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ताज में दफन हैं चार 'मुमताज'

लखनऊ। आगरा के ताजमहल का नाम आते ही मन में मुगल शहंशाह शाहजहां और उनकी बेगम मुमताज

By Edited By: Published: Fri, 31 Oct 2014 01:29 PM (IST)Updated: Fri, 31 Oct 2014 01:29 PM (IST)
ताज में दफन हैं चार 'मुमताज'

लखनऊ। आगरा के ताजमहल का नाम आते ही मन में मुगल शहंशाह शाहजहां और उनकी बेगम मुमताज के प्रेम की प्रतीक खूबसूरत संगमरमरी इमारत की तस्वीर उभरती है। जहां शहंशाह और उनकी बेगम, एक-दूसरे के बगल में दफन हैं। हर रोज हजारों सैलानी ताज के दीदार को आते हैं, लेकिन शायद ही किसी को पता चलता हो कि ताज में तीन और 'मुमताज' भी दफन हैं। शाहजहां की तीन और बेगमों के भी खूबसूरत मकबरे बने हैं। मगर, यहां सैलानियों के कदम कभी नहीं पड़ते।

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इतिहास के पन्नों की यह हकीकत आज भी सैलानियों की पहुंच से दूर है। दुनिया भर से ताज निहारने वाले आते हैं और केवल मुख्य मकबरा (जहां शहंशाह शाहजहां और मुमताज की कब्रें बनी हैं) को देखकर लौट जाते हैं। उन्हें भी यह भी नहीं पता होता कि शाहजहां की तीन बेगम और थीं। इतिहास के जानकार जरूर इस हकीकत से वाकिफ हैं। ताज के पश्चिमी गेट से प्रवेश करते ही दाई ओर कोठरियां बनी हुई हैं। इसी इमारत की छत पर फतेहपुरी महल बेगम का मकबरा स्थित है। ये कौन थीं, किसकी बेटीं और शाहजहां से इनका निकाह कब हुआ। इसका एतिहासिक अभिलेखों में कोई उल्लेख नहीं हैं।

स्मारक के बाहर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआइ) ने एक बीजक लगा रखा है। इसके मुताबिक मुताबिक फतेहपुरी महल बेगम, शाहजहां की पत्नी थीं। उन्होंने दिल्ली में एक सराय और चौक का निर्माण कराया। ताज पश्चिमी गेट के सामने बनी फतेहपुरी मस्जिद भी उन्होंने ही बनवाई गई थी। शाहजहां की एक और बेगम अकबराबादी महल बेगम का मकबरा पूर्वी से प्रवेश करते ही बाई ओर कोठरियों की छत पर बना है। इन कोठरियों में वर्तमान में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल का नियंत्रण कक्ष स्थापित हैं। एएसआइ के मुताबिक अकबराबादी महल बेगम का असली नाम इजुन्निसा बेगम था, इन्हें सरहिंदी बेगम भी कहा जाता है। इनके विषय में भी अन्य कोई जानकारी इतिहास में नहीं मिलती। एएसआइ के मुताबिक इजुन्निसा बेगम ने दिल्ली के फैज बाजार में एक मस्जिद बनवाई थी। माना जाता है कि इनके मकबरे का निर्माण ताज के निर्माण के साथ ही किया गया था।

शाहजहां की एक और बेगम कंधारी बेगम का मकबरा ताज पूर्वी गेट के बाहर है। इसके सामने ही एक मस्जिद भी बनी है, जिसे काली मस्जिद और संदली मस्जिद भी कहा जाता है।

इतिहासकार सईद अहमद मारहेरवी की पुस्तक अकबराबाद मुरक्का के मुताबिक कंधारी बेगम, मिर्जा मुजफ्फर हुसैन की पुत्री थीं। इनका निकाह, शहंशाह शाहजहां के साथ 1610 में हुआ था। यानि मुमताज से पहले वे शाहजहां की बेगम बनी थी। माना जाता है कि पूर्वी गेट के बाहर बना मकबरा उन्हीं का है। ऐतिहासिक अभिलेखों में इसका कोई जिक्र नहीं। परंतु कुछ इतिहासकार इसी को कंधारी बेगम का मकबरा मानते हैं।


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