जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है बालाबेहट
ललितपुर ब्यूरो : जनपद के अन्तिम छोर पर स्थित पिछड़ा व पठारी क्षेत्र बालाबेहट भले ही विकास से कोसों दू
ललितपुर ब्यूरो : जनपद के अन्तिम छोर पर स्थित पिछड़ा व पठारी क्षेत्र बालाबेहट भले ही विकास से कोसों दूर हो, लेकिन यह जैव विविधता की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। यहाँ के हरे-भरे पहाड़, जंगल, प्राचीन व धार्मिक स्थल बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते है। इस क्षेत्र से होकर बहती सौंर व नारायणी नदियों का सौन्दर्य अपनी ओर आकर्षित करता है। वहीं, जंगलों में विचरण करते पशु पक्षी सुन्दरता में चार चाँद लगाते है। जंगली प्रक्षेत्र में बसे ऐसे ही गाँव का वन विभाग ब्यौरा तैयार कर रहा है।
जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर कस्बा बालाबेहट पिछड़ा व पठारी क्षेत्र है। लखनऊ से निकलने वाली विकास की योजनायें यहाँ तक आते-आते रास्ते में ही दम तोड़ देती है। आदिवासी व अशिक्षित बाहुल्य यह क्षेत्र हमेशा से ही विकास से कोसों दूर रहा है। यहाँ के ग्रामीण बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं से महरूम है। इस सबके बावजूद ये क्षेत्र प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर है। जैव विविधता से महत्वपूर्ण यह क्षेत्र विकास की बाट जोह रहा है। जंगली प्रक्षेत्र में बसे होने के कारण कस्बे के चारों ओर हरा-भरा जंगल व पठारी क्षेत्र लगा हुआ है। खासतौर पर बरसात के मौसम में इस क्षेत्र का अलौकिक सौन्दर्य देखते ही बनता है। प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी (डीएफओ) वीके जैन के निर्देश पर वन विभाग द्वारा ऐसे गाँव का ब्यौरा तैयार किया जा रहा है, जो जंगली प्रक्षेत्र में बसे हुए है और जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। वन विभाग की टीम ने गत दिवस बालाबेहट क्षेत्र का भ्रमण कर महत्वपूर्ण जानकारियाँ जुटायी व लोगों से उनका दर्द जाना। कस्बा बालाबेहट की आबादी लगभग 7572 है। यहाँ पुरुष 4506 व महिलायें 3066 है। ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय खेती है। इसके बावजूद लगभग 325 परिवार पशुपालन, 4 परिवार मछली पालन, 120 परिवार व्यापार, 185 असंगठित श्रमिक व 125 संगठित श्रमिक है। बीपीएल, एपीएल कार्ड धारकों की संख्या लगभग 1179 है, जबकि अन्त्योदय कार्ड धारक 169 है। चूँकि यहाँ के लोग खेती के साथ-साथ पशुपालन भी करते है। आँकड़ों की मानें तो लगभग 3500 गाय, 400 भैंसे, 300 बकरियाँ व 1300 मुर्गी है। कस्बे के लोगों की आय में पशुपालन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कस्बे में लगभग 856 कच्चे घर, 612 पक्के मकान व लगभग 74 खपरैल घर है। बालाबेहट क्षेत्र में 6 मजरा रामनगर, कछयाहार, डारा, सलैया, बरैना, बजरगगढ़ है, जिनमें अधिकाँश आदिवासी है। आंकड़े कहते हैं कि यह समृद्ध जैव विविधता का क्षेत्र है। लघु उद्योग के रूप में यहाँ के ग्रामीण रस्सी, डलिया बनाने के साथ-साथ तेंदू पत्ता का संग्रह कर अपने परिवार का भरण पोषण करते है। कस्बे से सटे क्षेत्र में लगभग 2800 हैक्टेयर वन भूमि है। जिसमें 600 हैक्टेयर जंगल व झाड़ियाँ है। भौगोलिक क्षेत्रफल 5170.70 हैक्टेयर है।
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इनका कहना है
ब्यौरा तैयार कर अध्ययन किया जायेगा। साथ ही ग्रामीणों को जागरुक कर जंगल और जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए प्रेरित भी किया जायेगा, ताकि इस धरोहर को बचाया जा सके।
- वीके जैन
प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी (डीएफओ) ललितपुर।
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इस तरह नाम पड़ा बालाबेहट
बालाबेहट व आसपास के सटे इलाकों में हनुमानजी के 52 छोटे-बडे़ मन्दिर है, जिनमें अमोनिया हनुमान मन्दिर, पातालपानी हनुमान मन्दिर आदि शामिल है। चूँकि अधिकाँश मन्दिर बालाजी स्वरूप में हैं। अत: इस क्षेत्र को 'बालाबेहट' कहा गया। पूर्व में इसे 'बलखबुखारा' के नाम से भी जाना जाता था।
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इतिहास का साक्षी है प्राचीन किला
18वीं सदी में मराठों के सेनापति गंगाधर द्वारा प्राचीन किले का निर्माण कराया गया था। इस किले में विशालकाय चक्की अभी भी है। कहते है कि जेल में बन्द कैदी इससे अनाज पीसते थे। आजादी के समय यह किला क्रान्तिकारियों के ठहरने का स्थान था। आसपास जंगल होने के कारण क्रान्तिकारी यहाँ महीनों छिपे रहते थे। इस किले में प्राचीन हनुमान मन्दिर भी है।
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आस्था के स्थलों की है भरमार
बालाबेहट में आस्था के अनेक स्थल है। लगभग 52 हनुमानजी के छोटे-बड़े मन्दिर के साथ-साथ जैन मन्दिर, मस्जिद व अन्य स्थल है। बालाबेहट में वर्ष भर धार्मिक आयोजनों की धूम मची रहती है। मकर संक्रान्ति पर अमोनिया मन्दिर पर विशाल मेला, रामलीला आदि का आयोजन होता रहता है। तो वहीं शिवरात्रि पर भी मेला लगता है। इसके अलावा यज्ञ आदि के आयोजन भी हमेशा होते रहते है। यह कस्बा साम्प्रदायिक सौहार्द की भी अनूठी मिसाल है। सभी धर्मो के लोग मिल जुलकर पर्व मनाते हैं।
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वन्य जीवों की भी भरमार
बालाबेहट क्षेत्र में जंगली सुअर, हिरण, चीतल, साँभर, खरगोश, मोर, बन्दर, कोयल, तोता, मैना, बगुला, बत्तख, जलमुर्गी, सारस, छोटी-बड़ी जलीय चिड़ियाँ आदि पायी जाती है। हालाँकि सुरक्षा और संरक्षण के अभाव में इनका शिकार भी खूब होता है। बालाबेहट से एक किलोमीटर पहले बहने वाली सौंर नदी व लगभग 7 किलोमीटर दूर से बहने वाली नारायणी नदी में विशालकाय मगरमच्छ भी पाये जाते है। जिन्हें प्रात: किनारे पर धूप सेंकते आसानी से देखा जा सकता है।
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बनायी गयी प्रबन्ध समिति
वन विभाग ने जैव विविधता प्रबन्ध समिति का भी गठन किया है, जिसमें ग्राम प्रधान बालाबेहट रचना तोमर को अध्यक्ष व एक दर्जन सदस्य मनोनीत किये है।
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जड़ी-बूटी व पत्थर की खान है बालाबेहट
बालाबेहट क्षेत्र इमारती पत्थर व जड़ी-बूटियों की खान माना जाता है। आदिवासियों का जीवन इन्हीं पर केन्द्रित है। यहाँ की दुर्लभ जड़ी बूटियाँ महँगे दामों पर बेची जाती है। यहाँ के जंगलों में सेजा, तेंदू, महुआ, नीम, करधई, आँवला आदि के पेड़ खूब पाये जाते है।
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विकास से दूर है ग्रामीण
बालाबेहट क्षेत्र भले ही जैव विविधता की दृष्टि से सम्पन्न हो, लेकिन यहा के लोग विकास से कोसों दूर है। हर बार चुनाव में विकास के वायदे और दावे तो खूब किये जाते है, लेकिन बाद में सब भुला दिया जाता है। पाली-बालाबेहट मार्ग पर सौंर नदी पर रबर बाँध प्रस्तावित था। लेकिन अब इसे ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। इस नदी पर पुल भी बनाया जाना था, लेकिन वह भी टाँय-टाँय फिस्स हो गया। बरसात में इस नदी के उफनाने से बालाबेहट क्षेत्र का सम्पर्क जिले से कट जाता है।