प्रशासन की अनदेखी में सांसत में जान
लखीमपुर : मंजिले उन्हें मिलती हैं, जिनके सपनों मे जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता सिर्फ हौसलों स
लखीमपुर : मंजिले उन्हें मिलती हैं, जिनके सपनों मे जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता सिर्फ हौसलों से उड़ान होती है। कई सालों से कुछ इसी तरह का सपना संजोए बैठे ग्रामीणों ने सरकारी मशीनरी व जनप्रतिनिधियों के अश्वासनों से थक हार कर गांव को दो भागों में विभाजित करने वाले नाले पर बांस-बल्लियों के पुल का निर्माण कर अश्वासनों का पुल बनाने वालों को सबक सिखा दिया है। यह मामला किसी दूरदारज की ग्राम सभा का नहीं बल्कि विधान सभा, तहसील, ब्लाक मुख्यालय की ग्रामसभा निघासन का है। ऐसा भी नहीं कि इसे बनाये जाने की मांग ग्रामीणों ने न की हो। आखिरकार थकहार कर अपने कंन्धों पर भरोसा करते हुये इस प्रकार की वैकल्पिक व्यवस्था करना उनकी मजबूरी हो गयी।
मालूम हो कि ब्लाक, तहसील व विधानसभा मुख्यालय के नाम से जाने जानी वाली ग्रामसभा निघासन में बस्तीपुरवा नामक एक ऐसा भी गांव है। जो कि बीते तीन सालों से गांव में निकले एक नाले की पुलिया टूटने के कारण दो भागों में बंट कर रह गया है। जिसके चलते मात्र चार सौ की आबादी यह गांव दो हिस्सों में बदल चुका है। चार वर्ष पूर्व क्षेत्र में आयी विकराल बाढ़ के कारण बीच गाव से निकले नाले पर बनी पुलिया का एक हिस्सा कट गया था और वह टूट गयी थी। इस टूटी पुलिया के कारण लोग एक दूसरे से मिल नहीं पाते है और अगर मिलना भी हो तो दस मीटर की दूरी को एक किमी की दूरी में तय कर मुलाकात होती थी, लेकिन इस विकराल समस्या के छुटकारे के लिये गांव वालों ने ग्राम प्रधान, जिला पंचायत सदस्य, विधायक, सांसद से लेकर तहसील दिवस तक सभी को पत्र देकर मांग की थी और लगातार करते भी चले आ रहे है, लेकिन पुलिया के निर्माण का कार्य किसी के द्वारा नहीं सम्पन्न हो सका और हर जगह से सिर्फ आश्वासनों का पु¨लदा ही मिला। करीब तीन सालों से पुलिया के निर्माण की राह देख रहे लोगों ने आखिरकार थक हार कर अपने कंन्धों पर भरोसा किया और बंद हो चुके रास्ते पर बांस बल्लियों का पुल बना कर दो भागों में बट चुके गांव के विभाजन को तो समाप्त कर दिया और बांस बल्लियों के सहारे लोग इधर-उधर आने जाने लगे, लेकिन कुछ हद तक समस्या का समाधान हुआ पर निजात नहीं मिली। क्योंकि इस पुल से बच्चों को गुजरने पर प्रतिबन्ध है। जिससे गांव के बच्चों को स्कूल जाने के लिये अभी भी लंबा सफर तय कर जाना पड़ता है। इस बावत गांव के ही रामकिशुन भार्गव, रंगीलाल, वीरबल, मेवालाल, मुन्नालाल, शत्रोहन, कमलेश, विजय, राकेश, मुनेश मौर्य, भगौती प्रसाद, सोहन लाल, सहित सैकड़ो लोगों का इस मार्ग से आना जाना रहता है। इनके द्वारा ही इसे बनाये जाने के लिये सैकड़ों पत्र देकर मांग भी की गयी थी।