यहां इंजीनियर, छात्र और मिलकर्मी भी मनरेगा मजदूर
ईसानगर (लखीमपुर) : दर्जनों शिकायत, जांच और खुलासों के बाद भी मनरेगा में 'जेब' कार्ड का बोलबाला है।
ईसानगर (लखीमपुर) : दर्जनों शिकायत, जांच और खुलासों के बाद भी मनरेगा में 'जेब' कार्ड का बोलबाला है। ईसानगर ब्लॉक में तो हद तब हो गई जब परीक्षा दे रहे छात्र, इंजीनियर और मिल कर्मचारी के नाम भी मनरेगा मे मजदूरी के नाम पर पैसा निकाल लिया गया। यह खुलासा सूचना के अधिकार अधिनियम के जरिए हुआ है जिसके बाद सीडीओ ने जांच शुरू की है।
ब्लॉक क्षेत्र के ग्राम खमरिया निवासी अवध मिश्रा ने खमरिया ग्राम पंचायत से ही मनरेगा से संबंधित सूचना आरटीआई के तहत मांगी थी। जब सूचना मिली तो वह अजूबे से कम नहीं थी। इस सूचना अभिलेख के मुताबिक खमरिया निवासी आशीष मिश्र पुत्र सुरेश मिश्र ने 18 मार्च तक लगातार मनरेगा के तहत मजदूरी की है। इसकी मजदूरी का 1932 रुपया भी उसे दिया गया है। दूसरी तरफ आशीष ने आठ मार्च से ग्राम महरिया स्थित केशव कमला डिग्री कॉलेज में स्नातक की नियमित परीक्षा भी दी है और उसकी हाजिरी वहां दर्ज है। जालसाज यही तक नहीं रुके, उन्होने निर्भय शुक्ला पुत्र आदित्य प्रकाश के नाम से भी मनरेगा के काम मे नियमित हाजिरी लगाई है और बैंक से उसका भुगतान भी किया गया है। शिकायत के मुताबिक निर्भय शुक्ला मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर मुरादाबाद शहर में पोस्ट है। सूचना अभिलेख कहते हैं कि खमरिया निवासी रामस्वरूप ने मनरेगा के तहत ग्राम पंचायत में 28 दिन मजदूरी की और पैसे का भुगतान लिया, लेकिन यही रामस्वरूप खमरिया की ही गो¨वद शुगर मिल का कर्मचारी है। ऐसे दर्जनों मामलों का आरटीआई से मिली जानकारी में खुलासा होने के बाद अवध मिश्रा ने इसकी शिकायत डीएम व सीडीओ के अलावा मुख्यमंत्री से भी पत्र भेज कर की है। मनरेगा मे ऐसे दुस्साहसिक भ्रष्टाचार की जानकारी से अफसर भी चकरा गए है। सीडीओ अमित बंसल ने मामले की जांच की बीड़ा खुद उठाया है।
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- कार्रवाई न होने से बढ़ रहे हौसले
धौरहरा : मनरेगा मे फर्जी जॉब कार्ड बनाकर मजदूरी के नाम पर पैसा हड़पने के दर्जनों मामले पहले भी सामने आ चुके हैं, लेकिन हर बार किसी वजह से इन पर ठोस कार्रवाई की बजाए इन्हें दबा दिया गया। कुछ समय पहले ही धौरहरा ब्लॉक के सरसवां गांव में एक महिला के अपनी शादी के दिन भी मनरेगा में मजदूरी करने का मामला आरटीआई से ही सामने आया था, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ पैसे की रिकवरी हुई और जिम्मेदार बच निकले। दरअसल प्रधानों और ग्राम पंचायत अधिकारियों ने मिलकर ऐसे हजारो फर्जी जॉब कार्ड बना रखे हैं। मजदूरी दूसरो से कराकर उन्हें निर्धारित से कम पैसा दिया जाता है और जॉब कार्ड की जगह ऐसे जेब कार्ड लगाकर सरकारी भुगतान हड़पा जाता है। ऐसे मामलों में मजदूरी करने वालो की संख्या भी बढ़ा कर दर्शाई जाती है। इनके बैंक खाते भी क्षेत्रीय बैंकों में प्रधानों ने ही फर्जी हस्ताक्षर से खोलवा रखे है, इससे पैसा हड़पे जाने की भनक भी किसी को नहीं लगती। कतिपय मामलों में बैंक कर्मी भी इस गोरखधंधे में लिप्त पाए गए हैं।