जौनपुर की आबादी में ठिकाना तलाश रहे अजगर
लखनऊ। जौनपुर में की आबादी में अजगरों को अपने घर की तलाश है। वह आबादी की ओर तेजी से रुख
लखनऊ। जौनपुर में की आबादी में अजगरों को अपने घर की तलाश है। वह आबादी की ओर तेजी से रुख कर रहे हैं। प्रकृति में नित हो रहे परिवर्तन, प्रदूषण व मानव के अतिक्त्रमण ने अजगरों की दिनचर्या को प्रभावित किया है। इसके चलते नदियों के किनारे तराई इलाकों में रहने वाले अजगर ठौर बदलने को मजबूर हैं।
जैव विविधता बरकरार रखने वाले इन प्राकृतिक धरोहर का अस्तित्व संकट में है। जिले के सई और गोमती नदी के तटीय क्षेत्रों में अजगरों का बसेरा था। जलवायु परिवर्तन, गर्मी, भीषण ठंड, दूषित जल के अलावा फैक्ट्रियों का प्रदूषण नदी की तलहटी में जमा होने लगा है। इस कारण अजगर अपना स्थान छोड़ रिहायशी इलाकों की ओर भाग रहे हैं। परिणामस्वरूप नौपेड़वा, सिकरारा, जलालपुर, बदलापुर, केराकत सहित विभिन्न इलाकों में आए दिन अजगर पकड़े जा रहे हैं। लुप्तप्राय इन अजगरों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है।
कानून और हकीकत
वन्य जीव अधिनियम के अनुसूची एक के इन प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण पर पूरा विश्व जोर दे रहा है लेकिन जिले का वन विभाग बेपरवाह है। सूचना के बाद भी विलंब से पहुंचना जहा विभाग की गतिविधि में शामिल है वहीं सर्वेक्षण कर इनके प्राकृतिक रहवास को भी चिह्नित नहीं किया जा रहा है। गावों में इनकी आमद से ग्र्रामीणों में भय बढ़ता जा रहा है। आकड़ों पर गौर करें तो अगस्त में सात गावों में अजगर दिखे।
प्राकृतिक वास पर अतिक्त्रमण
जीव विशेषज्ञ अरविंद मिश्र का मानना है कि मानव द्वारा अजगरों के प्राकृतिक रहवास पर अतिक्त्रमण किया जा रहा है। नदी के दलदल वाले इलाके ही नहीं घाट तक की गतिविधिया प्रभावित हो गई हैं। जंगल खत्म होने के चलते अजगरों के प्राकृतिक आहार भी नष्ट हो गए हैं।
पकड़ने की नहीं व्यवस्था
डीएफओ एके सिंह ने कहा कि अजगरों को पकडऩे की कोई व्यवस्था नहीं है। कर्मचारी ग्र्रामीणों की मदद से बोरे में भरकर नदी के तटवर्ती इलाकों में छोड़ देते हैं। हर माह औसतन दो-तीन अजगर रिहायशी इलाकों में मिल रहे हैं।