नेहरु के अंतिम संस्कार में उपस्थित थे नेता जी
फैजाबाद(रघुवरशरण)। कथित विमान हादसे के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस 1952 में दिखे। वे सीतापुर के शिव भ
फैजाबाद(रघुवरशरण)। कथित विमान हादसे के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस 1952 में दिखे। वे सीतापुर के शिव भगवान उर्फ भंडारी बाबा को ऋषिकेश में संन्यासी के वेश में मिले।
भंडारी बाबा ने 2001 में इस आशय का बयान मुखर्जी आयोग के आयुक्त के समक्ष दर्ज कराया। बयान के अनुसार संन्यासी के रूप में नेताजी से हुई यह मुलाकात स्थायी संबंध में तब्दील हुई और 27 मई 1964 को जब संन्यासी के ही रूप में नेता जी पं. जवाहरलाल नेहरू की पार्थिव काया को पुष्पांजलि अर्पित करने दिल्ली गए, तो उनके साथ भंडारी बाबा भी थे। भंडारी बाबा ने यह बयान देने के साथ आयोग को नेहरू जी की चिता के पास कई लोगों के बीच खड़े उन संन्यासी का एक फोटोग्राफ सौंपा, जिसमें उनकी शक्ल नेता जी से हूबहू मिलती है।
भंडारी बाबा गुमनाम संन्यासी को नेताजी बताने का अभियान लंबे समय से चलाते रहे और उनके इस अभियान को बड़ी संख्या में लोगों का समर्थन भी हासिल था। 2001 में जब वे आयोग के आयुक्त के समक्ष बयान देने के लिए फैजाबाद में उपस्थित हुए तो वे पुलिस अभिरक्षा में थे और उन्हें सीतापुर जेल से लाया गया था। भंडारी बाबा ने उस समय मीडिया से बातचीत में बताया था कि गुमनाम संन्यासी को नेताजी बताए जाने की मुहिम के चलते ही उन्हें 14 नवंबर सन् दो हजार से ही जेल में रखा गया है और उनके पास नेता जी एवं गुमनाम संन्यासी की अभिन्नता प्रतिपादित करते अनेक साक्ष्य थे पर उन साक्ष्यों को सीतापुर के तत्कालीन जिलाधिकारी ने उनकी गिरफ्तारी के समय ही नष्ट करा दिया। उनका दावा था कि नेता जी के ही इशारे पर उन्होंने ¨हदुस्तानी प्रजातंत्र सेना को नए सिरे से विस्तार देना शुरू किया। यही नहीं वे जिन गुमनाम संन्यासी को नेता जी बता रहे थे, वे मौनी बाबा के रूप में सीतापुर के एक आश्रम में प्रवास कर रहे थे।
सामाजिक सौहार्द के लिए प्रयासरत रहने वाले बुजुर्ग शायर रमजान अर्मा टांडवी के अनुसार चाहे वे रामभवन में प्रवास करने वाले गुमनामी बाबा रहे हो या सीतापुर के मौनी बाबा, वे वास्तव में नेताजी थे। रामभवन में प्रवास के दौरान रहस्य उजागर होने के डर से उन ताकतों ने गुमनामी बाबा की मौत का नाटक रचा और उनकी जगह किसी और के शव को उनका बताया गया। उधर सितंबर 1985 के बाद गुमनामी बाबा रहस्य बरकरार रखते हुए मौनी बाबा के रूप में सीतापुर में प्रवास करने चले गए।
हालांकि मौनी बाबा की सच्चाई यह कहकर खारिज की जाती थी उनकी पहचान अलहदा है और वे अयोध्या में ही स्थित पलटूदास अखाड़ा की परंपरा से जुड़े साधु थे और लंबे समय से सीतापुर में आश्रम बनाकर तपस्यालीन रहने वाले संत थे। फिर भी आग-धुआं के बीच अन्योन्याश्रित संबंध के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि अभियान की शक्ल में पेश रही मौनी बाबा की नेता जी होने की दावेदारी यूं ही थी। पल्टूदास अखाड़ा से जुड़े महंत रामप्रसाद दास के अनुसार मौनी बाबा पर बाद के कुछ वर्षों में नेता जी का अभूतपूर्व प्रभाव था और इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि नेता जी के परवर्ती जीवन के किसी सूत्र ने उन्हें चमत्कृत किया रहा होगा।