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घटती कमाई से कहीं थम न जाए विकास की रफ्तार

उम्मीद से कम कमाई से उत्तर प्रदेश में विकास की रफ्तार पर ब्रेक लग सकती है। समाजवादी पार्टी सरकार की तमाम लोक-लुभावनी योजनाओं व विकास परियोजनाओं को तेजी से अमलीजामा पहनाने की कोशिशों को झटका लग सकता है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Mon, 31 Aug 2015 04:36 PM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2015 04:42 PM (IST)

लखनऊ (अजय जायसवाल)। उम्मीद से कम कमाई से उत्तर प्रदेश में विकास की रफ्तार पर ब्रेक लग सकती है। समाजवादी पार्टी सरकार की तमाम लोक-लुभावनी योजनाओं व विकास परियोजनाओं को तेजी से अमलीजामा पहनाने की कोशिशों को झटका लग सकता है। टैक्स न घटाने बावजूद सरकार को तय लक्ष्य के मुताबिक कर राजस्व नहीं मिल पा रहा है। स्थिति यह है कि चार माह में सालाना लक्ष्य का 26.3 फीसद ही राजस्व सरकारी खजाने में पहुंचा है।

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लगभग साढ़े तीन वर्ष पहले सूबे की सत्ता हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी ने तमाम लोक-लुभावन वादे किए थे। पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में विकास के नाम पर केंद्र में एनडीए सरकार बनने के बाद से अखिलेश यादव सरकार का भी ज्यादा फोकस विकास परियोजनाओं पर ही है। ऐसे में सपा सरकार डेढ़ वर्ष बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए सभी लुभावने वादों को पूरा करने के दबाव के साथ ही विकास की परियोजनाओं को तेजी से अमलीजामा पहनाने की कोशिश में है। इस पर भारी-भरकम खर्चे के मद्देनजर सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में कर राजस्व से रिकार्ड कमाई का लक्ष्य तय किया है। विकास कार्य व वादों को पूरा करने में सरकारी खजाना तो खाली हो रहा है लेकिन उसकी भरपाई उम्मीद के मुताबिक कर राजस्व से नहीं हो पा रही है।

हालत यह है कि वित्तीय वर्ष में कर राजस्व से 93330 करोड़ रुपये की कमाई की आस लगाए बैठी सरकार को गुजरी एक-तिहाई वर्ष यानी चार माह (अप्रैल से जुलाई) में मात्र 24573.3 करोड़ रुपये ही मिले हैं। खास बात यह है कि जून (88.5 फीसद) से भी जुलाई (87.9 फीसद) में कम वसूली हुई है। ऐसे में वित्तीय संकट से लुभावनी योजनाएं व विकास परियोजनाएं न थमने पाएं इसके लिए घटते कर राजस्व की भरपाई को ही सरकार ने पिछले दिनों प्रदेशवासियों का हित न देखते हुए पेट्रोल-डीजल पर न्यूनतम वैट फिक्स कर दिया। उसकी नजर अब ऐसे और टैक्स पर भी है जिसके लगाने-बढ़ाने से सीधे तौर पर जनता की नाराजगी न झेलनी पड़े। मसलन, सरकार सिगरेट-सिगार, पान मसाला आदि पर ही 15 फीसद तक टैक्स बढ़ाकर सालाना दो सौ करोड़ रुपये अतिरिक्त टैक्स जुटाने की जुगत है।

वाणिज्य व आबकारी कर घटने से बड़ा झटका

सरकार को सबसे ज्यादा झटका आबकारी तथा वाणिज्य कर से मिलने वाले टैक्स से लग रहा है। कुल कर राजस्व का तकरीबन 57 फीसद (53500 करोड़ रुपये) वाणिज्य कर से मिलने की उम्मीद लगाए सरकार को जुलाई तक 13964.43 करोड़ रुपये ही मिले हैं जबकि उसने 15973 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा था। जानकारों का कहना है बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी पर कड़ाई से अंकुश न लगने से वाणिज्य कर राजस्व में उम्मीद के मुताबिक इजाफा नहीं हो रहा है। शराब की तस्करी और अवैध तरीके से बनने वाली शराब पर प्रभावी अंकुश न लगने से गुजरे एक-तिहाई वर्ष में लक्ष्य का एक-चौथाई आबकारी राजस्व भी सरकार को नहीं मिला है। 17500 करोड़ रुपये के लक्ष्य का 24.2 फीसद राजस्व ही जुलाई तक सरकारी खजाने में आया है। स्टाम्प एवं निबंधन शुल्क से 15 हजार करोड़ रुपये की आय का लक्ष्य है लेकिन विभागीय अफसरों का कहना है कि बढ़ती महंगाई और कुछ हद तक रियल एस्टेट में मंदी से संपत्तियों की खरीद-फरोख्त में तेजी नहीं आ रही है जिसका बड़ा असर राजस्व आय पर पड़ रहा है। जुलाई तक 4314.39 करोड़ रुपये (28.8 फीसद) ही स्टाम्प व निबंधन राजस्व का सरकार को मिला है। परिवहन, भू-राजस्व, पर्यटन व ऊर्जा आदि से भी सरकार को उम्मीद के मुताबिक कर राजस्व नहीं मिल रहा है। हालांकि तमाम बड़ी फिल्मों की जबरदस्त सफलता से सरकार तय लक्ष्य के मुताबिक मनोरंजन कर हासिल करने में कामयाब रही है।

अपेक्षित वृद्धि दर में 16.9 फीसद की है कमी

राजस्व आय के तय लक्ष्य को सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में अबकी औसतन 25.7 फीसद की अपेक्षित वृद्धि दर रखी है लेकिन जुलाई तक विभिन्न विभागों की गत वर्ष की वसूली से औसत वृद्धि दर मात्र 8.8 फीसद ही रही है। अपेक्षित औसत वृद्धि दर से 16.3 फीसद की कमी ने सरकारी खजाने का हिसाब-किताब रखने वाले वित्त विभाग की चिंता बढ़ा रखी है। चूंकि एक-तिहाई वित्तीय वर्ष गुजर चुका है इसलिए जानकारों को लग रहा है कि यदि ऐसी ही स्थिति रही तो सालाना लक्ष्य को हासिल करना असंभव होगा। यद्यपि लक्ष्य के मुताबिक कर राजस्व सुनिश्चित करने को मुख्य सचिव आलोक रंजन प्रतिमाह संबंधित विभागों के प्रमुख सचिवों के साथ बैठक कर रहे हैं।


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