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छोटी सी पुस्तक और राष्ट्रगान जैसा बड़ा बदलाव

14 अगस्त 2014 राष्ट्रपति डा.प्रणब मखर्जी को समर्पित एक पुस्तक 'हमारा गर्व- हमारा राष्ट्रीय ध्वज' में आए संदर्भ राष्ट्रगान में परिवर्तन का कारण बने। यह पुस्तक देश के लिए ऐतिहासिक और बहुमूल्य धरोहर सिद्ध हो गई। इसके प्रकाशन से राष्ट्रीय ध्वज के बारे में फैली भ्रांतियाँ दूर करने में मदद

By Nawal MishraEdited By: Published: Sat, 13 Jun 2015 02:44 PM (IST)Updated: Sat, 13 Jun 2015 03:02 PM (IST)
छोटी सी पुस्तक और राष्ट्रगान जैसा बड़ा बदलाव

लखनऊ। 14 अगस्त 2014 राष्ट्रपति डा.प्रणब मखर्जी को समर्पित एक पुस्तक 'हमारा गर्व- हमारा राष्ट्रीय ध्वज' में आए संदर्भ राष्ट्रगान में परिवर्तन का कारण बने। यह पुस्तक देश के लिए ऐतिहासिक और बहुमूल्य धरोहर सिद्ध हो गई। इसके प्रकाशन से राष्ट्रीय ध्वज के बारे में फैली भ्रांतियाँ दूर करने में मदद मिली। इसके बाद सबसे पहले-भारत-2014-में राष्ट्रगान को संशोधित रूप में छापा गया। इसमें सिंधु के स्थान पर सिंध छपा। कालांतर में यही संदर्भ लेकर सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रकाशित की जाने वाली पुस्तकों में इसे प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक मध्य प्रदेश के राज्यपाल राम नरेश यादव ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति डॉ. प्रणब मुखर्जी को स्वयं भेंट की।

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'हमारा गर्व-हमारा राष्ट्रीय ध्वज' और प्रणव मुखर्जी
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि यह पुस्तक युवाओं में राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मान की भावना जागृत करने में सार्थक सिद्ध हो रही है। उन्होंने स्वयं राष्ट्रीय ध्वज और संविधान के बारे में कई स्थानों से जानकारियाँ प्राप्त कीं परन्तु किसी से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। देश में राष्ट्रीय ध्वज की स्थापना को लेकर भ्रामक स्थिति उत्पन्न होने के कारण भारतीय संविधान और राष्ट्रीय ध्वज के बारे में सही तथ्य और जानकारी युवाओं तक पहुँचाने की बात मन में आई। उसी का परिणाम यह पुस्तक है। भ्रम को दूर करने के लिए यह छोटा-सा प्रयास है। इस पुस्तक 'हमारा गर्व-हमारा राष्ट्रीय ध्वज' से छात्र-छात्राओं और युवकों को राष्ट्रीय ध्वज के संबंध में ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर जानकारी प्राप्त हो सकेगी।

राष्ट्रगान में बदलाव की लंबी यात्रा

समाजसेवी उमेश शास्त्री राज्यपाल के हाथों भेंट की गई पुस्तक के अंशों के बारे में बताते हैं कि इससे पहले 24 जून, 1919 को कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में गीत को बंगाली और हिंदी में गाया गया था। पहली बार यह गान वर्ष 1932 में पत्रिका 'तत्ववोधिनी' में प्रकाशित हुआ था। रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे बांग्ला भाषा में लिखा था। रवींद्र नाथ टैगौर के इस गान को 24 जून, 1950 की संविधान सभा में राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया था। तब से ऐसे ही इसे राष्ट्रगान के रूप में प्रकाशित किया जाता रहा है। वर्ष 2009 में पुस्तकों की समीक्षा के दौरान चर्चा में आए सुधार के प्रस्ताव पर राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद (एससीईआरटी) ने इस बाबत प्रमाण मांगे थे। उस समय भी सिंधु के स्थान पर सिंध शब्द होने के प्रमाण दिए गए थे परंतु संशोधन न हो सका। शिक्षा विभाग की ओर से रिकार्ड की जांच करने पर 2001 से त्रुटिपूर्ण राष्ट्रगान प्रकाशित किए जाने की पुष्टि हुई है। किताबों में प्रकाशित राष्ट्रगान की संबंधित पंक्ति 'पंजाब, सिंधु, गुजरात मराठा में सिंधु नदी का नाम है जबकि पंजाब व मराठा प्रदेश हैं। समीक्षा के दौरान यह भी सवाल उठा कि प्रदेशों के बीच नदी के नाम का क्या औचित्य हो सकता है। 'हमारा गर्व-हमारा राष्ट्रीय ध्वज'पुस्तक में इस बात को प्रमुखता से उठाकर बदलाव पर जोर दिया गया। इसी की परिणति यह बदलाव है।

अब राष्ट्रगान में सिंधु की जगह सिंध
राजकीय प्रकाशक की पुस्तकों के पिछले पृष्ठ पर अभी तक प्रकाशित हो रहे राष्ट्रगान में सिंधु शब्द के स्थान पर अब सिंध शब्द रहेगा। कम से कम उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों के बच्चे नये सत्र से यहीं राष्ट्रगान पढ़ेंगे। प्रदेश के सरकारी और सहायता प्राप्त प्राथमिक व जूनियर स्कूलों के करीब सवा दो करोड़ बच्चों को मिलने वाली नि:शुल्क पुस्तकों में सालों से राष्ट्रगान में सिंधु शब्द छपता आ रहा है। सर्व शिक्षा अभियान के पाठ्यपुस्तक कार्यालय सूत्रों के मुताबिक 15 जून आने वाली नई पुस्तकों के पीछे वाले पृष्ठ पर अब संशोधित राष्ट्रगान रहेगा। उत्तर प्रदेश राज्य शिक्षा संस्थान ने वर्ष 2014 में प्रमाण सहित सिंधु के स्थान पर सिंध करने का प्रस्ताव पाठ्यपुस्तक अधिकारी को भेजा था। इसमें भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की ओर से भारत-2014 का हवाला दिया गया था, जिसमें सही राष्ट्रगान छपा है।


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