लकड़ी के पुल से नदी पार करने को विवश हैं ग्रामीण
लखीमपुर: पुल बनाने में कितना समय लगता है? आप कहेंगे कुछ महीने या फिर कुछ साल, लेकिन तहसील निघासन की
लखीमपुर: पुल बनाने में कितना समय लगता है? आप कहेंगे कुछ महीने या फिर कुछ साल, लेकिन तहसील निघासन की ग्राम पंचायत मांझा से मिलने वाला जवाब आपको चक्कर में डाल देगा। यहां पुल निर्माण की आस लगाए बैठे लोगों की पीढि़यां गुजर गई, परंतु जौराहा नदी पर पुल निर्माण का सपना अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। पुल निर्माण न होने के कारण लोगों को आवागमन में दिक्कतें उठानी पड़ रही हैं। बरसात के समय में चारों ओर पानी ही पानी होने के कारण मांझा के ग्रामीणों का तहसील व जिला मुख्यालय से संपर्क कट जाता हैं। ऐसे में नाव से या फिर बांस-बल्ली के सहारे खुद के प्रयासों से बनाए गए पुल से नदी पार करना इन ग्रामीणों की मजबूरी बन जाती हैं।
मालूम हो कि तहसील निघासन की ग्राम पंचायत मांझा, भैरमपुर, इच्छानगर, चौगुर्जी समेत करीब आधा दर्जन से अधिक गांवों के वा¨शदे वर्षों से जौराहा नदी पर पुल का निर्माण करने का मांग कर रहे हैं, परंतु अभी तक उनकी इस मांग पर न तो जनप्रतिनिधियों ने, न ही शासन प्रशासन ने कोई ध्यान दिया हैं, जबकि यह पुल इन वा¨शदो के लिए बेहद जरूरी हैं। क्योकि यह गांव दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की सीमा से सटा हुआ हैं और इन गांवों का तहसील और जिला मुख्यालय से सीधा संपर्क नहीं है। बीच में जौराहा नदी बाधक बन कर खड़ी हैं। बरसात के समय में तो पूरा गांव जलमग्न होकर टापू बन जाता हैं। ग्रामीणों के लिए नाव ही आवागमन का एक मात्र जरिया बचती है। इन गांवों के वा¨शदों को तहसील और जिला मुख्यालय जाने के लिए या तो नाव से या फिर खुद के प्रयासों से बांस-बल्ली के सहारे बनाए गए पुल से नदी पार कर ¨सगाही जाना पड़ता हैं। इसके अलावा एक रास्ता बेलरायां होकर दो किलोमीटर का फासला तय करने के लिए सोलह किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता हैं। इन गांवों के वा¨शदे अपनी रोजमर्रा की वस्तुओ की खरीददारी या तो बाढ़ आने से पहले कर लेते हैं या फिर बेलरायां व ¨सगाही आकर अपनी जीविका के साधन एकत्र करते हैं। इस तरह के जीवन में इन ग्रामीणों को बीमारियां और भी परेशान करती हैं। क्योकि सरकारी चिकित्सा के नाम पर यहां सिर्फ पोलियो वाले ही दिखाई पड़ते हैं। इसके चलते इन लोगों का एक मात्र सहारा झोलाछाप चिकित्सक ही बचते हैं। इसके अलावा जंगल के किनारे ये गांव बसे होने के कारण इन गावों में आपराधिक वारदातें अक्सर हुआ करती हैं। क्योंकि जंगल का फायदा उठाकर अपराधिक प्रवृत्ति के लोग घटना को अंजाम देकर जंगल का रास्ता पकड़ लेते हैं। पुलिस को भी इन गांवो में पहुंचने के लिए एक लंबी दूरी तय करनी पड़ती हैं। यहां के ग्रामीण नदी पर पुल बनवाने की मांग वर्षों से कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने अपने प्रयास में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी, लेकिन पुल बनाने के नाम पर अभी तक इन ग्रामीणों को अगर कुछ हासिल हुआ हैं तो वह शासन-प्रशासन व जन प्रतिनिधियों का झूठा आश्वासन है।