गुरू पूर्णिमा पर नीलकंठेश्वर धाम पर लगा मेला
पाली (ललितपुर) : गुरू पूर्णिमा का पावन पर्व श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मनाया गया। नगर के विभिन्न मंदि
पाली (ललितपुर) : गुरू पूर्णिमा का पावन पर्व श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मनाया गया। नगर के विभिन्न मंदिरों में धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया। नीलकंठेश्वर धाम में विराजे भगवान नीलकंठ का भव्य श्रगार एवं अभिषेक किया गया। इसके साथ ही प्रतिवर्ष की भाँति मेला का भी आयोजन किया गया। जिसमें दूर-दूराज से आये लोगों ने मेले का जमकर लुफ्त उठाया। किसी ने झूले का आनन्द लिया तो किसी ने बच्चों को खिलौने खरीदे।
नगर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर विंध्याचल पर्वत की श्रृंखलाओं में भगवान नीलकंठेश्वर मंदिर है। जो अपनी विशिष्टताओं के कारण पूरे देश में जाना जाता है। 9-10 वी सदी में चंदेलकालीन राजाओं द्वारा निर्मित इस मंदिर में अद्भुत एवं भव्य प्रतिमा स्थापित की गयी थी। श्याम वर्ण के बलुचें पत्थर पर उत्कीर्ण इस भव्य प्रतिमा में सृजक बह्मा, पालनहार विष्णु व हलाहल विष का पान करते भगवान शिव रूपायित है। ऐसे में इस प्रतिमा की शोभा देखते ही बनती है। इस त्रिमुखी प्रतिमा के बाँये गाल पर चोट का निशान है। किवदन्तियों के अनुसार एक बार मुगल शासक औरगजेब की सेना द्वारा इस मूर्ति को खण्डित करने के लिये इस गाल पर तलवार से प्रहार किया गया था। तब यहाँ से दूध की धार निकली थी। इस चमत्कार को देखकर मन ही मन भगवान भोलनाथ की इस लीला को प्रणाम कर मुगल सेना यहाँ से भाग गयी थी। हालाँकि इस बात में कितनी सच्चाई है व इसकी हकीकत क्या है, यह तो डमरूवालें ही जानें। पर यह मंदिर क्षेत्र के ही नही वरन पूरे देश के शिव भक्तों की आस्था का केन्द्र है। इस प्रतिमा के ठीक नीचे एक तीन फीट ऊँचा व एक फिट व्यास का शिवलिंग स्थापित है। जिसे बड़े ही कलात्मक ढंग से उकेरा गया है। श्रद्धालु इसे शिव पार्वती के रूप में पूजते व मानते है। भगवान शिव के ऐसे अर्द्धनारीश्वर स्वरूप के दर्शन कर नतमस्तक हो जाते है। मंदिर के मुख्य द्वार के दोनों ओर खजुराहों शैली के चित्रों को बड़ी खूबसूरती के साथ उकेरा गया है। तो वही नीचे सीड़ियों पर सिंह व हाथी के मल्ल युद्ध को भी दर्शाया गया है। वही बगल में खुले आसमान के नीचे नंदी व शिवलिंग स्थापित है। जानकारों की मानें तो यह तात्रिक दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ऐसे भोले के दरबार में दर्शन पाने को लेकर सुबह से ही लोगों का ताँता लग गया। मंदिर में भगवान शिव का आलौकिक श्रगार किया गया। नीलकंठेश्वर धाम पर लगे मेले में लोगों ने जमकर खरीददारी की। बच्चों ने अपने लिये खिलौने लिये, किसी ने चाट पकौड़ी का आनन्द लिया, तो कोई झूला झूलकर मजे लेता रहा।