरा करने की जरूरत है। इसके लिए रेलवे बोर्ड ने मानकनगर से चारबाग होकर दिलकुशा तक दो अतिरिक्त रेल लाइन बिछाने, चारबाग स्टेशन पर दो नए प्लेटफार्म बढ़ाने और यार्ड रिमॉडलिंग के साथ रूट रिले इंटरलॉकिंग बिछाने की महत्वपूर्ण परियोजना को मंजूरी भी दे दी है। लेकिन इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम शुरू करने में रेलवे की सुस्ती आड़े आ रही है। रेलवे बजट मिलने के आठ माह बाद भी इस काम की टेंडर प्रक्रिया ही पूरी नहीं कर सका है। चारबाग स्टेशन पर करीब 80 करोड़ रुपये की यार्ड रिमॉडलिंग होगी। इसके तहत दो नए प्लेटफार्म नौ और 10 नंबर को बनाया जाएगा। इससे 50 ट्रेनों को एक दिन में खड़ा करने की क्षमता बढ़ेगी। जबकि मानकनगर से दिलकुशा तक एक अप और एक डाउन लाइन अतिरिक्त बनने से आउटर पर ट्रेनें नहीं रुकेंगी। सिग्नल प्रणाली को भी बेहतर करने की जरूरत है। इसके लिए 45 करोड़ रुपये से रूट रिले इंटरलॉकिंग का काम होगा। इस काम के पूरा होने के बाद ट्रेनों का संचालन और तेज गति से हो सकेगा। ट्रेनों को तुरंत सिग्नल मिलते ही चलाया जा सकेगा। इससे प्लेटफार्म झांसी और मुंबई जैसे स्टेशनों की तरह जल्दी खाली होंगे। अभी यलो सिग्नल देकर ट्रेनों को आउटर सिग्नल तक धीमी गति से चलाया जाता है। बेहतर रूट रिले इंटरलॉकिंग होने पर ट्रेनों को ग्रीन सिग्नल मिलेगा और वह अधिक तेजी से निकल सकेंगी।


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