नए सिरे से ग्राम पंचायतों का आरक्षण वैध : हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों के आरक्षण को चक्रानुक्रम (रोटेशन) से न कर शून्य से प्रारम्भ करने के सरकार के निर्णय को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा है कि प्रदेश में बढ़ी हुई जनसंख्या, ग्रामों के परिसीमन आदि को देखते हुए पुन: नये सिरे से गांवों
लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों के आरक्षण को चक्रानुक्रम (रोटेशन) से न कर शून्य से प्रारम्भ करने के सरकार के निर्णय को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा है कि प्रदेश में बढ़ी हुई जनसंख्या, ग्रामों के परिसीमन आदि को देखते हुए पुन: नये सिरे से गांवों में आरक्षण का निर्णय वैध है और इसमें कुछ भी असंवैधानिक नहीं है। हालांकि प्रदेश सरकार तथा चुनाव आयोग की इस आपत्ति को खारिज कर दिया गया है जिसमें कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 243 (ओ) के अन्तर्गत परिसीमन आदि मामलों में कोर्ट को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डा. डीवाई चन्द्रचूड व न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने संत कबीर नगर के संतराम शर्मा व कई अन्य की याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है। याचिकाओं में कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 243-डी के अन्तर्गत ग्र्राम पंचायतों में रोटेशन से आरक्षण की व्यवस्था है। परन्तु सरकार ने पंचायतराज एक्ट 1947 के अन्तर्गत बनी नियमावली में 16 सितम्बर को संशोधन कर पुन: नये सिरे से ग्राम पंचायतों के आरक्षण का फैसला किया है, जो गलत है। याचिकाकर्ताओं के वकीलों कृपाशंकर सिंह, राकेश पाण्डे व वीके दूबे का कहना था कि सरकार ने ग्राम पंचायतों में नये सिरे से आरक्षण कर असंवैधानिक काम किया है।
प्रदेश सरकार की तरफ से महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह, अपर महाधिवक्ता कमल सिंह यादव, अशोक कुमार पाण्डेय, मुख्य स्थायी अधिवक्ता संगीता चन्द्रा, वाईके श्रीवास्तव, आरबी यादव ने पक्ष रक्षा तथा कहा कि ग्राम पंचायतों का चुनाव 2011 की जनगणना के आधार पर हो रहा है। ग्राम पंचायतों के परिसीमन आदि के कारण कई हजार गांवों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है और कई ग्राम दूसरी पंचायतों में शामिल कर दिए गए। सरकार की तरफ से कहा गया कि ऐसी विषम परिस्थितियों में सरकार के पास नये सिरे से ग्रामों का चक्रानुक्रम आरक्षण के आलावा कोई विकल्प नहीं था।
मुख्य न्यायाधीश ने दो दिन की बहस के बाद शुक्रवार को पूरे दिन फैसला लिखाया तथा कहा कि इतने युद्घ स्तर पर काम करने में अगर छोटे-मोटी त्रुटि भी हो जाती है तो इस आधार पर आरक्षण की इस नयी नीति को गलत नहीं कहा जा सकता। इस फैसले से प्रदेश सरकार व इसके पंचायती विभाग को बड़ी राहत मिली है।
चुनाव में हस्तक्षेप के अधिकार पर सुनवाई जारी
चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद क्या हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करने का अधिकार है? यदि चुनाव प्रक्रिया संविधान की मंशा एवं कानून के खिलाफ चल रही हो तो पीडि़त हाईकोर्ट की शरण ले सकता है? ऐसे ही कई मुद्दों पर पूर्णपीठ में सुनवाई जारी है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता, न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता एवं न्यायमूर्ति बीके मिश्रा की पूर्णपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। सोमवार 12 अक्टूबर को भी सुनवाई होगी।