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पर्यावरण बदलाव: हिमालय का दायरा बढ़कर आधे भारत तक फैलगा

पर्यावरण असंतुलन सिर्फ जीव जंतु और पेड़ पौधों को नहीं, हिमालय सरीखी पहाड़ की चोटियों को भी प्रभावित कर रहा है। प्राकृतिक संपदा के दोहन और पर्यावरण से छेड़छाड़ के चलते तेजी से यंग माउंटेंस यानी नई चोटियां विकसित हो रही हैं। इसका असर भले ही कुछ वर्षों में न

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 26 Feb 2015 11:42 AM (IST)Updated: Thu, 26 Feb 2015 11:49 AM (IST)

लखनऊ। पर्यावरण असंतुलन सिर्फ जीव जंतु और पेड़ पौधों को नहीं, हिमालय सरीखी पहाड़ की चोटियों को भी प्रभावित कर रहा है। प्राकृतिक संपदा के दोहन और पर्यावरण से छेड़छाड़ के चलते तेजी से यंग माउंटेंस यानी नई चोटियां विकसित हो रही हैं। इसका असर भले ही कुछ वर्षों में न दिखे लेकिन आने वाले कुछ सौ वर्षों में इसके प्रभाव से भारत का नक्शा ही बदल जाएगा। देश का आधा क्षेत्र हिमालय के कब्जे में होगा।

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यह कहना है कि फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीटयूट देहरादून के वैज्ञानिक प्रोफेसर एसपी सिंह का। वह बरेली कॉलेज में राष्ट्रीय सेमिनार 'इनवायरमेंटल इशूज फॉर सोसो-इकोलॉजीकल डेवलपमेंटÓ में हिस्सा लेने आए हैं। प्रोफेसर एसपी सिंह ने पर्यावरण बदलाव से पडऩे वाले असर पर दैनिक जागरण बरेली से बातचीत की। बताया कि हिमालय हर साल कुछ सेंटीमीटर मूव कर रहा है। ब्लैक कार्बन और ग्रीन हाउस गैसों से हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहें हैं। इसके साथ ही नई चोटियां भी जन्म ले रही हैं। रिसर्च में यह बात स्पष्ट हो चुकी है। कुछ सौ वर्षों में हिमालय का दायरा उत्तर प्रदेश को पार कर जाएगा।

उन्होंने क्लीन कुकिंग पर जोर देते हुए कहा कि एलपीजी, हाइड्रो इलेक्ट्रीसिटी का सहारा लेना होगा ताकि कम से कम ब्लैक कार्बन उत्पन्न हो। ग्लेशियर के रूप में हमारे पास पानी के भंडार जरूर हैं लेकिन यह बिना जरूरत के ही बर्बाद हो रहे हैं। उन्होंने कुछ वैज्ञानिकों की उस बात को सिरे से खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि अगले 35 वर्षों में हिमालय के ग्लेशियर पिघल जाएंगे। स्पष्ट किया कि ग्लेशियर पिघलने की बात सही है लेकिन इसी तेजी से प्रदूषण का स्तर बढ़ता रहा तो भी ग्लेशियर खत्म होने में कई सौ वर्ष लग जाएंगे। उन्होंने कहा कि सरकार को ब्लैक कार्बन के स्तर को रोकने के लिए क्लीन कुकिंग के साधनों को बढ़ाना होगा।


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